Monday, March 2, 2015

शिक्षा के बजट में अब तक की सबसे बड़ी कटौती

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शिक्षा पर केंद्र सरकार के सीधे खर्च में अब तक की सबसे बड़ी कटौती की गई है। पढ़ाई-लिखाई पर केंद्र पिछले साल के मुकाबले 13 हजार करोड़ रुपये कम खर्च करेगा। इसकी एक बड़ी वजह केंद्रीय करों की राज्यों के साथ साङोदारी की नई व्यवस्था भी है। मगर 16 फीसद की अब तक की इस सबसे बड़ी कटौती का सबसे ज्यादा असर स्कूली शिक्षा पर होगा।
हर ब्लॉक में एक आदर्श स्कूल खोलने की योजना से सरकार ने पूरी तरह हाथ खींच लिया है। मानव संसाधन विकास मंत्रलय के एक वरिष्ठ सूत्र ने इस बारे में कहा कि नई सरकार ने पाया है कि कई योजनाओं में संसाधनों के सवरेत्तम उपयोग पर ध्यान नहीं दिया जा रहा। लिहाजा योजनाओं का बजट बढ़ाने की बजाय धन के बेहतर इस्तेमाल पर जोर दिया गया है। उधर, सर्व शिक्षा अभियान के खर्च में राज्यों की हिस्सेदारी भी बढ़ाई जा रही है। राज्यों को इसमें समस्या इसलिए नहीं होगी, क्योंकि वित्त आयोग की सिफारिश के बाद केंद्र अपनी कर आय में से राज्य का हिस्सा दस फीसदी बढ़ा रहा है। इसके बावजूद वे मानते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र की विभिन्न महत्वाकांक्षी योजनाओं को देखते हुए 69 हजार करोड़ रुपये नाकाफी होंगे। जिन केंद्रीय योजनाओं को इस बार पूरी तरह राज्यों के भरोसे छोड़ दिया गया है, उनमें हर ब्लॉक में एक मॉडल स्कूल खोलने की योजना भी शामिल है। इसके तहत छह हजार ऐसे स्कूल खोले जाने की योजना थी। हालांकि मिड डे मील को अब भी केंद्र पूरी तरह अपने ही कंधे पर चलाता रहेगा। ज्यादा मार स्कूलों पर1बजट में सबसे ज्यादा कमी स्कूली शिक्षा और साक्षरता के खर्च पर हुई है। पिछले बजट में इसे 55 हजार करोड़ रुपये दिए गए थे, जबकि इस बार यह 42 हजार करोड़ भर रह गया है। उच्च शिक्षा के बजट में भी मामूली कटौती हुई है। पिछले बजट में जहां 28 हजार करोड़ रुपये इस काम के लिए रखे गए थे, इस बार भी 27 हजार करोड़ रुपये उपलब्ध होंगे। बजट के खर्च में भी पीछे नई सरकार भी शिक्षा के बजट का उपयोग करने में बहुत पिछड़ी रही। स्कूली शिक्षा के लिए मौजूदा वित्त वर्ष में कुल 55 हजार करोड़ उपलब्ध थे। मगर सरकार ने माना है कि 31 मार्च तक उसमें से महज 47 हजार करोड़ ही खर्च हो सकेंगे। इसी तरह उच्च शिक्षा के लिए दिए गए 28 हजार करोड़ में इस वर्ष 24 हजार करोड़ ही खर्च होने का अनुमान है। 

साभार: जागरण समाचार
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