Monday, November 21, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: जागरूकता पैदा होने पर व्यक्ति में बुद्धिमत्ता अपने आप आती है

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
स्टोरी 1: हाल ही में एक फ्लाइट के दौरान मेरी मुलाकात मिस्टर जिओ बेयर से हुई। आपको उनके नाम के आगे मिस्टर लगाना पड़ेगा, यह अनिवार्य है। इसका कारण भी आपको जल्द ही पता चल पाएगा। उनके मौजूदा गार्डियन चाहते थे कि मैं उनके साथ कई फोटो खिंचवाऊं और मैं इनकार नहीं कर सकता था। मैंने सिर्फ इसलिए उनकी बात मान ली, क्योंंकि मिस्टर जिओ बेयर इतने क्यूट थे कि इनकार नहीं किया जा सकता था। कोलकाता से मुंबई की यात्रा में अगले तीन घंटे मैं खूब बोलता रहा और मिस्टर जिओ बेयर उनके बॉस मुझे पूरे ध्यान से सुनते रहे। बातचीत कई विषयों पर होती रही- पांच सौ-हजार के नोट वापसी के फैसले से लेकर विभिन्न भारतीय संस्कृतियों तक और बंगाली मिठाइयों से लेकर मंुबई की चिपचिपी, पसीना ला देने वाली नमीभरी जलवायु और भारतीय आदिवासियों के रहन-सहन के तौर-तरीके तक। मिस्टर बेयर अमेरिका के बोस्टन स्थित निजी स्कूल में छठी कक्षा में हैं और इस वक्त वे सहपाठी के पालक के साथ ट्रिप पर हैं। मजेदार बात है कि सहपाठी नहीं, उसके पालक के साथ वे हवाई यात्रा पर निकले हैं! 
कारण यह है कि जो भी पालक विदेश यात्रा करता है, उनके क्लास टीचर उन्हें उसे सौंप देते हैं और मिस्टर जिओ बेयर को उस पालक के साथ जाना पड़ता है। जिओ बेयर के साथ चल रहे पालक बिज़नेस और आधिकारिक बैठकों के लिए गई जगहों पर उसके साथ बहुत सारे फोटो खिंचाते हैं और जब दोनों बेस स्टेशन पर लौटते हैं तो अपना अनुभव टीचर को सुनाते हैं। मिस्टर जिओ बेयर के मामले में बेस स्टेशन बोस्टन है। 
लौटने के बाद क्लास टीचर मिस्टर जिओ बेयर को टेबल पर बिठाते हैं और फोटोग्राफ्स के माध्यम से शेष छात्रों को उस देश और संस्कृति के बारे में पढ़ाने लगते हैं, जहां जाकर मिस्टर बेयर ने अनुभव लिया है। यह सब इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि ज्यादातर अमेरिकी बच्चे समझते हैं कि दुनिया अमेरिका पर ही खत्म हो जाती है। बच्चों के ऐसे नज़रिये से भावी पीढ़ियों में शेष दुनिया से अलगाव पैदा हो सकता है और उनमें अहंकार भी बढ़ सकता है। अमेरिकी शिक्षा प्रणाली ने बच्चों को शेष दुनिया के बारे में पढ़ाने का यह अनोखा तरीका खोजा है। अापको यह जानकर बहुत आश्चर्य होगा कि ये महान मिस्टर जिओ बेयर हैं कौन? वह सिर्फ एक फीट ऊंचाई का टेडी बेयर है। और यही कारण है कि टेडी के साथ विदेश जाने वाले पालक के लिए एक ही शर्त होती है कि वे इस खिलौने, मेरा मतलब है मिस्टर जिओ बेयर को तो सूटकेस में रख सकते हैं और होटल में अकेले अपने भरोसे छोड़ सकते हैं। वह हर जगह आपके साथ होता है फिर चाहे बोर्ड मीटिंग्स ही क्यों हो। इस तरह विभिन्न संस्कृतियों कार्य-शैलियों का लाइव अनुभव अमेरिकी बच्चों को मिलता है। 
स्टोरी 2: यहूदी दार्शनिक मैमोनिड्स ने कहा है कि किसी आदमी को मछली दो तो आप उसके एक वक्त के भोजन की व्यवस्था करते हैं, लेकिन उसे मछली पकड़ना सिखा दें तो उसके जिंदगीभर के पोषण की व्यवस्था हो जाती है। यानी किसी को अपनी मदद पर निर्भर बनाने की बजाय उसे खुद काबिल बनाना ज्यादा अच्छा ही नहीं है बल्कि मानव गरिमा के अनुरूप भी है। कॉलेज की दो छात्राओं ने इस दार्शनिक की बेशकीमती सलाह को दिल से स्वीकार किया है। 
सड़क पर भीख मांग रहे बच्चे को भोजन या पैसे देने की बजाय मृण्मयी कोलापे और दीक्षा दिंडे ने उनके लिए खुले आसमान के नीचे-पुणे के डेक्कन स्थित जेड ब्रिज के नीचे स्कूल शुरू किया है। कर्वे इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल सर्विस में सोशल वर्क में मास्टर्स की छात्राओं ने सर्वे करके पता लगाया कि पुणे में रह रहे भिखारियों की तीसरी या चौथी पीढ़ी के होने के बावजूद उन बच्चों में से कोई पढ़ नहीं सका है। इन बच्चों को मालूम ही नहीं होता कि वे उस पैसे का क्या करें जो उन्होंने गुब्बारे बेचकर या ट्रैफिक सिग्नल पर भीख मांगकर कमाए हैं। इसलिए उन्होंने इन बच्चों को शिक्षित करने की योजना बनाई ताकि वे अपनी ऊर्जा को सही दिशा देकर जिंदगी में कुछ सार्थक काम कर सकें। महानगर पालिका से अनुमति लेकर पुल के नीचे चलाए जा रहे अभियान का नाम है 'ग्रीन सिग्नल।' 7 नवंबर से शुरू हुए इस प्रयास के तहत सड़क पर पल रहे 87 बच्चे शिक्षा ले रहे हैं। इनमें 12 वर्षीय छात्रा कविता काले खास तौर पर काबिले जिक्र है। वह विवाहि है और फर्ग्यूसन कॉलेज रोड पर गुब्बारे बेचती है। उसके ससूराल वाले नहीं चाहते कि वह पढ़े, लेकिन एक हफ्ते इस स्कूल में आने के बाद उसने अपनी तकदीर नए सिरे से लिखने की ठान ली है। 
फंडा यह है कि जागरूकता हर किसी को बुद्धिमान बना देती है। हां, जागरूकता लाने का तरीका परिस्थितियों के मुताबिक बदल जाता है और भिन्न स्वरूप ग्रहण कर लेता है। 

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साभार: भास्कर समाचार 
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