Sunday, May 1, 2016

लेख: पाकिस्तान में हो रही झूठ की पढाई, गैर मुस्लिमों के प्रति फैल रहा जहर

धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग ने अपनी रिपोर्ट में दोहराया है कि पाकिस्तान में मदरसे और सरकारी स्कूल हिन्दुओं, ईसाइयों तथा अन्य गैर मुस्लिमों के बारे में झूठी, विषैली बातें पढ़ाते हैं। सरकारी स्कूलों की पाठ्य पुस्तकें भी गहरी इस्लामी रंगत लिए होती हैं। उनमें या तो गैर इस्लामी विश्वासों का उल्लेख नहीं होता
या जब होता है तो निंदा के साथ। विशेषकर हिन्दुओं के प्रति उनमें अपमानजनक बातें लिखी होती हैं। इससे वहां गैर मुस्लिमों के प्रति हिंसा और भेदभाव की घटनाएं बढ़ती हैं। 
कई बार पाकिस्तानी नेताओं, मंत्रियों ने भी माना कि पाठ्य पुस्तकें बदली जानी जरूरी है, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। पांच वर्ष पहले खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के शिक्षा मंत्री सरदार हुसैन ने कहा था कि सिलेबस और पाठ्यचर्या बदले जाने की सख्त जरूरत है। चौदह वर्ष पहले खुद पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ और उनके मंत्री मसूद अहमद गाजी ने ऐसे दस हजार मदरसों पर कार्रवाई की बात की थी जो घृणा, हिंसा और आतंकवाद फैलाने के जिम्मेदार हैं। यदि फिर भी इस बिंदु पर पाकिस्तान में कोई प्रगति नहीं हुई तो समझना चाहिए कि समस्या कितनी गहरी जड़ जमाए है। हमने कभी नहीं सुना कि बार-बार पाकिस्तान जाने वाले भारतीय बुद्धिजीवियों, पत्रकारों ने वहां की पाठ्य-पुस्तकों, मदरसों का कोई अध्ययन या समीक्षा प्रस्तुत की हो। जबकि पश्चिमी पत्रकारों, संगठनों ने यह कार्य व्यवस्थित रूप से किया है। जरा विचारें-पाकिस्तान के स्थायी भारत-विरोध को देखते हुए क्या हमारे बुद्धिजीवियों की गफलत अनजाने है? जो देश पाकिस्तानी नीतियों से सबसे अधिक दुष्प्रभावित हुआ, वहीं के लेखक-पत्रकार उन विषैली पाठ्यचर्या का महत्व न समङों तो इस स्थिति को क्या कहा जाए? 
अमेरिकी संस्था ‘इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिलीजन एंड डिप्लोमैसी’ ने एक पाकिस्तानी संस्था के साथ मिलकर वहां के चार प्रांतों की सौ से अधिक पाठ्य पुस्तकों का अध्ययन किया था। उन्होंने असंख्य शिक्षकों और छात्रों से भी बातचीत की। ताकि उस शिक्षा के तथ्य और मानसिकता का प्रामाणिक आकलन किया जा सके। इसी तरह एक अमेरिकी शोधकर्ता ईवेत क्लेर रोसेर वर्षो से कुछ देशों की पाठ्य पुस्तकों पर शोध करती रही हैं। उन्होंने पाकिस्तानी पाठ्य पुस्तकों पर एक पूरी किताब लिखी है- ‘इस्लामाइजेशन ऑफ पाकिस्तानी सोशल साइंस टेक्स्ट बुक्स।’ यह पुस्तक पाकिस्तानी राजनीति और इस्लामी अंधविश्वास की विडंबनाओं का आकलन है। जैसे वहां की पाठ्य पुस्तकों में एक ओर हर तरीके से पाकिस्तानी राष्ट्रवाद उभारा जाता है, लेकिन दूसरी ओर बुनियादी इस्लामी सिद्धांतों को सही बताने के लिए राष्ट्रवाद को नकारा भी जाता है। 
पाकिस्तानी पाठ्य पुस्तकों में इतिहास की कई शताब्दियां गुमकर दी गई हैं। केवल वे घटनाएं बीच-बीच से उठाई जाती हैं जिससे पाकिस्तान संबंधी ‘विचार’ का ऐतिहासिक क्रम दिखे। वहां इतिहास की शुरुआत आठवीं सदी से होती है यानी वैदिक-सरस्वती, मोहेनजो-दारो, हड़प्पा आदि सभ्यताएं महत्वहीन, काफिर थीं जिन्हें मिटना ही था। उनका जिक्र पाकिस्तानी पाठ्य पुस्तकों में नहीं मिलता। आठवीं के बाद सीधे बारहवीं सदी, फिर सोलहवीं आती है। मानो इनके बीच कुछ हुआ ही नहीं। 712 ई. में मुहम्मद बिन कासिम द्वारा भारत पर पहला हमला, फिर 1025 में महमूद गजनवी का सोमनाथ मंदिर विध्वंस, 1192 में मुहम्मद गोरी का पृथ्वीराज चौहान को हराना, 1526 में बाबर द्वारा भारत में मुगल-राज की स्थापना, 1658-1707 के औरंगजेब काल में इस्लाम और हंिदूुओं का संघर्ष, टीपू सुल्तान का 1782-1799 के बीच दबदबा, 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत, फिर सैयद अहमद खां, शाह वलीउल्ला, सैयद बरेलवी, अल्लामा इकबाल से होते हुए 1940 में मुस्लिम लीग का पाकिस्तान प्रस्ताव एवं कायदे आजम मुहम्मद अली जिन्ना। कुल यही पाकिस्तानी स्कूलों, कॉलेजों में इतिहास की पढ़ाई है। इन घटनाओं के सिवा उस धरती पर कुछ नहीं हुआ, जो आज पाकिस्तान कहा जाता है। ऐसा विचित्र इतिहास नई पीढ़ियों के माथे में भरने की जिद में बड़ी कसरतें करनी पड़ी हैं। जैसे सिंध के हंिदूू राजा दाहिर पर मुहम्मद बिन कासिम की जीत प्रभावशाली बताने के लिए दाहिर को क्रूर और कासिम को लोकप्रिय दिखाया गया है। लेकिन सिंधी लोग वास्तविक इतिहास जानते हैं।
इसी तरह बलूच लोग जानते हैं कि उनके पूर्वज अग्नि-पूजक पारसी थे। उन सबने जान बचाने की खातिर इस्लाम कबूला था। लेखिका को क्वेटा के इतिहासकार प्रो. आगा मीर नसीर खान ने यह भी बताया कि क्यों अफगान व पठान ज्यादा कट्टरपंथी होते हैं। अफगानों-पठानों को इस्लामी हमलावरों का कहर बार-बार ङोलना पड़ा था। हमलावर उन्हें तलवार दिखाकर धर्मातरित करते, लेकिन उनके जाने के बाद धर्मातरित मुसलमान फिर से बौद्ध बन जाते। जब हमलावर फिर आते तो जान बचाने की खातिर अफगान व पठान खुद को कट्टर मुसलमान दिखाने की कोशिश करते। ऐसा कई बार हुआ। इस तरह सायास अपनाई गई कट्टरता अंतत: उनका स्वभाव बन गई। पाकिस्तानी मानसिकता में यह विडंबना आज भी दिखती है। वैश्विक आतंकवाद का मूल सांगठनिक, रणनीतिक, प्रशिक्षण स्नोत वहीं होना और क्या है? मजे की बात है कि पाकिस्तान में इतिहास की हर उस चीज को तफसील से पढ़ाया जाता है जिसे यहां मार्क्‍सवादी ‘हंिदूू संप्रदायवादियों द्वारा गढ़ा झूठ’ बताते हैं। 
-एस शंकर (लेखक बड़ौदा के महाराजा सायाजीराव विवि में प्रोफेसर हैं)
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साभारजागरण समाचार 
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