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प्रोटीन के खजाने को समेटे हुए दालें शाकाहारी भोजन का महत्वपूर्ण भाग
होती हैं। स्वादिष्ट होने के साथ-साथ पाचन की दृष्टि से भी बहुत लाभदायक
होती हैं। प्रोटीन के अलावा इसमें कार्बोहाइड्रेट, कई प्रकार के विटामिन्स,
फॉस्फोरस और खनिज तत्व पाए जाते हैं, जो शरीर स्वास्थ रखने के साथ-साथ कई
प्रकार की बीमारियों को भी दूर रखते हैं। दालें कई प्रकार की होती हैं और
इन्हें
पकाने के तरीके भी अलग-अलग होते हैं। आज हम इन्हीं दालों और उनसे
होने वाले फायदों के बारे में जानेंगे:
पीली मूंग दाल: मूंग दाल दो प्रकार की होती है हरी और पीली। धुली और छिली हुई मूंग
दालें पीले रंग की होती हैं। दालों में प्रोटीन की मात्रा सबसे ज्यादा पाई
जाती है। पकाने में आसान होने के साथ ही यह पचाने में भी आसान होती है। साथ
ही शाकाहारी लोगों की पसंदीदा डिशेज़ में से भी एक है। पीली मूंग दाल मे 50 प्रतिशत प्रोटीन, 20 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 48
प्रतिशत फाइबर, 1 प्रतिशत सोडियम और कोलेस्ट्रॉल की मात्रा ना के बराबर
होती है। बीमार लोगों के लिए पीली मूंग दाल बहुत फायदेमंद होती है। दाल के
साथ-साथ इसका सूप भी पिया जा सकता है। भारत में इसे ज्यादातर रोटी और चावल
के साथ खाया जाता है। इसके फायदे हैं ये:
- पीली मूंग दाल में प्रोटीन, आयरन और फाइबर बहुत ज्यादा मात्रा में पाया जाता है।
- पोटैशियम, कैल्शियम और विटामिन बी कॉम्पलेक्स वाली इस दाल में फैट बिल्कुल नहीं होता।
- अन्य दालों की अपेक्षा पीली मूंग दाल आसानी से पच जाती है।
- इसमें मौजूद फाइबर शरीर के फालतू कोलेस्ट्रॉल को कम करते हैं।
- बीमारी में इस दाल का सेवन काफी फायदेमंद होता है।
- गर्भवती महिलाओं को भी हफ्ते में कम-से-कम 3 दिन इस दाल का सेवन करना चाहिए।
- इसमें मौजूद अनेक प्रकार के तत्वों से बच्चों से लेकर बड़ों तक को कई स्वास्थ्यवर्धक फायदे होते हैं।
- स्वास्थ्य के साथ-साथ बच्चों में विकास संबंधी कई जरूरी पोषण की कमी पूरी करती है।
चना दाल: मकई के दानों जैसे दिखने वाले ये छोटे-छोटे चने होते हैं। काले चनों को
दो टुकड़ों में तोड़कर उन्हें पॉलिश करके चना दाल तैयार किया जाता है। यह
भारतीय खाने का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। लजीज और पौष्टिक होने के साथ
ही पचने में भी आसान होते हैं। खाने के अलावा सौंदर्य बढ़ाने में भी इसका
उपयोग किया जाता है। जो बेसन होता है, वो आटे के साथ पीसकर बनाया गया इसका
ही एक रूप है जिसका प्रयोग भी भारत के कई राज्यों में व्यजनों के तौर पर
किया जाता है। चने दाल में भी प्रोटीन और फाइबर की सबसे ज़्यादा मात्रा पाई जाती है,
जो पाचन की दृष्टि से बहुत लाभदायक है। 100ग्राम चना दाल में 33000 कैलोरी,
10-11 ग्राम फाइबर, 20 ग्राम प्रोटीन और सिर्फ 5 ग्राम फैट होता है।
- चना दाल में फाइबर की मात्रा सबसे अधिक होती है जो कोलेस्ट्रॉल कम करती है।
- स्वादिष्ट होने के साथ ही इसमें ग्लाइसमिक इंडेक्स होता है जो डायबिटीज के मरीजों के लिए बहुत फायदेमंद होता है।
- चना दाल में जिंक, फोलेट, कैल्शियम और प्रोटीन भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक होते हैं।
- वसा की मात्रा बहुत कम होती है। इसमें सिर्फ पौलीअनसैचुरेटेड फैट होता है।
- इसके सेवन से एनीमिया, कब्ज, पीलिया, डिसेप्सिया, उल्टी और बालों के गिरने की समस्या दूर हो जाती है।
- नॉन-वेजिटेरियन्स के सारे जरूरी पोषक तत्व उन्हें चिकन और मटन से मिल जाते हैं, लेकिन वेजिटेरियन्स के लिए पोषक तत्वों का सबसे बड़ा खजाना दालों में ही मौजूद होता है।
- इसमें मौजूद अमिनो एसिड जैसे आईसोल्यूसीन और लाईसीन से बहुत अधिक मात्रा में प्रोटीन मिलता है, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत लाभदायक होता है।
- इस दाल में फाइबर भी उच्च मात्रा में पाया जाता है।
- प्रोटीन के अलावा, इसमें फोलेट, विटामिन बी1, मिनरल्स, पोटैशियम, आयरन और लो कोलेस्ट्रॉल होता है।
- पेट के रोगों से लेकर पाचन क्रिया से संबंधित कई प्रकार की समस्याएं दूर होती हैं।
- मसूर की दाल का सूप पीने से आंतों और गले से संबंधित रोगों में आराम मिलता है।
- दाल का पाउडर बनाकर दांतों पर रगड़ने से दांतों के सभी रोग भी दूर हो जाते हैं। साथ ही उनमें चमक भी आती है।
- एनीमिया के रोगी के लिए यह दाल बहुत ही फायदेमंद है। कमजोरी की समस्या भी दूर होती है।
- मसूर की दाल का भस्म बनाकर घावों पर लगाने से घाव जल्दी भर जाते हैं।
- मसूर की दाल को रात में भिगोकर सुबह दरदरा पीसकर दूध के साथ चेहरे पर लगाने से चेहरे में निखार आता है। साथ ही दाग-धब्बे, पिंपल्स आदि से छुटकारा भी मिलता है।
काली बीन्स: छोटे-छोटे काले, चिकने से दिखने वाले ब्लैक बीन्स भारत में ही नहीं,
अमेरिका में भी आम तौर पर खाए जाते हैं। ये एंटी-ऑक्सीडेंट्स का अच्छा
स्रोत होते हैं। महज एक कप काले बीन्स के सेवन से 90 प्रतिशत तक फोलेट
प्राप्त किया जा सकता है। काली बीन्स में 109 कैलोरी, 20 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 8 ग्राम फाइबर
पाया जाता है। 100 ग्राम काली बीन्स में 1500 मिलीग्राम पोटैशियम, 9
मिलीग्राम सोडियम और 21 ग्राम प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है। साथ ही इसमें
मौजूद विटामिन ए, बी12, डी और कैल्शियम भी स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद
होता है। बीन्स में फैट की मात्रा तो कम होती ही है, साथ ही इससे शरीर के
लिए आवश्यक ओमेगा-3 और ओमेगा-6 की पूर्ति भी होती है।
- बीन्स कोलेस्ट्रॉल कम करने वाले फाइबर का अच्छा स्रोत है।
- थायामीन(विटामिन बी1), फॉस्फोरस, आयरन, कॉपर, मैग्नीशियम और पोटैशियम की भी अच्छा स्रोत है।
- वसा की मात्रा बहुत कम होती है, लेकिन साथ ही इसमें गैस बनाने वाले एंजाइम्स भी होते हैं, इसलिए हमेशा इसे पकाने से पहले कुछ देर के लिए भिगोकर रखना चाहिए।
- कोलेस्ट्रॉल कम करने के साथ ही इसमें मौजूद फाइबर ब्लड में ग्लूकोज की मात्रा को तेजी से बढ़ने से रोकता है, जो इन दालों को डायबिटीज, इंसुलिन रेसिसटेंट या हाईपोग्लाईसिमिया से जूझ रहे रोगियों के लिए उपयुक्त बनाता है।
- गर्भवती महिलाओं के लिए काले बीन्स में मौजूद फोलेट बच्चे के विकास में बहुत फायदेमंद होते हैं। बीन्स के उपयोग से आपकी वेस्टलाइन के बढ़ने की संभावना 23 फीसदी कम हो जाती है।
उड़द दाल: दालों की महारानी उड़द दाल सफेद और काली दो प्रकार की होती है। साउथ एशिया में इसकी पैदावार सबसे ज्यादा है। उड़द को एक अत्यंत पौष्टिक दाल के रूप में जाना जाता है। यह अन्य प्रकार
की दालों से अधिक बल देने वाली और पौष्टिक भी होती है। उड़द की दाल में
प्रोटीन, विटामिन बी थायमीन, राइबोफ्लेविन और नियासिन, विटामिन सी,
आयरन,कैल्शियम, घुलनशील रेशा और स्टार्च पाया जाता है। छिलकों वाली उड़द
की दाल में तो भरपूर मात्रा में विटामिन औरखनिज लवण पाए जाते हैं और
कोलेस्ट्रॉल बिल्कुल नहीं। गरम मसालों सहित छिलके वाली दाल ज्यादा गुणकारी
होती है। प्रति 100 ग्राम उड़द दाल में 341 कैलोरी, 38 मिलीग्राम सोडियम, 983
मिलीग्राम पोटैशियम, 59 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 18 ग्राम फाइबर और 25 ग्राम
प्रोटीन की मात्रा होती है।
प्रति 100 ग्राम मूंग दाल में 347 कैलोरी, 62.62 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 16.3 ग्राम फाइबर, और 23.86 ग्राम प्रोटीन की मात्रा होती है। इसके साथ ही इसमें कई प्रकार के विटामिन्स सी, ई, के, बी6, फोलेट, पेंटोथेनिक एसिड, नियासिन, राइबोफ्लेविन, थियामिन भी मौजूद होते हैं। कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, मैंगनीज़, फॉस्फोरस, पोटैशियम, जिंक आदि की भी भरपूर मात्रा पाई जाती है।
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- इसमें बहुत सारा आयरन होता है, जिसे खाने से शरीर को बल मिलता है। इसमें रेड मीट के मुकाबले कई गुना आयरन होता है ।
- जिन लोगों की पाचन शक्ति प्रबल होती है, वे यदि इसका सेवन करें, तो उनके शरीर में रक्त, बोन मैरो की वृद्धि होती है। इसमें बहुत सारे घुलनशील रेशे होते हैं, जो पचने में आसान होते हैं।
- कोलेस्ट्रॉल घटाने के अलावा भी काली उड़द स्वास्थ्यवर्धक होती है। यह मैग्नीशियम और फोलेट लेवल को बढ़ाकर आर्टरीज़ को ब्लॉक होने से बचाती है। यह दिल को स्वस्थ भी रखती है, क्योंकि इससे ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है।
- एक सप्ताह तक इसका सेवन करने से पुराने से पुराना मूत्र रोग ठीक हो जाता है।
- अगर यंग लेडीज़ इस खीर का सेवन करें, तो उनका रूप निखरता है।
- ब्रेस्टफीड कराने वाली महिलाओं के स्तनों में दूध की वृद्धि होती है।
- यदि गर्भाशय में कोई विकार है, तो दूर होता है।
- चेहरे पर झाइयां और मुहांसों के दाग को उड़द दाल के फेस पैक से साफ किया जाता है। इससे चेहरे में निखार आता है और चेहरा चमकदार बन जाता है।
- अगर काली उड़द को पानी में 6 से 7 घंटे के लिए भिगोकर उसे घी में फ्राई करके शहद के साथ नियमित सेवन किया जाए, तो पुरुष की यौन शक्ति बढ़ती है और सभी विकार दूर होते हैं।
- जिन्हें अपचन की शिकायत हो या बवासीर जैसी समस्याएं हो, उन्हें उड़द की दाल का सेवन करना चाहिए। इसके सेवन से कब्ज़ की समस्या दूर हो जाती है।
- उड़द के आटे की लोई तैयार करके दागयुक्त त्वचा पर लगाई जाए और फिर नहा लिया जाए, तो ल्युकोडर्मा (सफेद दाग) जैसी समस्या में भी आराम मिलता है।
- डांग- गुजरात के आदिवासियों के अनुसार गंजापन दूर करने के लिए उड़द दाल एक अच्छा उपाय है। दाल को उबालकर पीस लिया जाए और इसका लेप रात सोने के समय सिर पर कर लिया जाए, तो गंजापन धीरे-धीरे दूर होने लगता है और नए बाल आने शुरू हो जाते हैं।
- फोड़े-फुंसियों, घाव और पके हुए जख्मों पर उड़द के आटे की पट्टी बांधकर रखने से आराम मिलता है। दिन में 3-4 बार ऐसा करने से आराम मिल जाता है।
- इसमें कैल्शियम, पोटैशियम, आयरन, मैग्नीशियम, मैंगनीज़ जैसे तत्व आदि भी भरपूर पाए जाते हैं और इसे बतौर औषधि कई हर्बल नुस्खों में उपयोग में लाया जाता है।
- छिलके वाली उड़द की दाल को एक सूती कपड़े में लपेटकर तवे पर गर्म किया जाए और जोड़ दर्द से परेशान व्यक्ति के दर्द वाले हिस्सों पर सिंकाई की जाए, तो दर्द में तेजी से आराम मिलता है। काली उड़द को खाने के तेल में गर्म करते हैं और उस तेल से दर्द वाले हिस्सों की मालिश की जाती है। इससे दर्द में तेजी से आराम मिलता है।
- इसी तेल को लकवे से ग्रस्त व्यक्ति को लकवे वाले शारीरिक अंगों में मालिश करनी चाहिए, फायदा होता है।
- दुबले लोग अगर छिलके वाली उड़द दाल का सेवन करें, तो यह वजन बढ़ाने में मदद करती है।
- माइग्रेन के मरीजों को अरहर के पत्तों तथा दूब (दूर्वा घास) का रस समान मात्रा में तैयार कर नाक में डालने से लाभ मिलता है।
- अरहर की कच्ची दाल को पानी में पीसकर पिलाने से भांग का नशा उतार सकते हैं।
- ज्यादा पसीना आने की शिकायत होने पर एक मुट्ठी अरहर की दाल, एक चम्मच नमक और आधा चम्मच पिसी हुई सोंठ लेकर सरसों के तेल में छौंककर शरीर पर मालिश करने से अधिक पसीना आने की समस्या से निदान मिलता है।
- घाव सूखने के लिए अरहर के कोमल पत्ते पीसकर घाव पर लगाने चाहिए।
- दांत दर्द की शिकायत होने पर अरहर के पत्तों का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से फायदा मिलता है।
- अरहर की दाल को छिलके सहित पानी में भिगोकर रखें। फिर इससे कुल्ला करें। अरहर की ताजी हरी पत्तियों को चबाने से भी मुंह के छालों में आराम मिलता है।
- अरहर के पौधे की कोमल डंडियां, पत्ते आदि दूध देने वाले पशुओं को खिलाते हैं, ताकि वे अधिक दूध दें।
प्रति 100 ग्राम मूंग दाल में 347 कैलोरी, 62.62 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 16.3 ग्राम फाइबर, और 23.86 ग्राम प्रोटीन की मात्रा होती है। इसके साथ ही इसमें कई प्रकार के विटामिन्स सी, ई, के, बी6, फोलेट, पेंटोथेनिक एसिड, नियासिन, राइबोफ्लेविन, थियामिन भी मौजूद होते हैं। कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, मैंगनीज़, फॉस्फोरस, पोटैशियम, जिंक आदि की भी भरपूर मात्रा पाई जाती है।
- हरी मूंग दाल प्रोटीन और पाचन में सहायक फाइबर का अच्छा स्रोत है।
- इसमे वसा कि मात्रा कम होती है और यह विटामीन बी कॉम्पलेक्स विटामीन, कैल्शियम और पौटैशियम से भरपूर होता है।
- अन्य दाल कि तुलना मे इसे खाने से गैस या अपच नहीं होती।
- पकी हुई हरी मूंग दाल पचाने में आसान होती है। इसलिए यह बच्चों, बड़े, बिमार और वृद्ध के लिए लाभदायक होती है।
- बिमारी में हरी मूंग दाल का सूप बहुत लाभदायक होता है।
- बचपन, प्रेग्नेंसी और ब्रेस्टफीड करते समय इसका लगातार उपयोग ज़रुरत मात्रा मे पौषण प्रदान करने के साथ-साथ स्वस्थ रखने मे मदद करता है।
- अधिक मात्रा मे इसका प्रयोग करने पर यह एक दवा के रुप में काम करती है।
- चावल और मूंग की खिचड़ी खाने से कब्ज दूर होती है | खिचड़ी में घी डालकर खाने से कब्ज दूर होकर दस्त साफ आता है।
- मूंग को सेंककर पीस लें। इसमें पानी डालकर अच्छी तरह से मिलाकर लेप की तरह शरीर पर मालिश करें। इससे ज्यादा पसीना आना बंद हो जाता है।
- मूंग की छिलके वाली दाल को दो घंटे के लिए पानी में भिगो दें। इसके बाद इसे पीसकर गाढ़ा लेप दाद और खुजली युक्त स्थान पर लगाएं, लाभ होगा।
- टायफॉयड के रोगी को मूंग की दाल बनाकर देने से लाभ होता है, लेकिन दाल के साथ घी और मसालों का प्रयोग बिलकुल ना करें।
- मूंग को छिलके सहित खाना चाहिए। बुखार होने पर मूंग की दाल में सूखे आंवले को डालकर पकाएं। इसे रोज़ दिन में दो बार खाने से बुखार ठीक होता है और दस्त भी साफ होता है।
- मूंग दाल कैंसर के जीवाणुओं के बनने की प्रक्रिया को खत्म करती है।
- लोबिया शरीर के फालतू प्लाज्मा कोलेस्ट्रोल को कम करता है। साथ ही इसमें मौजूद प्रोटीन और फाइबर पाचन क्रिया को बेहतर बनाता है।
- लोबिया में मौजूद काले रंग का भाग एंटी ऑक्सीडेंट का काम करता है जो शरीर को कैंसर जैसी बीमारियों से बचाता है।
- लोबिया दाल का सेवन वजन कम करने में भी सहायक होती है।
- फाइबर और फ्लेवोनॉयड्स की मात्रा से डायबिटीज रोग में आराम मिलता है।
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साभार: भास्कर समाचार
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