सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के एक फैसले को खारिज करते हुए कहा कि राज्य को भारतीय संविधान और उसके अपने संविधान के बाहर कोई संप्रभुता हासिल नहीं है। जम्मू-कश्मीर का अपना संविधान भारतीय संविधान के अधीन है और राज्य के नागरिक सबसे पहले भारत के नागरिक हैं। सुप्रीम कोर्ट
का यह फैसला जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के निर्णय के खिलाफ भारतीय स्टेट बैंक की अपील पर आया है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि राज्य को अपने स्थायी निवासियों की अचल संपत्तियों के अधिकारों के संबंध में कानून बनाने का ‘पूर्ण संप्रभु अधिकार’ है। संसद में बनाया गया कानून अगर राज्य विधानसभा में बनाए गए कानून को प्रभावित करता है, तो उसे जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं किया जा सकता। जबकि, ‘सिक्योरिटाइजेशन एंड रिकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनांशियल असेट्स एंड एनफोर्समेंट ऑफ सिक्योरिटी इंट्रेस्ट एक्ट-2002’ (एसएआरएफएईएसआइ) जम्मू-कश्मीर के ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट-1920 को प्रभावित करता है। एसएआरएफएईएसआइ के तहत बैंकों को अदालती प्रक्रिया के बाहर रहकर अपने सुरक्षा हितों के लिए कर्जदार की गिरवी रखी गई संपत्तियों पर कब्जा कर उसे बेचने का अधिकार हासिल है।सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस कुरियन जोसेफ और आरएफ नरीमन की पीठ ने कहा, ‘हाई कोर्ट के फैसले की शुरुआत ही गलत छोर से हुई और इसका निष्कर्ष भी गलत ही निकला। यह कहता है कि जम्मू-कश्मीर के संविधान की धारा-5 के मुताबिक राज्य को उसके स्थायी निवासियों की अचल संपत्ति के अधिकारों के बारे में कानून बनाने का पूर्ण संप्रभु अधिकार है। हम इसमें यह भी जोड़ेंगे कि जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासी भारत के नागरिक हैं और यहां दोहरी नागरिकता नहीं है जैसी कि दुनिया के कुछ हिस्सों के संघीय संविधान में है।’ एसएआरएफएईएसआइ के प्रावधान संसद की विधायी क्षमता के दायरे में हैं और उन्हें जम्मू-कश्मीर में लागू किया जा सकता है। देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा कि राज्य के निवासियों के बारे में उनकी संप्रभुता की अलग और विशिष्ठ वर्ग का होने जैसी व्याख्या पूरी तरह गलत है। पीठ ने कहा, ‘यह दोहराना बेहद जरूरी है कि जम्मू-कश्मीर के संविधान की धारा-3 यह घोषणा करती है कि जम्मू-कश्मीर राज्य भारतीय संघ का अभिन्न भाग है और रहेगा। और यह प्रावधान संशोधन की सीमा से परे है।’
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साभार: जागरण समाचार
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