Friday, May 19, 2017

स्वच्छता और हमारी लापरवाही: प्लास्टिक से हमारे रिश्तों पर फिर विचार करें

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
रेलवे के भोजन खासतौर पर साफ-सफाई में अब तक भरोसा हो पाने के कारण बुधवार शाम को मैं मुंबई सीएसटी स्टेशन के सामने प्रेस क्लब में गया, डिनर पैक करवाया और जलगांव के एक कार्यक्रम में भाग लेने के
लिए हावड़ा मेल की एसी फर्स्ट बोगी में सवार हो गया। चूंकि मेरे कैबिन में कोई यात्री नहीं था तो मैंने सोचा किसी के आने के पहले अपना डिनर कर लिया जाए। उसके बाद प्लास्टिक की थैली में कचरा लेकर मैं डस्टबिन खोजता रहा लेकिन, कोई नतीजा नहीं निकला। कोच अटेंडेंट ने बोगी का दरवाजा खोला और थैली बाहर फेंक देने को कहा पर मैंने इनकार कर दिया। फिर उसने टॉयलेट के अंत में, जहां बोगी दूसरी बोगी से जुड़ती थी, वहां कचरा फेंकने को कहा। मैं तथैली लेकर अपनी सीट पर लौट आया। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। अटेंडेंट ने मुझे अजीब-सी निगाहों से देखाूं। आगे के स्टेशन पर यात्री ट्रेन में सवार हुए और डिनर के बाद अटेंडेंट के बताए अनुसार कचरे की थैली टॉयलट के पास रख दी। 
रात 3 बजे से कुछ मिनट पहले मैं उठा और जल्दी ही आने वाले जलगांव स्टेशन पर उतरने के लिए तैयार हो गया। अटेंडेंट मेरे हाथ में सूटकेस अन्य सामान के साथ कचरे की थैली देखकर धक्क रह गया। उसकी व्यंग्य भरी मुस्कान कह रही थी, 'अरे नादान, इस कचरे के ढेर को देखो, तुम्हारी एक थैली इस बोगी को बदबू से कैसे बचा सकती है?' जब ट्रेन रुकी तो मैं स्टेशन पर उतरा और गार्बेज बिन खोजकर थैली उसमें डाल दी। फिर मैं बिना कोई अपराध बोध लिए प्रवेश द्वार से बाहर चला गया कि कम से कम बोगी को कचरे का डिब्बा बनाने के लिए मैं तो जिम्मेदार नहीं हूं। दो खबरें मैंने ऐसी पढ़ी थीं, जिनकी वजह से मैंने कचरे को लेकर यह संकल्प दिखाया। 
पहली मेरे अपने मुंबई महानगर से: कम से कम 2.10 अरब लीटर मानव मल मेरे शहर की महानगर पालिका समुद्र में डालती है, जिसके कारण बीच बर्बाद हो गए हैं और पर्यटन उद्योग को अत्यधिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। एमटीडीसी जैसे सरकारी होटल बोर्डी जैसे दूर की जगहों के रिज़ॉर्ट बंद करने पर मजबूर हुए, क्योंकि गंदे पानी के कारण पर्यटकों ने वहां आना ही बंद कर दिया। पहले मुंबई तट से पांच मील के दायरे में मछलियां पकड़ी जाती थीं, अब 20 नॉटिकल मील तक जाना पड़ता है, जिससे सी-फूड महंगा हो गया है। बढ़ते फिकल कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया के कारण समुद्री जल की गुणवत्ता खराब हो गई है और टायफाइड, हिपेटाइटिस, गेस्ट्रोएंट्राइटिस, डिसेंट्री और कई तरह के संक्रामक रोग बढ़ रहे हैं। 
दूसरा वैश्विक परिदृश्य: चिली और न्यूजीलैंड के ठीक बीच में 10 किलोमीटर लंबा अौर पांच किलोमीटर चौड़ा निर्जन द्वीप है हेंडरसन आइलैंड। पांच हजार किलोमीटर के दायरे में कोई मानव नहीं है और फिर भी इस द्वीप के हर इंच पर 671.6 प्लास्टिक आइटम पड़े हैं। प्लास्टिक के खिलौने, सिगरेट लाइटर, टूथब्रश और हर आकार, प्रकार रंग की प्लास्टिक की थैलियां वहां पड़ी हैं। अमेरिका की नेशनल अकेडमी ऑफ साइंसेस ने हाल में जारी सर्वे में यह बताया है। यूं ही छोड़ दिए गए मछली के जालों में समुद्री कछुए फंसकर मर गए थे। विभिन्न प्रजातियों वाला यह सुंदर द्वीप लापरवाही से फंेके गए कचरे का पहला शिकार बन गया है। ध्यान रहे कि 1954 में हम वैश्विक स्तर पर 17 लाख टन कचरा पैदा करते थे, जो 2014 में 31.10 करोड़ टन हो गया। इसमें से ज्यादातर रिसाइकल नहीं होता और लौट आता है। हम मानव लगातार ऐसी चीजें बनाते रहते हैं जो हमेशा बनी रहती है पर हम इन्हें कुछ ही क्षणों बाद फेंक देते हैं। यदि हम अपना यह रवैया नहीं बदलते तो इस सुंदर ग्रह के गार्बेज बिन बनने का खतरा हमारे सामने है। 
फंडा यह है कि हमें सिर्फ प्लास्टिक बल्कि हर तरह के कचरे को लेकर हमारे रवैये पर पुनर्विचार करना होगा,जो हम यूं ही फेंक देते हैं। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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