आपनेकहीं ऐसा रेलवे स्टेशन देखा है, जहां ट्रेनें ठहरती हों, यात्री चढ़ते-उतरते हों, पर रेलवे टिकट ही बेचता हो। यानी यहां से सवार होने वाले तमाम यात्री बेटिकट। दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के मध्यप्रदेश के छादा स्टेशन में यह रोज की बात है। वह भी बीते 23 सालों से। देशभर में ऐसे 186 स्टेशन हैं। भारतीय रेल की ट्रेनों की पोजिशन
जानने के दो अधिकृत तरीके हैं। पहला पब्लिक रिजर्वेशन सिस्टम (पीआरएस) और दूसरा नेशनल ट्रेन इंक्वायरी सिस्टम (एनटीईएस)। रेलवे के ये दोनों सिस्टम इन स्टेशनों की गलत जानकारियां दे रहे हैं। एनटीईएस में ट्रेन जिस स्टेशन पर ठहरना दिखता है, वहां की टिकट लेने जाएं तो पीआरएस उस स्टेशन के होने से ही इनकार करता है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। दैनिक भास्कर ने आरटीआई से जानकारी ली तो पता चला कि 186 स्टेशनों में सैकड़ों ट्रेनें ठहरती हैं, लेकिन पीआरएस से टिकट जारी नहीं होता। इन स्टेशनों से सवार होने वाले बेटिकट होते हैं। उतरने वाले आगे या पीछे के स्टेशन की टिकट से यहां पहुंचते हैं। हालांकि कुछ दिनों पहले रेल मंत्री ने कहा है कि इन स्टेशनों को कमर्शियल स्टेशन बनाया जाएगा और यहां से यात्रियों को टिकट दिए जाएंगे।
मध्यप्रदेश के ऐसे ही एक स्टेशन को भास्कर ने जाकर देखा। बिलासपुर से कटनी जाने वाली पैसेंजर सुबह 6 बजे खुलती है। टिकट काउंटर पर छादा स्टेशन की टिकट मांगी गई तो जवाब मिला - ऐसा स्टेशन नहीं है। शहडोल का टिकट लेकर ट्रेन में सवार हुए।
ट्रेन ड्राइवर से पूछने पर जवाब मिला कि सुबह सवा 10 बजे छादा पहुंच जाएंगे। बुढ़ार के आगे ट्रेन जहां रुकेगी, वहीं छादा स्टेशन है। ट्रेन ठीक इसी वक्त वीरान जगह में ठहर गई। लोग उतरने लगे तो पता चला छादा स्टेशन गया। यहां प्लेटफार्म है, ही स्टेशन का बोर्ड। उतरकर देखा तो पता चला कि स्टेशन के नाम पर एक सिग्नल ही है। ट्रेन मिनट भर ठहरती है और आगे बढ़ जाती है। लोग सवार भी हुए। ग्रामीणों से पूछा कि सवार होने वालों को टिकट कहां से मिला होगा। जवाब मिला- यहां टिकट तो बिकता ही नहीं। अगले किसी स्टेशन में टिकट कटाइए या फिर बिना टिकट के सफर करिए। ट्रेनें आते-जाते वक्त जहां ठहरती हैं, वहां कुछ भी नहीं है। यहां से 200 कदम की दूरी पर छादा स्टेशन की बिल्डिंग है। यात्री प्रतीक्षालय है, टिकट काउंटर है, पर सब दिखावे के लिए। यहां पैनल बोर्ड है, जिसके लिए स्टेशन मास्टर की तैनाती भी है। तमाम संसाधन उपलब्ध हैं, ट्रेनें रुकती हैं, फिर भी रेलवे के सिस्टम में यहां स्टापेज ही नहीं है। छादा रेलवे स्टेशन से इस गांव के अलावा उधीया, गूड़धवा, धनपुड़ा, चौराडीह, पीपरतरा, विक्रमपुर, लालपुर, कंचनपुर, सेमरा गांव के लोग ट्रेन में चढ़ते उतरते हैं। बिना प्लेटफार्म वाले स्टेशन से ट्रेन में चढ़ना-उतरना खतरे से खाली नहीं है।
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साभार: भास्कर समाचार
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