Saturday, September 3, 2016

हरियाणा सरकार की 20000 कच्चे कर्मियों को पक्का करने की प्रक्रिया पर कोर्ट की रोक

हरियाणा के विभिन्न सरकारी महकमों में कॉन्ट्रैक्ट अथवा एडहॉक पर लगाए गए 20 हजार कर्मचारियों का नियमितीकरण संकट में पड़ गया है। नियमित करने के लिए बनाई गई पॉलिसी पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। जस्टिस सूर्यकांत जस्टिस सुदीप आहलूवालिया की खंडपीठ ने
कहा कि जो कर्मचारी इस पाॅलिसी के तहत नियमित हो चुके हैं, उनका भविष्य याचिका के अंतिम फैसले पर निर्भर रहेगा। यह पॉलिसी वर्ष 2014 में हुड्‌डा सरकार ने बनाई थी और खट्‌टर सरकार ने जून-2016 में इसे लागू किया था। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। नियमितीकरण की पॉलिसी बनने के बाद अगस्त 2014 में ही सोनीपत निवासी योगेश त्यागी अन्य ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अलग-अलग याचिकाएं दायर की थीं। जिसमें तर्क दिया गया कि हरियाणा में अस्थाई तौर पर काम करने वाले कर्मचारियों की नियुक्ति करते हुए किसी भी नियम का पालन नहीं किया गया था। इन कर्मचारियों को नियमित करने का फैसला सीधे तौर पर बैकडोर एंट्री है। ऐसे में हरियाणा सरकार के इस फैसले पर रोक लगाई जाए। 
  • अगली सुनवाई 24 अक्टूबर को होगी, इसमें सरकार और याचिकाकर्ताओं के वकील कोर्ट में अपने-अपने तर्क रखेंगे। 
  • नियमित हो चुके कर्मचारियों का भविष्य पॉलिसी के खिलाफ लगाई गई याचिका के फैसले पर निर्भर करेगा। 
कोर्ट ने सरकार से मांगा था जवाब: हाईकोर्ट ने वर्तमान हरियाणा सरकार से पूछा था कि क्यों नियमितीकरण की इस पाॅलिसी पर रोक लगा दी जाए। लेकिन सरकार ने कोई मजबूत जवाब देकर जून 2016 में इस पाॅलिसी को लागू करने का फैसला लिया और कुछ कर्मचारियों को नियमित भी कर दिया। 
कर्नाटक के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट भी दे चुका है फैसला: याचिकाकर्ता ने कहा कि सुप्रीमकोर्ट ने कर्नाटक सरकार बनाम उमादेवी के केस में साफ कहा था कि राज्य सरकार द्वारा अनुबंध अन्य प्रकार से जो भी अनियमित नियुक्तियां की जाती हैं राज्य उन्हें नियमित करें। मामले में सुप्रीमकोर्ट ने कहा था कि सर्विस के लिए पूरा प्रोसेस होता है और अनियमित कर्मचारी जो बिना किसी प्रोसेस के कार्यरत हैं उन्हें कैसे पक्का किया जा सकता है। 
हरियाणा में ग्रुप बी, सी डी के पदों पर जिन अस्थाई कर्मियों की नियुक्ति की गई, उसमें नियमों का कोई पालन नहीं किया गया था। इन कर्मचारियों को नियमित करने का फैसला सीधे तौर पर बैकडोर एंट्री है। जबकि सुप्रीम कोर्ट का साफ निर्देश है कि सरकारी सर्विस के लिए पूरा प्रोसेस अपनाया जाना चाहिए। अन्यथा जो काबिल लोग हैं, उनका हक मारा जाएगा। 
हुड्‌डा सरकार ने वर्ष 2014 में विभिन्न विभागों में कॉन्ट्रैक्ट, एड-हॉक एवं अस्थायी तौर पर तीन वर्षों से अधिक कार्यरत ग्रुप बी, सी और डी के 20 हजार कर्मचारियों को नियमित करने का फैसला लिया था। इस फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। जिसमें याची ने कहा कि चुनाव से ठीक पहले लिया गया फैसला चुनाव जीतने के लिए किया गया प्रयास था। 

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साभार: भास्कर समाचार 
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