एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
उनके दिमाग में फूड बाइक स्टार्टअप का आइडिया आया। उन्होंने फिर से साइड कार को डिजाइन कराया। इसे बनाने में कई इंजीनियंरिंग विचार आजमाए गए और बार्बिक्यू लगाने के लिए फिट बनाया गया। इसे लचीला होना चाहिए था, साथ ही ट्रैफिक में चलने के लिए पर्याप्त सुरक्षित भी। स्टेंडर्ड फ्रेम बनने में कुछ महीनों का समय लगा, क्योंकि ग्रिल के लिए कम से कम एक बार में 15 का ऑर्डर होना जरूरी था।
फिर इस सेटअप को बदल दिया गया और इसे एक छोटे किचन में बदल दिया गया, जिसमें एक तवा, एक ग्रिल स्टैंड, एक छतरी स्टैंड, ब्रेकेट जिनसे वे एक टेबल बना सकें, एक छोटी सी जगह जिसमें सॉस, डिश, मांस, सब्जियां और यहां तक कि इक्स्टिंगग्विशर (अग्निशामक) भी जाए। फिर ये 150 बर्गर सिर्फ खूब तेजी से ग्रिल और रेप होने लगे, बल्कि लोगों की मांग पर मेनू में नई चीजें भी जोड़ी जाती रहीं। एक बाइक से शुरू करने के बाद वे अब सिर्फ बेंगलुरू में ही 13 बाइक तक गए हैं। हर गुजरते दिन के साथ बिजनेस बढ़ता जा रहा है। यह खास मील मशीन इस आईटी टैक्नोलॉजी सिटी में आमतौर पर दिखाई देने लगी है। उन्हें इसके लिए मैनपावर कास्ट कम रखना थी, क्योंकि फूड ट्रक में निश्चित संख्या में कर्मचारियों की जरूरत होती थी, लेकिन फूड बाइक में सिर्फ बनाने वाले आैर एक मदगार की ही जरूरत होती है।
बुलेट से बने मोबाइल किचन के इस आइडिया ने कुछ शहरों में सिर्फ तूफान उठाने की तैयारी कर ली है, बल्कि इसने एक स्थाई प्रभाव भी छोड़ा है कि कैसे उस भीड़ को फूड सर्व किया जाना चाहिए जो हमेशा जल्दी में नजर आती है।
फंडा यह है कि प्रतिस्पर्धा से लड़ने के लिए और पॉपुलर बने रहने के लिए लगातार अपनेआप को फिर खोजना पड़ता है।
संभवत: हममें से अधिकतर लोग शाेले फिल्म का धर्मेंद्र और अमिताभ बच्चन की दोस्ती का प्रसिद्ध गाना 'ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे' सुनते हुए बड़े हुए हैं। गाने के बीच में बाइक की साइड कार अलग हो जाती है और गाने के
अंत में साइड कार किसी तरह बाइक से फिर जुड़ जाती है। जब भी मैं किसी साइड कार वाली बाइक पर दो लोगों को देखता हूं तो मुझे उस दृश्य में साइड कार का बाइक से जुड़ने से पहले बहुत दूर तक अपनेआप चलना याद जाता है। और मेरे चेहरे पर मुस्कान जाती है। दिमाग कहता है, क्या मजाक था। इस सोमवार रात मैंने 500 सीसी रॉयल एनफील्ड बाइक साइड कार के साथ देखी। दो लोग इसे अपना अस्थायी होटल बनाने के लिए अलग कर रहे थे। करीब 150 लोगों को उन्होंने गरमा-गरम लजीज ग्रिल्ड फूड का स्वाद 3 घंटे चखाया और बाद में साइड कार को बाइक से फिर जोड़ दिया। देखकर मुझे जिज्ञासा हुई कि आखिर ये बाइक फूड बिज़नेस है क्या। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। साइड कार पर अच्छे अक्षरों में लिखा था- सीईओ बाय डे, ग्रिल मास्टर बाय नाइट। यह आइडिया है कॉलेज के युवा छात्र अरुण वर्मा और उनके भाई कृष्ण का। वे कंपनी के फाउंडर हैं- नाम है बीबीक्यू (बार्बिक्यू) राइड इंडिया। अगर आप ये सोच रहे हैं कि यह सड़क पर होने वाले नियमित बिज़नेस की तरह है, जैसा कि पानी पुरी, तो आप गलत हैं। कंपनी अपना काम दिल्ली, चेन्नई और हैराबाद सहित बेंगलुरू में शुरू कर चुकी है। पांच और शहरों में बिज़नेस शुरू करने की प्रक्रिया जारी है। अरुण बेेचलर ऑफ बिजनेस मैंनेजमेंट कर रहे हैं और कृष्णा एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग कर रहे हैं। दोनों के पास शाम का समय खाली होता था इसलिए उन्होंने एक फूड ट्रक बिजनेस शुरू किया। नाम रखा- स्ट्रीटी ट्रीट्स। उसमें तीन ओर ट्रक जुड़ गए। लेकिन अचानक बाजार में बहुत सारे ऐसे ट्रक नजर आने लगे और हर सड़क के कोने पर रात के समय बहुत सारे ट्रक नजर आने लगे। उन्हें एहसास हुआ कि अब कुछ अलग करने का समय गया है। उनके दिमाग में फूड बाइक स्टार्टअप का आइडिया आया। उन्होंने फिर से साइड कार को डिजाइन कराया। इसे बनाने में कई इंजीनियंरिंग विचार आजमाए गए और बार्बिक्यू लगाने के लिए फिट बनाया गया। इसे लचीला होना चाहिए था, साथ ही ट्रैफिक में चलने के लिए पर्याप्त सुरक्षित भी। स्टेंडर्ड फ्रेम बनने में कुछ महीनों का समय लगा, क्योंकि ग्रिल के लिए कम से कम एक बार में 15 का ऑर्डर होना जरूरी था।
फिर इस सेटअप को बदल दिया गया और इसे एक छोटे किचन में बदल दिया गया, जिसमें एक तवा, एक ग्रिल स्टैंड, एक छतरी स्टैंड, ब्रेकेट जिनसे वे एक टेबल बना सकें, एक छोटी सी जगह जिसमें सॉस, डिश, मांस, सब्जियां और यहां तक कि इक्स्टिंगग्विशर (अग्निशामक) भी जाए। फिर ये 150 बर्गर सिर्फ खूब तेजी से ग्रिल और रेप होने लगे, बल्कि लोगों की मांग पर मेनू में नई चीजें भी जोड़ी जाती रहीं। एक बाइक से शुरू करने के बाद वे अब सिर्फ बेंगलुरू में ही 13 बाइक तक गए हैं। हर गुजरते दिन के साथ बिजनेस बढ़ता जा रहा है। यह खास मील मशीन इस आईटी टैक्नोलॉजी सिटी में आमतौर पर दिखाई देने लगी है। उन्हें इसके लिए मैनपावर कास्ट कम रखना थी, क्योंकि फूड ट्रक में निश्चित संख्या में कर्मचारियों की जरूरत होती थी, लेकिन फूड बाइक में सिर्फ बनाने वाले आैर एक मदगार की ही जरूरत होती है।
बुलेट से बने मोबाइल किचन के इस आइडिया ने कुछ शहरों में सिर्फ तूफान उठाने की तैयारी कर ली है, बल्कि इसने एक स्थाई प्रभाव भी छोड़ा है कि कैसे उस भीड़ को फूड सर्व किया जाना चाहिए जो हमेशा जल्दी में नजर आती है।
फंडा यह है कि प्रतिस्पर्धा से लड़ने के लिए और पॉपुलर बने रहने के लिए लगातार अपनेआप को फिर खोजना पड़ता है।
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साभार: भास्कर समाचार
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