Tuesday, May 16, 2017

लाइफ मैनेजमेंट: धार्मिक आस्था में होती है अनूठी और अद्‌भुत शक्ति

एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
स्टोरी 1: कुछ साल पहले डाएन जिनेट कैलिफोर्निया के एक अस्पताल के बरामदे में खड़ीं होकर अपने चार माह के पोते साइमन के लिए व्याकुल होकर प्रार्थना कर रही थीं, जो जीवन-मृत्यु के संघर्ष में फंसा था। मैं आपको
बता दूं कि प्रार्थना के दौरान वे अपनी आंखों के सामने तिरुवनंतपुरम के अट्‌टुकल देवी मंदिर की भद्रकाली देवी का चेहरा सामने ला रही थीं। जिनेट के मुताबिक ऐसा इसलिए था, क्योंकि इस देवी का मातृ रूप भी है तो योद्धा स्वरूप भी, जो भावनात्मक सांत्वना प्रदान करती हैं। जिनेट ने भद्रकाली की मौजूदगी को महसूस किया और उनका पोता बच गया। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। उनकी आस्था बहुत मजबूत थी, क्योंकि वे इस मंदिर में 20 वर्षों से आती रही हैं। 2017 का साल उनकी इस तीर्थयात्रा का 24वां साल था, जब वे मार्च में सालाना 'पोंगल' उत्सव में भाग लेने आई थीं। इस मंदिर की उनकी यात्राएं 1993 में शुरू हुई थीं, जब वे कैलिफोर्निया के पैलो अल्टो स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रांसपर्सनल साइकोलॉजी में वुमन्स स्पिरिचुअलिटी की प्रोफेसर थीं। वे देवियों और महिला केंद्रित उत्सवों पर शोध कर रही थीं। उन्होंने अपने इंस्टीट्यूट के लिए शोध निबंध भी लिखा था। जिनेट ने इस उत्सव को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्यात बनाया। उन्होंने किसी भी धार्मिक आयोजन में महिलाओं की सबसे ज्यादा उपस्थिति वाले उत्सव के रूप में इस मंदिर का नाम गिनीज़ बुक में दर्ज कराया। अब तो इस उत्सव में महिलाओं की मौजूदगी 30 लाख तक पहुंच गई है। वे मंदिर के बरामदे में घंटों प्रार्थना करती रहतीं, जहां सैकड़ों स्तंभ इस सदियों पुराने मंंदिर के 'गोपुरम' को उठाए रहते हैं। 
स्टोरी 2: जहां जिनेट हर साल इन स्तंभों को देखकर खुश होती हैं वहीं, 85 वर्षीय दुबले-पतले, मुस्लिम टोपी लगाए मोहम्मद हनीफ वहां से बहुत दूर बिहार की राजधानी पटना में प्रसिद्ध चिरैयत फ्लाइओवर को उठाने वाले स्तंभों के शीर्ष को हर सुबह पौ फटने के पहले देखते रहते। जैसे ही हनीफ को वे देखतीं हजारों की संख्या में अपने 'घरों' से नीचे उतर पड़तीं। वे उन्हें गेहूं के दाने और सेब के टुकड़े डालते। वे एक घंटे तक अपना शानदार नाश्ता करतीं और फिर उड़ जातीं। ये और कोई नहीं गोरैया (चिड़िया) होती हैं, जो लुप्तप्राय: प्रजातियों में पहुंच गई हैं और जिन्हें बिहार राज्य का राजकीय पक्षी होने का गौरव प्राप्त है। उन्हें मुश्किल से ही राजधानी में देखा जाता है लेकिन, उस पुल के पास सैकड़ों की संख्या में दिख जाती हैं, जहां हनीफ फलों की दुकान चलाते हैं। आम के सैकड़ों बक्से उन चिड़ियाओं का घोंसला बन गए हैं, जिन्हें बड़ी सफाई से पुल के स्तंभों से बांधकर कतार में रखा गया है, जिनमें घास-फूस का आराम भी है और जो इन चिड़ियाओं के लिए बिस्तर का काम करता है। हनीफ को मक्का मदीना की यात्रा के बाद गोरैया को संरक्षण देने की जरूरत महूसस हो रही थी, जहां उन्होंने हजारों चिड़ियाएं देखी थीं। उनकी आस्था है कि ये छोटे पक्षी खुशियां लेकर आते हैं। 
स्टोरी 3: डोनाल्डट्रम्प और 'अमेरिका पहले' के युग में तिलंगाना के सबसे पुराने चिलकुर बालाजी मंदिर, जिसकी 'वीज़ा मंदिर' के रूप में ख्याति 1984 तक जाती है, आकर्षण का केंद्र बन गया है। अमेरिका के स्टुडेंट अथवा एच1बी वीज़ा के लिए आवेदन करने वाले दर्शनार्थियों की बेचैनी यहां प्रवेश करते ही खत्म हो जाती है। मंदिर हैदराबाद से एक घंटे की ड्राइव पर है। यहां पर दान स्वीकार नहीं किया जाता। ये उन कुछ थोड़े से मंदिरों में से है, जिनमें वीआईवी संस्कृति को बढ़ावा नहीं दिया जाता। भगवान बालाजी को तो आभार विनय की मुद्रा में लगाई 108 परिक्रमाएं ही प्रसन्न कर देती हैं। वहां पुजारी और श्रद्धालुओं की आस्था है कि भगवान के पास वीज़ा का अपना कोटा है।
फंडा यह है कि आस्था में अनूठी शक्ति होती है कम से कम इस पर भरोसा करने वालों के सामने तो इसे विज्ञान से सिद्ध करना बहुत कठिन है। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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