Sunday, May 7, 2017

हरियाणा का एक गाँव ऐसा भी जहाँ 600 से ज्यादा हैं 'घरजमाई'

यह घर-जमाइयों का गांव है। यहां हर तीसरे-चौथे घर में एक जमाई रहता है। कुछ घरों में तो जमाइयों के भी जमाई चुके हैं। 12.5 हजार की आबादी वाले इस गांव में केवल 7.5 हजार लोग ही यहां के मूल निवासी हैं बाकी
बाहर के। 600 से ज्यादा जमाई या तो ससुराल में ही रहते हैं या यहीं अपना घर जमीन खरीदकर बनवा लिया है। पानीपत के पास के इस गांव का नाम सौदापुर है। लेकिन इस गांव को अब ग्रामीण जमाइयों का गांव भी कहने लगे हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। खास बात यह है कि गांव के सरपंच राजेश सैनी के पिता जयभगवान भी गांव के जमाई हैं। गांव की चौपाल में बैठे देवाना और सुल्तान कहते हैं कि गांव के दो इलाके तो ऐसे हैं, जहां जमाइयों की संख्या ज्यादा है। वे बताते हैं कि यहां से बेटियों की शादी दूसरे गांवों में करते हैं। लेकिन यदि इसके बाद उन्हें कोई समस्या आती है तो बेटियां अपने पति के साथ गांव वापस जाती हैं। दामादों को रोजगार दिला दिया जाता है और वे यहीं रहने लगते हैं। 
सरपंच राजेश सैनी कहते हैं कि हमारे गांव में रोजगार के कारण जमाइयों की संख्या बढ़ी है। पानीपत शहर पास है, इसलिए वहां काम करते हैं और रहते गांव में है। पूर्व सरपंच आजाद सिंह कहते हैं कि 2011 की जनगणना के अनुसार गांव की आबादी करीब 7.5 हजार है, लेकिन यहां लोग 12.5 हजार से ज्यादा हैं। गांव के तकरीबन तीसरे-चौथे परिवार में जमाई रह रहा है। गांव में भाईचारा है, शांति है। इसलिए यदि किसी जमाई को अपने गांव में परेशानी होती है तो वह भी यहीं आकर बस जाता है। 66 वर्षीय जय भगवान बताते हैं कि कई बार परिस्थितियां ऐसी बनती हैं कि बेटी और दामाद दूसरे कारणों से भी यहां जाते हैं। उन्होंने अपने बारे में बताया कि वह सोनीपत के पास गांव बिचपाड़ी के मूल निवासी हैं। शादी के कुछ समय बाद करीब 40 साल पहले परिवार में अनबन हो गई। मैंने और मेरी पत्नी ने जिंदगी खत्म करने की सोची। दोनों जसया गांव के रेलवे स्टेशन पर पहुंच शाम पांच बजे वाली ट्रेन का इंतजार करने लगे, लेकिन ट्रेन नहीं आई। पता लगा कुछ दूरी पहले ही फाटक पर ट्रैक्टर ट्रेन की चपेट में गया। ट्रेन रात 11 बजे पहुंची तब तक हम दोनों का फैसला बदल चुका था। पत्नी ने कहा, एक बार मायके चलते हैं। वहां भी यदि शरण नहीं मिली तो फिर जैसा कहोगे, वैसा करेंगे। इसके बाद हम रात को पानीपत और अगली सुबह सौदापुर गए। यहां ससुराल में सबकुछ बताया और फिर यहीं रहने लगे। मेहनत-मजदूरी की। पशु पाले, खुद का प्लाट लिया और मकान बनाया। अब बेटा गांव का सरपंच है। 60 वर्षीय जातीराम भी पिछले 40 साल से गांव में रह रहे हैं। कहते हैं, शादी होने के कुछ समय बाद अपने गांव ललायन से यहां गए। यहां काम मिल गया। फिर यहीं बस गए। बच्चों की शादी भी यहीं की। अब तो यह गांव भी अपना सा लगता है। गांव में रहने की दिक्कत नहीं होती। जब वे खुद सक्षम होते हैं तो यहीं पर प्लाट लेकर मकान बना लेते हैं। 

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साभार: भास्कर समाचार 
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