Sunday, July 24, 2016

सोशल मीडिया का दुरुपयोग: बढ़ रही हैं मुश्किलें

साभार: विराग गुप्ता (सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता)

सरकारों की विफलता के खिलाफ सोशल मीडिया अभिव्यक्ति का आधुनिक और ग्लोबल माध्यम बन गया है जहां कई बार बिंदास बोलों से सनसनी फैलाई जाती है। अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप तथा ब्रिटेन के विदेश मंत्री बोरिस जॉनसन के भाषणों पर गौर करें तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नेताओं की बदजुबानी का ट्रेंड बढ़ रहा है जिसका प्रयोग सोशल मीडिया के नेटीजेंस भी करने लगे हैं। पाकिस्तान जैसे रूढ़िवादी देश में सोशल मीडिया पर बेबाकी से अपनी बात रखने वाली कंदील बलोच की हत्या के बाद महिलाओं की सुरक्षा का सवाल और अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। भारत में ट्रॉलिंग के गोरखधंधे को लगाम लगाने की केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी की पहल से सोशल मीडिया तथा कानून की दुनिया में विवादों का बखेड़ा खड़ा हो गया है। ट्विटर, वाट्सएप और फेसबुक के माध्यम से बदतमीजी, धमकी या आतंकित करने को इंटरनेट की भाषा में ट्रॉलिंग कहते हैं। कुछ महिला पत्रकारों, गायिका सोना महापात्र सहित केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी भी ऑनलाइन उत्पीड़न और ट्रॉलिंग का शिकार रही हैं। बॉलीवुड के सुल्तान सलमान खान जो खुद महिला आयोग की जांच के दायरे में हैं, ने भी सोशल मीडिया के गैर-जवाबदेह बर्ताव पर चिंता जाहिर की है। 13 वर्ष से छोटे बच्चों को सोशल मीडिया पर अकाउंट खोलने की इजाजत नहीं है, पर एसोचैम की रिपोर्ट के अनुसार 73 फीसद से ज्यादा बच्चे इसके इस्तेमाल से यौन शोषण तथा अन्य जघन्य अपराधों का शिकार हो रहे हैं।

भारत में ट्विटर का सर्वप्रथम सफल प्रयोग कांग्रेसी नेता शशि थरूर ने किया। इसके बाद अन्ना आंदोलन और दिल्ली चुनाव में अरविंद केजरीवाल तथा 2014 के लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया के बेहतरीन इस्तेमाल से सत्ता हासिल की। सोशल मीडिया पर संचालित संगठित गिरोहों के आतंक से कई नामचीन लोगों ने फेसबुक तथा ट्विटर का इस्तेमाल ही बंद कर दिया। सोशल मीडिया के माध्यम से ध्रुवीकरण, असहिष्णुता और अराजकता पर अंतरराज्यीय परिषद की मीटिंग में भी चिंता व्यक्त की गई। बेंगलुरू में उत्तर-पूर्व के लोगों के विस्थापन, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दंगों, कश्मीर में आतंकी ध्रुवीकरण तथा जिहादी भर्ती के लिए आइएस द्वारा सोशल मीडिया के दुरुपयोग की बढ़ती शिकायतों के बाद केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी सख्त कार्रवाई की जरूरत बताई। देश में 100 करोड़ मोबाइल यूजरों और 35 करोड़ इंटरनेट यूजरों के सही जांच व सत्यापन करने की जवाबदेही मोबाइल कंपनियों की है, परंतु 17 करोड़ सोशल मीडिया यूजरों की जांच की कोई व्यवस्था नहीं है। फेसबुक और ट्विटर की सालाना अधिकृत रिपोर्ट में ऐसे फर्जी ग्राहकों की संख्या आठ फीसद परंतु इंडस्ट्री के अनुमान के अनुसार सोशल मीडिया में 30 फीसद फर्जी यूजर हो सकते हैं। फेसबुक एवं ट्विटर जैसी कंपनियां इसे जानबूझकर नहीं रोकतीं, क्योंकि ज्यादा अकाउंट होने से उनकी आमदनी बढ़ती है। दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार इंटरनेट कंपनियों को 36 घंटे के भीतर आपत्तिजनक सामग्री हटाने के लिए शिकायत अधिकारी की नियुक्ति करनी चाहिए जिनसे जनता ई-मेल या टेलीफोन पर संपर्क कर सके। इन नियमों की जानकारी प्रशासन एवं पुलिस अधिकारियों को भी नहीं है तो कंपनियों से इसका पालन कौन सुनिश्चित करवाएगा? इंटरनेट कंपनियों द्वारा भारत से लाखों करोड़ की आमदनी के बावजूद न तो शिकायतों के समाधान की जवाबदेही और न ही टैक्स भुगतान का कानूनी उत्तरदायित्व पूरा किया जा रहा है।

इसके दुरुपयोग का भयावह रूप तब सामने आया जब उड़ीसा और तमिलनाडु में महिलाओं ने सोशल मीडिया पर यौन उत्पीड़न से त्रस्त होकर आत्महत्या कर ली। इस पृष्ठभूमि में मेनका गांधी की मंशा तो अच्छी है परंतु प्रस्तावों की घोषणा से पहले यदि कानूनी पहलुओं पर विचार और अन्य मंत्रलयों से परामर्श किया जाता तो बेहतर समाधान निकलता। इंटरनेट पर कानून को लागू करने की जटिलता तथा अव्यावहारिकता की वजह से केंद्रीय महिला आयोग ने भी मेनका गांधी के प्रस्तावों पर हामी भरने से इन्कार कर दिया। इस फजीहत के बाद केंद्रीय महिला मंत्रलय को स्पष्टीकरण देना पड़ा कि सोशल मीडिया पर उत्पीड़न के खिलाफ महिलाओं को पुलिस में एफआइआर दर्ज करानी होगी तभी महिला मंत्रलय कोई सहयोग या कार्रवाई कर सकेगा।

सोशल मीडिया में फर्जी अकाउंट्स और फॉलोअर्स के बढ़ते चलन से राजनीतिक दल भी परेशान हैं। हालिया दिलचस्प मामले में उत्तर प्रदेश भाजपा ने निर्देश दिए हैं कि फेसबुक पर 25 हजार लाइक का टार्गेट पूरा करने के लिए विधायक पद के प्रत्याशियों द्वारा फर्जीवाड़ा न किया जाए। प्रधानमंत्री मोदी और उनके कई मंत्री ट्विटर पर जनता से बेहतर संवाद करते हैं, परंतु उनके 13 मंत्रियों के पास ट्विटर अकाउंट ही नहीं है। नवनियुक्त केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के डुप्लीकेट अकाउंट से सांप्रदायिक ट्वीट के बाद पुलिस को अंतत: एफआइआर दर्ज करनी पड़ी परंतु उनके तथाकथित ट्विटर हैंडल पर तो पहले ही कई केंद्रीय मंत्री बधाई दे चुके हैं। महिलाओं को राहत देने का बीड़ा उठाए केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के नाम पर खुद आठ ट्विटर अकाउंट हैं। ट्विटर द्वारा महत्वपूर्ण लोगों के अकाउंटस को सत्यापित करने की व्यवस्था है, जिसका लाभ 23 केंद्रीय मंत्रियों द्वारा नहीं लिए जाने से फर्जीवाड़ा होता है। मेनका गांधी ने महिलाओं को शोषण से बचाने के लिए जरूरी सत्यापन के बाद ही वैवाहिक वेबसाइट्स पर शादी के विज्ञापन जारी करने की जो योजना बनाई थी उसे आइटी मंत्रलय की मंजूरी मिल गई है। यदि देश में सोशल मीडिया यूजर के अकाउंट का सत्यापन इंटरनेट कंपनियों द्वारा कर दिया जाए तो ट्रॉलिंग और अराजकता के मामलों में भारी कमी आ सकती है। सरकार द्वारा मॉनिटरिंग की नई व्यवस्था बनाने के बजाय शिकायत अधिकारी व्यवस्था को और अधिक प्रभावी बनाने की जरूरत है, जिससे जनता और पुलिस, दोनों को राहत मिलेगी।

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साभारजागरण समाचार 
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