भारतीय संविधान ने देश के प्रत्येक नागरिक को कई मौलिक अधिकार दिए हैं। बहस इस बात को लेकर थी कि क्या निजता का अधिकार, मौलिक अधिकारों में आता है
या नहीं। आखिरकार मुख्य न्यायाधीश जस्टिस खेहर की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से इसे अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार माना है।
इस फैसले का आधार से कोई संबंध नहीं: सबसे पहले यह समझने की जरूरत है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का आधार से कोई संबंध नहीं है। 9 जजों की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सिर्फ निजता के अधिकार पर अपना फैसला सुनाया है। इस बेंच में आधार पर कोई बात नहीं हुई। आधार निजता के अधिकार का हनन है या नहीं, इस पर तीन जजों की एक अन्य बेंच सुनवाई करेगी।
क्या हैं मौलिक अधिकार: भारतीय संविधान ने देश के प्रत्येक नागरिक को कुछ मौलिक अधिकार दिए हैं। इन मौलिक अधिकार को व्यक्ति के विकास के लिए अहम माना जाता है।
1. समानता का अधिकार
2. स्वतंत्रता का अधिकार
3. शोषण के खिलाफ अधिकार
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
5. सांस्कृति और शिक्षा का अधिकार
6. संवैधानिक उपचार का अधिकार
7. निजता का अधिकार
इन जजों ने सुनाया फैसला: इन नौ जजों की बेंच ने निजता को मौलिक अधिकार माना।
1. मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर
2. जस्टिस चमलेश्वर
3. जस्टिस आरके अग्रवाल
4. जस्टिस एसए बोबड़े
5. जस्टिस एएम सापरे
6. जस्टिस आरएफ नरिमन
7. जस्टिस जीवाई चंद्रचूड़
8. जस्टिस संजय किशन कौल
9. जस्टिस एस एब्दुल नजीर
'सुप्रीम' फैसले का क्या फर्क पड़ेगा?
इस मामले में Jagran ने भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी से बात की। उन्होंने बताया कि अब किसी मामले में अगर आधार से जुड़ी या कोई अन्य निजी जानकारी मांगता है तो आप आपत्ति जता सकते हैं। अगर आपको लगता है कि फलां व्यक्ति आपके निजी जीवन में दखल दे रहा है तो आप कोर्ट में जाकर याचिका पेश कर सकते हैं और कोर्ट उस पर सुनवाई करेगी। इसमें आंखों का रंग, डीएनए, ब्लड से जुड़ी जानकारी, फिंगर प्रिंट आदि सरकार अपने पास रख सकती है। सरकार हमें विश्वास दिलाएगी कि यह डाटा चोरी नहीं होगा और हमारी निजता भंग नहीं होगी।
सरकारी योजनाओं में निजी जानकारी का क्या: सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए भी अब आधार जरूरी हो गया है। आप नाम, पता देने से तो इनकार नहीं कर सकते, लेकिन स्वामी के अनुसार अन्य जानकारियां देने से उपभोक्ता मना कर सकते हैं। विवाद की स्थिति में उपभोक्ता अदालत की शरण में जा सकता है और कह सकता है कि हमें विश्वास दिलाएं कि हम जो जानकारी दे रहे हैं वह किसी और के पास नहीं जाएगा।
मोबाइल फोन नंबर से आधार लिंक करना जरूरी है: सुप्रीम कोर्ट ने निजता को मौलिक अधिकार बना दिया है तो ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि जिस तरह से निजी टेलिकॉम कंपनियां मोबाइल नंबर को आधार से लिंक कराने की बात कर रही हैं उसका क्या होगा। इस मामले में सुब्रह्मण्यम स्वामी में कहा कि जब आधार पर ही चुनौती हो जाएगी तो इन कंपनियों को भी रुकना पड़ेगा।
निजता की श्रेणी कैसे तय होगी: निजता की श्रेणी को लेकर भी सवाल हैं। क्योंकि हो सकता है किसी व्यक्ति के लिए उसकी कोई खास जानकारी निजता की श्रेणी में आती हो, लेकिन दूसरों के लिए नहीं। ऐसे में निजता की श्रेणी कैसे तय हो। इस बारे में भी स्वामी ने Jagran.Com से बात करते हुए कहा कि इसके बारे में भी अदालत ही तय करेगी।
संविधान में नागरिकों के लिए मौलिक कर्तव्य भी हैं: संविधान ने नागरिकों को मौलिक अधिकार ही नहीं मौलिक कर्तव्य भी दिए हैं। कई बार हम इतने स्वार्थी हो जाते हैं कि मौलिक अधिकारों की बात तो करते हैं, लेकिन जब मौलिक कर्तव्यों की बात आती है तो बगले झांकने लगते हैं। आइए जानें संविधान से हमें कौन से मौलिक कर्तव्य मिले हैं...
1. प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करें।
2. स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे।
3. भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण रखे।
4. देश की रक्षा करे।
5. भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे।
6. हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका निर्माण करे।
7. प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसका संवर्धन करे।
8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ज्ञानार्जन की भावना का विकास करे।
9. सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे।
10. व्यक्तिगत एवं सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे।
11. माता-पिता या संरक्षक द्वारा 6 से 14 वर्ष के बच्चों हेतु प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना (86वां संशोधन).
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साभार: जागरण समाचार
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