प्रदेश में उपद्रव की जांच के लिए गठित कमेटी की पिछले दो दिन की जांच के दौरान यह तथ्य सामने आए हैं कि अफसरों ने सेना के साथ तालमेल नहीं बैठाया और इसके चलते हालात लगातार बिगड़ते गए। सेना और अर्धसैनिक बल केवल फ्लैग मार्च तक सीमित रहे। फ्लैग मार्च को भी पुलिस अधिकारी केवल भीड़ तक लेकर जाते और वापस ले आते। रोहतक में पीड़ितों, प्रशासनिक व पुलिस के अधिकारियों के बयान दर्ज करने के बाद कमेटी प्रमुख पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह ने कहा है कि लोगों से बातचीत में अफसरों की घोर लापरवाही सामने आई है। उपद्रव पर काबू पाने के लिए सेना को सरकार से आदेशों की जरूरत नहीं थी। सेना केवल ड्यूटी मजिस्ट्रेट के आदेश मानती और जितनी भी कार्रवाई होती, वह ड्यूटी मजिस्ट्रेट के आदेश पर ही होती है।कमेटी के सामने अभी केवल रोहतक में अफसरों की लापरवाही सामने आई है।
जाट आरक्षण आंदोलन में उपद्रव की शुरुआत रोहतक से हुई थी। 18 फरवरी को वकीलों और गैर जाट बिरादरी के लोगों में भिड़ंत हुई। इसके बाद कुछ उपद्रवियों ने बाइकों और गाड़ियों को फूंक डाला। उसी दिन अर्धसैनिक बल के जवानों को बुलाया गया था, जिनको केवल स्थानीय पुलिस के पीछे लगाया गया। अगले दिन हालात ज्यादा बिगड़ गए और रोहतक के साथ ही कई जिलों में उपद्रव शुरू हो गया। दंगाइयों को काबू करने के लिए सेना को बुलाया गया, लेकिन कर्फ्यू के बाद भी उपद्रव बढ़ता चला गया। जांच कमेटी प्रमुख प्रकाश सिंह का मानना है कि सेना के साथ ही अर्धसैनिक बल व अधिकारियों के बीच तालमेल में कमी रही। तालमेल बेहतर होता तो दंगा कंट्रोल किया जा सकता था। क्योंकि सेना व अर्धसैनिक बल को पुलिस-प्रशासन की ओर से कोई भी सही जानकारी नहीं दी गई।
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साभार: अमर उजाला समाचार
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