रौनकी राम,पीयू में शहीद भगत सिंह चेयर के प्रोफेसर लिखते है:
गुरमीत सिंह पर फैसले के बाद हरियाणा और पंजाब में राजनीतिक समीकरण बदलेंगे। नए समीकरण क्या बनेंगे, यह कोर्ट के फैसले पर निर्भर करेगा। फैसले की राजनीतिक दल किस तरह व्याख्या करते हैं, यह भी
समीकरण तैयार करेगा। यह सच है कि हरियाणा और पंजाब में तमाम राजनीतिक दल नेता डेरा प्रमुख से आशीर्वाद लेते रहे हैं। इसकी वजह से कई दलों की सरकारें भी बनी हैं। लेकिन डेरा प्रमुख के बरी होने या सजा होने की स्थिति में कोई भी राजनीतिक दल खुलकर श्रेय नहीं ले पाएगा। क्योंकि अगर डेरा प्रमुख को कोर्ट बरी करता है तो भाजपा या सरकार खुले तौर पर यह नहीं कह सकती कि उसने कोर्ट को मैनेज किया। क्योंकि हमारी न्यायपालिका स्वतंत्र है। यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक स्थिति है। इससे अल्प समय के लिए तो फायदा उठाया जा सकता है, लेकिन लंबी अवधि में यह सोसायटी के लिए नुकसानदायक होगा। पर सरकारों की गलत पॉलिसियों की वजह से भी लोग डेरों और आश्रमों की ओर जाते हैं। डेरे-आश्रम उनके बच्चों की पढ़ाई, रोजगार, बेटियों की शादी आदि सामाजिक कार्यों में मदद करते हैं। अगर यही काम सरकारें ठीक से करने लगे तो लोगों का रुझान डेरों की ओर इतना नहीं होगा। रोचक बात यह है कि डेरा प्रमुख या संत कभी राजनीतिक दलों के पास नहीं जाते, बल्कि राजनेता उनके पास जाते हैं। ताकि वह अपने समर्थकों के उनके पक्ष में वोट करा दें।
मंजीतसिंह,पीयू में समाजशास्त्र के प्रोफेसर लिखते हैं:
दरअसल, अगाध श्रद्धा के आगे सभी तर्क फेल हो जाते हैं। डेरा सच्चा सौदा प्रमुख संत राम-रहीम के मामले में भी कुछ ऐसा ही है। दरअसल, अनुयायी संत राम रहीम को अपना भगवान मानते हैं। वे यह मानने को तैयार ही नहीं है कि वह आपराधिक प्रवृत्ति वाले भी हो सकते हैं। इसकी वजह यह है कि ऐसे अनुयायियों में ज्यादातर लोग व्यवस्था या उच्च जातियों से प्रताड़ित शोषित होते हैं। ऐसे लोग संत राम रहीम ही क्या? किसी के भी साथ लग सकते हैं। उन लोगों को अपने गुरु के लिए इस तरह के प्रदर्शनों या कार्यक्रमों में आकर आत्म संतुष्टि मिलती है। हमारा मानना है कि सिखिज्म, हिंदुज्म और आर्य समाज के फेल होने की वजह से ही डेरे या आश्रम आदि बनते और आगे बढ़ते हैं। अगर सिखिज्म और आर्य समाज प्रभावी होते तो जाति-पाति की व्यवस्था ही नहीं होती। फिर ये डेरे आश्रम भी नहीं पनपते। इन्हें राजनीतिक दल शह देते हैं, क्योंकि वे इनका चुनावी फायदा उठाते हैं। राजनीतिक दलों ने सत्ता प्राप्ति के लिए डेरे का भरपूर फायदा उठाया है। हालांकि, डेरा प्रमुख संत राम-रहीम अपने बेटे को अपना उत्तराधिकारी बना चुके हैं। इसलिए अगर उन्हें सजा होती है तो उनका बेटा उत्तराधिकारी के रूप में डेरे की व्यवस्था को संभाल लेगा। लेकिन फैसले के बाद शांति बनाए रखना या कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने देना राजनीतिक दलों के हाथ में है। वही इसके जिम्मेदार होंगे। अब कौन राजनीतिक दल इसका कैसे फायदा उठाता है, कुछ नहीं कहा जा सकता।
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साभार: भास्कर समाचार
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