Monday, November 14, 2016

विद्यार्थियों के लिए भी और आप सबके लिए भी: कुछ नामुमकिन नहीं, खुद को पहचानें

दीक्षा तायल

वर्तमान समय काफी हलचल भरा है। आपाधापी के इस युग में चारों तरफ भाग-दौड़ मची हुई है। हर कोई फर्श से अर्श तक पहुंचना चाहते हैं। मंजिल कैसे मिले, इसी उधेड़बुन के चलते मानसिक तनाव घर कर जाता है। ये एक ऐसा विकार है जिससे विद्यार्थी भी ग्रस्त हैं। आखिर मानसिक तनाव है क्या? इसे साधारण शब्दों में बताया जाए तो मन में एक समय में कई विचारों का एक साथ चलना ही मानसिक तनाव है। ये इतने तीव्र गति से चलते हैं कि व्यक्ति अंदर से बिखर जाता है और नकारात्मक उर्जा उत्पन्न होने लगती है। इस तनाव से बचने के लिए हमें सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करनी होगी। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। पॉजीटिव विचार रखने होंगे लेकिन असल में आमतौर पर हम इसके विपरीत चलते हैं। हमारा सारा ध्यान कर्म पर नहीं फल पर रहता है। यही बिखराव का मुख्य कारण है। हम अपनी शक्तियों को पहचान नहीं पाते। असफलता का भय हमेशा सताता है। इस विषय पर स्वामी विवेकानन्द ने ठीक कहा कि संसार में कोई भी वस्तु असफल नहीं है। जरूरत है तो अपने आप को पहचानने की। एक जापानी कहावत है कि "एक व्यक्ति वहीं काम कर सकता है जो दूसरों ने किया है। तो हम अपने आपको और अपने अंदर छिपी हुई शक्तियों को पहचान कर और विचारों की बड़ी उड़ान भरकर सफलता प्राप्त कर सकते हैं। हां, हमें इसके लिए सच्ची लगन से मिशन में लगना चाहिए।" 

  1. प्रतिदिन सुबह पांच मिनट अपने आप से बात करें।
  2. एक घंटे के बाद एक लंबी गहरी सांस लें और छोड़ दें।
  3. शुद्ध आहार लें।
  4. सकारात्मक लोगों के बीच ज्यादा से ज्यादा रहें।
  5. सकारात्मक विचारों का चयन करें।
  6. प्रतिदिन पांच मिनट अपनी सांसों के साथ जुड़े और मन को शांत करें।
  7. पांच मिनट अनुलोम-विलोम करें।
  8. प्रतिदिन सुबह हल्का-फुल्का व्यायाम करें।
यदि विद्यार्थी गहराई से पढ़ें तो मानसिक तनाव उत्पन्न नहीं होगा बल्कि उनमें पढ़ाई के प्रति रुचि पैदा होगी।आज के युग में बच्चे के जन्म के साथ ही माता-पिता उसकी पढ़ाई-लिखाई की रूपरेखा अपने मन में सोच लेते हैं। उस नन्हे बच्चे को बहुत जल्द विद्यालय में प्रवेश दिला देते हैं। एक भारी-भरकम बस्ता मासूम के कंधों पर लाद देते हैं जबकि यह दिन बच्चे की उछल-कूद और मस्ती के होते हैं। जबरन लादने से पढ़ाई का तनाव एक बच्चे पर साफ नजर आने लगता है। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, उस पर ज्यादा अंक प्राप्त करने का माता- पिता की ओर से दबाव शुरू हो जाता है। आज अच्छे संस्थान में प्रवेश पाने के लिए ज्यादा से ज्यादा अंक लेने की होड़ मची हुई है। हर बच्चे की अपनी क्षमता होती है। अपनी क्षमता के अनुसार ही वह अंक प्राप्त करता है। कई बार कड़ी मेहनत के बाद भी वह उस स्तर को प्राप्त नहीं कर पाता जिसकी उसके माता-पिता को अपेक्षा होती है। ऐसे में हताश-निराश मासूम बच्चे को अपना रास्ता नजर नहीं आता। वह गैर सामाजिक गतिविधियों में शामिल हो जाता है। कई बार बच्चा निराश होकर गलत रास्ता अपनाकर अपना जीवन समाप्त कर लेता है। पिछले दिनों ऐसे कई उदाहरण हमने देखे है। बच्चे के स्वाभाविक विकास के लिए हर मां-बाप को उसकी रूचि के अनुसार अपनी पसंद के रास्ते पर चलने की इजाजत देनी चाहिए तथा उस पर कोई दवाब नही डालना चाहिए। माता-पिता को सिर्फ बच्चे को सही रास्ता चुनने को प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि बच्चा बिना तनावों के आगे बढ़ सके। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभारजागरण समाचार 
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