ड्यूअल डेस्क खरीद में स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारियों की लापरवाही से
सरकार को करोड़ों रुपये की चपत लगी है। प्राथमिक शिक्षा निदेशक ने अगर
समझदारी से काम लिया होता तो सरकार के करोड़ों रुपये बच सकते थे। अधिकांश
डेस्क मुहैया कराने का ठेका विभाग ने दो अयोग्य फर्म को दे दिया, जबकि सभी
मापदंड पूरा करने वाली फर्म से मात्र बीस प्रतिशत डेस्क ही लिए गए। अस्सी
प्रतिशत स्टाक उपलब्ध कराने वाली कंपनियों ने 531.48 रुपये प्रति डेस्क
उत्पाद शुल्क वसूल किया। इससे सरकार को 7
करोड़ 61 लाख रुपये अतिरिक्त
चुकाने पड़े। शिक्षा विभाग ने अगर बद्दी की कंपनी डिजाइन ऐज इंटीरियर्स को
डेस्क का ठेका दिया होता तो उत्पाद शुल्क नहीं चुकाना पड़ता। नियंत्रक
महालेखा परीक्षक ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में उत्पाद शुल्क के साथ डेस्क
खरीद पर उंगली उठाई है। कैग के अनुसार शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने टेंडर
देते समय तीनों फर्म के रेट को लेकर तो मोल भाव किया, लेकिन उत्पाद शुल्क
के मामले में मार खा गए। अगर तुलनात्मक रिपोर्ट तैयार की जाती तो सरकारी
कोष में साढ़े सात करोड़ रुपये बच सकते थे। कैग ने अपनी रिपोर्ट में
कंपनियों की ओर से प्रस्तावित रेट व टेंडर रेट का भी जिक्र किया है। ओके
प्ले इंडिया मेवात ने शुरुआती रेट 5801.06 रुपये प्रति इकाई, स्पेसवुड
फर्निशर्ज नागपुर ने 5880 रुपये प्रति इकाई और डिजाइन ऐज इंटीरियरज बद्दी
ने 5745 रुपये प्रति इकाई कोटेशन में भरे थे। विभाग के मोल भाव करने पर
तीनों कंपनियां 43 सौ रुपये पर एक डेस्क मुहैया कराने को राजी हो गई। लेकिन
ओके प्ले इंडिसा व स्पेसवुड फर्निशर्ज ने प्रति डेस्क 531.48 रुपये का
उत्पाद शुल्क भी वसूला, जबकि डिजाइन ऐज ने कोई उत्पाद शुल्क नहीं लिया।
विभाग ने सबसे अधिक 1 लाख 7 हजार 755 डेस्क का टेंडर ओके प्ले इंडिया कंपनी
को दिया, जबकि दो अन्य कंपनियों से 35 हजार 448-35 हजार 448 डेस्क
खरीदे गए। कैग ने रिपोर्ट में कहा है कि बद्दी की कंपनी डिजाइन ऐज पूरा
स्टाक मुहैया करा सकती थी। टेंडर में उसने स्टाक उपलब्ध न करा पाने की बात
भी नहीं कही है, ऐसे में दो अन्य फर्मो से इतने बड़े स्तर पर डेस्क क्यों
खरीदे गए, ये संदेह पैदा करता है। कैग के आपत्ति पर स्कूल शिक्षा विभाग के
प्रधान सचिव ने बीते वर्ष दिसंबर में सफाई देने की भी कोशिश की। प्रधान
सचिव ने कहा कि सरकारी कोष में कोई हानि नहीं हुई, चूंकि उत्पाद शुल्क
केंद्र सरकार के खाते में गया है। प्रधान सचिव के इस जवाब को कैग ने खारिज
कर दिया। कैग ने टिप्पणी की है कि अगर बद्दी की फर्म को ठेका देते तो 7.61
करोड़ रुपये हरियाणा सरकार के कोष से निकलते ही नहीं।
साभार: जागरण समाचार