Sunday, February 12, 2017

लाइफ स्किल्स: नियमों का पालन करें और अपनी समस्या के समाधान को आसान बनाएं

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
पिछले सोमवार को मुझे अहसास हुआ कि दो सप्ताह बाद जब मेरी विदेश यात्रा शुरू होने वाली है, तभी मेरे पासपोर्ट की अवधि भी खत्म हो रही है। यात्रा की थोड़ी ही उम्मीद के साथ मैंने ऑनलाइन आवेदन किया और
मुझे 9 फरवरी को सबसे नजदीकी तारीख का इंटरव्यू अपॉइंटमेंट मिल गया। गुरुवार को ठीक से जमाए दस्तावेजों के साथ 20 मिनट पहले ही मैं वहां पहुंच गया। कतार में लगे आवेदक शिकायत कर रहे थे कि पासपोर्ट विभाग तो शायद ही कभी काम करता है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। पासपोर्ट ऑफिस की कार्यप्रणाली से अच्छी तरह वाकिफ लगते एक कड़े आलोचक ने कहा, 'आपको पहले दो काउंटर पर कोई दिक्कत नहीं होगी, क्योंकि टीसीएस उसे हैंडल करता है लेकिन, तीसरे और चौथे काउंटर बहुत ही खराब होंगे, क्योंकि पासपोर्ट अधिकारी उन्हें चलाते हैं।' जब किसी ने उनसे पूछा कि 'कितने खराब' तो वे सिर्फ मुस्कुराए और विश्वास के साथ बोले, 'आपको खुद ही पता चल जाएगा।' 
मैंने उन्हें वहां की कार्यप्रणाली के बारे में कुछ प्राथमिक बातें बताने के लिए धन्यवाद दिया और अपने प्रेस कार्ड से अधिकारी को प्रभावित करने के लिए खुद को तैयार करने लगा। वे सज्जन बिल्कुल सही थे। पहले दो काउंटरों पर बहुत मित्रतापूर्ण व्यवहार हुआ; मुस्कुराते युवाओं ने सारे दस्तावेज व्यवस्थित जमाए, प्राथमिक जांच की और सारे दस्तावेज सिस्टम में अपलोड कर दिए। फिंगरप्रिंट और फोटो लिए। सबकुछ कुछ मिनटों में हो गया। फिर हमसे पासपोर्ट अधिकारी से इंटरव्यू के लिए इंतजार करने को कहा- जैसा बताया गया था कुछ दिक्कतों वाली जगह।

चूंकि मेरा टोकन नंबर 11 था तो मैंने देखा कि उन पांच काउंटर में से हर एक पर दो आवेदक थे और मेरा दिमाग अंदाजा लगाने लगा कि उनमें से कौन सबसे अच्छा और सबसे खराब है। मुझे दो नंबर के काउंटर वाला अधिकारी थोड़ा रूखा लगा, जो गाहेबगाहे आवाज ऊंची कर देता था। उसने आवेदक से यह भी कहा कि यदि वह एक विशेष दस्तावेज नहीं देता, उसका आवेदन मंजूर नहीं होगा। आवेदक अनुनय-विनय करता रहा लेकिन, अधिकारी टस से मस होने को राजी था। सलाह देने वाले व्यक्ति ने आंखों के इशारे कहा, 'देखा, मैंने कहा था न।' मैंने दिल ही दिल में प्रार्थना की कि मुझे 2 नंबर काउंटर मिले, हालांकि ज्यादातर आवेदकों का हश्र इसी तरह ठुकराए जाने में हुआ। 
बोर्ड पर मेरा नंबर प्रकट हुआ, वह भी मेरी इच्छा के विपरीत काउंटर नंबर 2 पर! जब मैं काउंटर पर पहुंचा तो देखा कि उस अधिकारी की चाय ठंडी हो रही है और वह वाकई काम की व्यस्तता में उसे पीना भूल गया। स्वभाववश मैंने कहा, 'आप चाय पी क्यों नहीं लेते, मैं इंतजार कर लूंगा।' इस सद्‌भावना पूर्ण अनुरोध ने उसके चेहरे पर तत्काल मुस्कान ला दी। उसने मुझे बैठने को कहा और मेरे दस्तावेज देखे, हस्ताक्षर किए और अंतिम काउंटर की ओर जाने को कहा, सबकुछ 30 सेकंड में हो गया। पहले दो काउंटर की तुलना में 800 फीसदी तेजी से। 
अंतिम काउंटर पर कुछ गड़बड़ दिख रही थी,क्योंकि पांच में से चार अधिकारी ट्रैफिक की समस्या के कारण देर से आए थे। यह मुंबई की खास समस्या है और वहां एक महिला थी, जिसने मेरे पहले के सारे दस आवेदकों के आवेदन मंजूर या खारिज किए। जब 15 मिनट बाद मेरी बारी आई तो मैंने उस महिला से कहा, 'आज की सुबह बहुत तनाव वाली रही है न, सारे आवेदकों को एक अधिकारी ने संभाला।' वह धीमे से मुस्काई लेकिन, मित्रतापूर्ण होने का कोई संकेत नहीं दिया और कहा, 'कभी-कभी हो जाता है, मेरे सहयोगी आते ही होंगे।' उसने मुझे कुछ पल देखते हुए कहा, 'आपको पांच दिन में पासपोर्ट मिल जाएगा।' मुझे आश्चर्य हुआ कि उसे कैसे मालूम कि मैं अगले हफ्ते यात्रा पर जा रहा हूं। मैं बाहर गया प्रेस कार्ड या 'तत्काल' आवेदक जैसे खास दस्तावेज दिखाए बगैर। 
जब मैं घर आया एसएमएस से मुझे सूचना मिली कि मेरा पासपोर्ट प्रिंट होने चला गया है। ठीक एक दिन बाद एक और एसएमएस ने सूचना दी कि पासपोर्ट स्पीडपोस्ट से डिस्पेच हो गया है और बाद में शुक्रवार शाम जब मैंने पता लगाया तो पाया कि वह तो पहले ही पोस्ट ऑफिस पहुंच गया है। 
फंडा यह है कि ज्यादातरसरकारीकर्मचारी अपने काम में माहिर होते हैं और आपकी समस्यां सुलझा सकते हैं बशर्ते आप उचित दस्तावेजों के साथ निर्धारित नियमों का पालन करें। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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