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ज्वार एक देसी अनाज है जिसकी खेती भारत के अनेक राज्यों में की जाती है।
इसके कोमल भुट्टों को भूनकर भी खाया जाता है। वैसे ज्वार बहुत ही पौष्टिक
और स्वादिष्ट होता है और इसमें अनेक पोषक तत्व भी पाए जाते हैं। आदिवासी
ज्वार की रोटी बड़े चाव से खाते हैं। ज्वार का वानस्पतिक नाम सौरघम बायकलर
है। देसी अनाज के तौर पर अपनाने के अलावा आदिवासी इसे हर्बल नुस्खों के लिए
भी अपनाते हैं। चलिए आज जानते हैं ज्वार के औषधीय गुणों के बारे में। - पेट के कीड़े: आदिवासी ज्वार के दानों को भूनकर रात में सोने के समय बच्चों को करीब 2 ग्राम मात्रा नमक के साथ मिलाकर चबाने की सलाह देते हैं। आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार यह पेट के कीड़ों को मार देता है।
- पेट की जलन: डांग गुजरात के आदिवासी भुनी हुई ज्वार को ज्वार के साथ खाने की सलाह देते हैं। इससे पेट की जलन कम हो जाती है।
- शरीर की जलन: ज्वार का आटा पानी में घोलकर शरीर पर लेप करने से शरीर की जलन दूर हो जाती है और यह शीतल भी होता है। यह शरीर को ठंडक पहुंचाता है। इसमें पोटैशियम, फॉस्फोरस, कैल्शियम और आयरन होता है।
- मासिक धर्म के विकार: मासिक धर्म से जुड़े विकारों के समाधान के लिए आदिवासी ज्वार के भुट्टे को जलाकर छानते हैं और राख संग्रहित कर लेते हैं। इस राख की 3 ग्राम मात्रा लेकर सुबह खाली पेट मासिक-धर्म चालू होने से लगभग एक सप्ताह पहले देना शुरू करते है। जब मासिक-धर्म शुरू हो जाए, तो इसका सेवन बंद करवा दिया जाता है। इनके अनुसार इससे मासिक-धर्म के सभी विकार नष्ट हो जाते हैं।
- एसिडिटी में आराम: पातालकोट के आदिवासी हर्बल जानकार मानते हैं कि ज्वार के आटे को पानी में मिलाकर रात में गाढ़ा उबाल लिया जाए और अंधेरी जगह में रख दिया जाए, सुबह इसमें जीरा और छाछ मिलाकर पीने से पेट की जलन कम होती है। इससे एसिडिटी में काफी फायदा होता है।
- प्यास लगना: ज्वार की रोटी को प्रतिदिन छाछ में डुबोकर खाने से अधिक प्यास लगना बंद हो जाता है। ऊंची पहाड़ों पर चढ़ाई से पहले आदिवासी अक्सर ज्वार की रोटी और छाछ का सेवन करते हैं।
- पीलिया: पीलिया रोग होने पर आदिवासी इसके बीजों को उबालकर रोगी को इसका पानी देते हैं। माना जाता है कि यह पीलिया के दुष्प्रभाव को कम करता है। इसके साथ ही हेपेटाइटिस रोग में भी कारगर होता है।
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साभार: अमर उजाला समाचार
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