एन रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
स्टोरी 1: वह16 साल की है मेधावी छात्रा तो नहीं है, लेकिन डल भी नहीं है। स्कूली शिक्षा के दौरान वह कभी फेल नहीं हुई, लेकिन ऐसे अंक भी नहीं मिले कि अखबारों में फोटो छप जाए। जब वह 10वीं में आई तो आस-पास के लोग लगातार उसे कहते रहते कि अब ऊंचे अंक लाना उसकी भविष्य की कॅरिअर योजनाओं के लिए बहुत जरूरी है। दबाव के चलते वह कठोर मेहनत करने लगी और 2014-15 में वह 78 फीसदी अंक लाने में कामयाब रही। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। अंकों के प्रतिशत की बात नहीं पर वह इसके लिए तैयार नहीं थी कि उसे आगे क्या करना है। इससे उसके पेरेंट उसके कॅरिअर को लेकर नई रणनीति पर विचार करने लगे। सागरिका के पिता एस. शिवकुमार अौर मां सावित्री ने तय किया कि उसे नियमित स्कूल की दिनचर्या से एक साल का ब्रेक दिया जाए। उन्होंने उसे अपनी जिंदगी हाथ में लेकर यह निर्णय लेने का अवसर दिया कि वह आगे अपने कॅरिअर में क्या करना चाहती है। विदेश में इसे 'स्टेपिंग आउट फॉर ईयर' कहते हैं। विकसित देशों में यदि आप पालकों से पूछे कि अापका बेटा या बेटी इस साल क्या कर रहा/रही है तो आश्चर्य नहीं कि यह उत्तर सुनने को मिले।
पढ़ाई से ब्रेक लेने के बाद आलस्य में डूब जाना बहुत आसान है। इसलिए शिवकुमार और सावित्री ने सागरिका को सोमवार से शुक्रवार तक का टाइम-टेबल दिया और वीकेंड के लिए अलग कार्यक्रम दिया। टाइम-टेबल में कई बातें शामिल थीं। नियमित रूप से जिम्नेशियम जाना, रोज अखबार पढ़ना, कंप्यूटर क्लास, विभिन्न कंपनियों में कई अल्पकालीन इंटर्नशिप, कुछ आम प्रोडक्ट को घर-घर जाकर बेचना, दोपहर को 20 मिनट की पॉवर नैप यानी झपकी और आखिर में शाम को किसी एक पालक के साथ किसी विषय पर गहराई से विचार-विमर्श करना। विचार-विमर्श में विषय के आधारभूत स्तर से उस स्तर तक की चर्चा शामिल थी, जिस स्तर पर वह आगामी दशकों में पहुंच सकता है।
जब उसके स्कूल जाने वाले साथी पाठ्यपुस्तकों पर आधारित परिक्षाएं दे रहे थे, वह अपना वक्त विज्ञान मेलों में जाने और डाक्यूमेंटरी फिल्माने में गुजार रही थी। नौ महीने के अंत में उसे लगा कि उसे व्यावहारिक दुनिया का अधिक अनुभव हो गया है। वह 'पिक्टाक्शनरी' नामक मोबाइल अप्लीकेशन विकसित करने में अपने पालकों की मदद कर रही है। यह दृश्यात्मक-शब्दावली का जरिया है। अपने 'अनस्कूल्ड ईयर्स' पर ब्लाग्स को किताब का रूप देना उसका अगला लक्ष्य है। इस साल वह 11वीं कक्षा में फिर मुख्यधारा में शामिल हो गई।
स्टोरी 2: बचपनसे बाइकिंग में रुचि होने के कारण बेंगलुरू के एस. भारत ने पांच साल के बाद साहसिक यात्राओं की जिंदगी की उम्मीद में बिज़नेस छोड़ दिया। उन्हें लगा कि बिज़नेस उनकी असली चाहत नहीं है। वे मूल रूप से बाइक पर देश घूमना चाहते थे और बाद में बाइकिंग अभियानों पर परामर्श सेवाएं देने की संस्था खोलना चाहते थे। किंतु उन्होंने अपने इस जुनून को एक मिशन से जोड़ा। वे साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए भारत, भूटान और नेपाल की 20 हजार किलोमीटर की यात्रा पर निकले, जो पिछली 17 जुलाई को बेंगलुरू से शुरू हुई। उनकी इस यात्रा को रोटरी इंटरनेशनल का सपोर्ट है। वे विभिन्न सरकारी स्कूलों में जाकर आधारभूत सुविधाओं और ढांचे का सर्वे कर रहे हैं। यात्रा के अंत में वे रोटरेक्ट क्लब के स्वयंसेवकों और अन्य नागरिक संगठनों की मदद से प्रत्येक स्कूल की समस्याएं सुलझाने की योजना बनाएंगे। रविवार तक वे 50 सरकारी स्कूलों में जाकर उनकी स्थिति, सुधार के क्षेत्र आदि का सर्वे कर चुके थे। बाद में रोटरी इंटरनेशनल इस सर्वे के नतीजे को कार्रवाई के लिए संबंधित सरकारी संगठन को सौंपेगा।
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साभार: भास्कर समाचार
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