Monday, May 8, 2017

अच्छे विचारों को लोगों तक पहुंचाने के लिए जरूरी होते हैं अनूठे तरीके

मैनेजमेंट फंडा (एन. रघुरामन)
आपके विचार बहुत ऊंचे हो सकते हैं और इसके पीछे समुदाय की सेवा करने का बड़ा उद्‌देश्य भी हो सकता है। लेकिन, आखिर में बड़े पैमाने पर अच्छा करने की विचार की क्षमता और इसकी सफलता पूरी तरह इस बात पर
निर्भर है कि उसे कितनी अच्छी तरह से लोगों तक पहुंचाया गया है तथा उसके लिए कौन-सा माध्यम अपनाया गया है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। ध्यान रहे कि कोई विधि गलत नहीं है लेकिन, महत्व इस बात का है कि यह कितना कारगर है। वह अपने उद्‌देश्य में कितना मददगार साबित होता है। पेश है एक ही सिक्के के दो पहलू। 
परम्परागत तरीका: बीते शुक्रवार रांची स्थित एचईसी टाउनशिप सेक्टर तीन के चौराहे पर लोग उत्सुकता से एक व्यक्ति को घेरे खड़े थे। इस व्यक्ति ने साइकिल पर डिस्प्ले बोर्ड लगाकर साक्षरता के संदेश लिख रखे थे- आओ भारत को साक्षर बनाएं, पढ़ो, पढ़ाओ देश को साक्षर बनाओ आदि। साफ दिख रहा था कि यह उस शिक्षा और खासतौर पर साक्षरता का प्रचार करना उसका लाइफ मिशन था। उत्तर प्रदेश के 46 वर्षीय आदित्य कुमार से मिलिए, जिन्हें साइकिल गुरुजी कहा जाता है। बच्चों को पढ़ाने के लिए 1995 से लखनऊ और आसपास की झुग्गी बस्तियों में साइकिल पर जाने के मामले में 1914 में उन्हें लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में स्थान मिला। 
उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले के छोटे से गांव सालेमपुर के छोटे से बच्चे और गरीबी को बहुत निकट से भुगतने वाले आदित्य ने वाकई बहुत लंबा सफर तय किया है। उनके पिता गरीब मजदूर थे और चाहते थे कि उनका बेटा भी जल्दी कमाने लग जाए। गरीबी इतनी थी कि उन्हें इस तरह सोचने के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता था लेकिन, आदित्य लखनऊ से भाग गए और एक शिक्षक से मिले और अध्ययन करने के उनके संकल्प से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने आदित्य को ग्रेजुएट होने में मदद की। उसके बाद ही उन्होंने झुग्गी बस्तियों के बच्चों के बीच शिक्षा का प्रसार करने का निर्णय ले लिया। उन्होंने गरीब बच्चों को मुफ्त में हिंदी, अंग्रेजी और गणित पढ़ाना शुरू कर दिया ताकि वे नियमित स्कूलों में जाने की योग्यता हासिल कर सकें। पैसे लेकर की जाने वाली ट्यूशन या मजदूरी से उनकी जो थोड़ी-बहुत आय होती तो उसे भी वे गरीब बच्चों के लिए किताबें अन्य शैक्षिक सामग्री खरीदने पर खर्च कर देते। गरीब बच्चों की पढ़ाने का उनका संकल्प इतना मजबूत था। 
12 जनवरी 2015 को जेब में सिर्फ 500 रुपए के साथ आदित्य ने देशव्यापी साइकिल यात्रा पर निकलने का फैसला किया ताकि वे साक्षरता, पढ़ने-पढ़ाने के लिए जितने हो सके उतने लोगों को प्रेरित कर सकें। उन्होंने सोचा कि वे अपने जैसे लोग और संस्थाओं को प्रेरित कर सकें तो जागरूकता का यह काम कितना फैल जाएगा। वे दो साल के शिक्षा के प्रति जागरूकता फैलाने के मिशन पर हैं। उन्हें सबसे बड़ा पुरस्कार तो तब मिलता है, जब उन्हें सुनने के बाद उन्हें स्कूल जाने वाले बच्चे स्कूल जाते नज़र आते हैं। अनूठातरीका : यदिआप आंखें बंद करके खड़े हों और आपका बच्चा जोर से पढ़कर सुना रहा हो, 'टीकाकरण ज़िंदगी देने वाला उपहार है,' 'टीकाकरण शिविर में जाने से चूकें' और 'अपने बच्चों को टीकाकरण से आठ घातक बीमारियों से बचाएं,' तो क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि आप कौन-सी जगह पर हैं? आपका अनुमान गलत भी हो सकता है। ये डॉक्टर के क्लीनिक या स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र की दीवार पर लिखे नारे नहीं हैं। यह बेशकीमती सलाह बाल कटाने वाले के एप्रन और सलून की दीवारों पर लिखी हुई हैं। 
आप शायद चौंक जाएं कि इस जगह इनका क्या काम और यह सलून है कहां? प्रचार की यह सामग्री संबंधित एजेंसियों ने बनाई है और राज्य सरकार से मंजूरी मिलने के बाद इसे उत्तर प्रदेश के छह ब्लॉक सीतापुर रेऊसा, सांडा, पिसावन, मच्रेता, परसेंडी और बिसवान के कई गांवों के 120 सलूनों में प्रदर्शित किया गया है। चूंकि गांव में बाल काटने वालों की घरों तक आसान पहुंच होती है और वर-वधु की जोड़ी मिलाने, मंुडन जनेऊ संस्कार जैसे जन्म-मृत्यु से संबंधित कई रस्मों में वे भूमिका निभाते हैं, इसलिए उन्हें स्वास्थ्य दूत बनाया गया है। दूसरा लक्ष्य टीकाकरण कार्यक्रम में पुरुषों की भागीदारी बढ़ाने का है। गांवों में लगभग सारे पुरुष बाल काटने की दुकान पर जाते हैं। जब वे वहां जाे हैं तो पोस्टर संदेश पढ़ते हैं और फिर घर जाकर परिवार की महिलाओं से पूछते हैं कि क्या उन्होंने बच्चों को टीके लगवा लिए हैं। इस तरह पुरुषों की भागीदारी भी सुनिश्चित हो जाती है। 
फंडा यह है कि व्यापक हित साधने वाले अच्छे विचारों को लोगों तक पहुंचाने के लिए परम्परागत तरीकों से अलग हटकर अनूठे तरीकों की जरूरत होती है ताकि वे अधिक कारगर साबित हो सकें। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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