Wednesday, August 16, 2017

शिक्षा की जरूरतें पूरी करने में राज्य पीछे, बिहार की हालत सबसे खराब

स्कूली शिक्षा की हालत सुधारने के लिए सरकारें प्रयास तो करती आई हैं, पर इसके बावजूद अधिकांश राज्यों में मूलभूत सुविधाओं की आज भी कमी बनी हुई है। हालत यह है कि राज्यों में जरूरत के लिहाज से क्लासरूम और शिक्षकों की संख्या काफी कम है। बिहार, उत्तर प्रदेश और मप्र जैसे बड़े राज्यों मंे हालत ज्यादा खराब है।
बिहार के स्कूलों में जरूरत से 43 फीसदी तक कम हैं क्लासरूम: इसी वर्ष की शुरुआत में असर की रिपोर्ट में यह बात सामने आई थी कि पांचवीं कक्षा के छात्रों को पहली कक्षा की किताबें पढ़नी नहीं आती हैं। ऐसी ही कई रिपोर्ट और भी सामने आई हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। हाल ही में आई एक रिपोर्ट में इसके कुछ कारण भी सामने निकलकर आते हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी द्वारा 12 राज्यों पर की गई एक रिसर्च के मुताबिक क्लासरूम की कमी और जरूरत के लिहाज से कम बजट शिक्षा व्यवस्था के लिए सबसे बड़ी कमी है। वहीं कई राज्यों में जरूरत के लिहाज से क्लासरूम की संख्या भी काफी कम है। इस मामले में बिहार की हालत सबसे ज्यादा खराब हैं। बिहार में वर्तमान में 42.89 फीसदी अतिरिक्त क्लासरूम की आवश्यकता है। इसके बाद दिल्ली में 20 फीसदी क्लासरूम की कमी है। इसी प्रकार अोडिशा में मौजूद 17.85% और राजस्थान में 13.45% अतिरिक्त क्लासरूम की अावश्यकता है। अन्य राज्यों मंे भी लगभग यही हालत है। 
सभी राज्यों में शिक्षकों की कमी बड़ी समस्या: शिक्षकों की कम संख्या प्राइमरी और सेकंडरी स्तर पर शिक्षा के लिए बड़ी समस्या बन कर उभरी है। लगभग सभी राज्यों में दोनों स्तरों पर शिक्षकों की भारी कमी है। बिहार और उत्तरप्रदेश में अन्य राज्यों की अपेक्षा कहीं ज्यादा शिक्षकों की जरूरत है। उत्तरप्रदेश में करीब 8 लाख 10 हजार 542 शिक्षक और बिहार में 7 लाख 91 हजार 614 शिक्षकों की कमी है। इसके बाद महाराष्ट्र में 5 लाख 42 हजार 153, मध्यप्रदेश में 3 लाख 94 हजार 530 शिक्षकों की कमी है। इसी प्रकार झारखंड, कर्नाटक, ओडिशा, राजस्थान, तमिलनाडु में 2 लाख से ज्यादा शिक्षकों की कमी है। 
जरूरत का एक तिहाई भी खर्च नहीं करता बिहार: प्रति छात्र खर्च के मामले में भी अधिकतर राज्य बहुत पीछे हैं। 12 राज्यों में की गई इस रिसर्च के अनुसार 7 राज्य ऐसे हैं जो प्रति छात्र की जरूरत के लिहाज से 70 फीसदी से कम खर्च करते हैं। जबकि 3 राज्य तो 50 फीसदी से भी कम कर रहे हैं। बिहार, जहां शिक्षा व्यवस्था सबसे लचर नजर आती है, वहां प्रति छात्र पर जरूरत के लिहाज से 31 फीसदी ही खर्च किया जा रहा है। वहीं झारखंड में जरूरत की अपेक्षा 43.84 फीसदी और ओडिशा में 44 फीसदी ही खर्च किया जाता है। 
राज्य
जरूरत
किया जा रहा खर्च
प्रतिशत 
बिहार 
18029
5595
31

झारखंड
19396
8504
44
ओडिशा
24701
10890
44
मध्यप्रदेश
25183
13014
52
राजस्थान
25582
15135
59
दिल्ली
15425
9691
63
छत्तीसगढ़
23522
15432
66
तमिलनाडु करता है शिक्षा पर ज्यादा खर्च: शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए राज्यों को इसका बजट बढ़ाने के लिए समय-समय पर सुझाव मिलते रहे हैं। लेकिन कई राज्य तो जरूरत का आधा भी नहीं खर्च कर रहे हैं। तमिलनाडु इकलौता राज्य है, जो शिक्षा पर जरूरत से ज्यादा खर्च करता है और यही कारण है कि यहां का रिजल्ट अन्य राज्यों की अपेक्षा कहीं ज्यादा बेहतर होता है। तमिलनाडु में 10 हजार 491 करोड़ रुपए की जरूरत है, जबकि यहां शिक्षा पर 11 हजार 353 करोड़ रुपए खर्च किया जाता है। बिहार में शिक्षा पर सिर्फ 12 हजार 803 करोड़ रुपए खर्च होते हैं, जबकि जरूरत 41 हजार 261 करोड़ रुपए की है।
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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