Sunday, January 15, 2017

हंटर सिंड्रोम, रेयरेस्ट ऑफ रेयर: पांच साल के बच्चे की अटकती है सांस, दवा खर्च सालाना दो करोड़

ये कहानी है रांची की ऋचा सिंह और उनके पांच वर्षीय बेटे शौर्य की। शौर्य को हंटर सिंड्रोम बीमारी है। इसे रेयरेस्ट ऑफ रेयर की श्रेणी में रखा गया है। 100 वर्ष पहले खोजी गई इस बीमारी का इलाज दो साल पहले खोजा गया है। लेकिन सालाना खर्च है करीब दो करोड़ रुपए है। मध्यम वर्गीय परिवार के ऋचा और पति सौरभ
कहते हैं कि वे खुद को बेच दें तो भी शौर्य का इलाज नहीं करा सकते। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। मुख्यमंत्री से लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री तक गुहार लगाई लेकिन सबने यही कहा कि हमारी सूची में यह बीमारी है ही नहीं। झारखंड में इस बीमारी का यह पहला मामला है। अब सौरभ हाईकोर्ट में अपील कर मदद मांगनेे की तैयारी कर रहे हैं। तीन वर्षों से मासूम शौर्य ही नहीं उसके माता-पिता भी इस लड़ाई से लड़ रहे हैं। 
शौर्य 16 नवंबर 2011 को पैदा हुआ। तीन साल तक सब ठीक था। फिर लोगों ने कहना शुरू किया कि बेटे का सिर उसकी उम्र के बच्चों की तुलना में ज्यादा बड़ा है। यहां डॉक्टरों को दिखाया तो उन्होंने कहा यह सामान्य है। कुछ बच्चों का सिर बड़ा होता है। लेकिन जब लोगों ने ज्यादा बोलना शुरू किया तो मार्च 2014 में उसे सीएमसी वेल्लोर ले गए। जांच हुई तो पहली बार हंटर सिंड्रोम बीमारी का नाम सुना। दुनिया में पाई जाने वाली ऐसी बीमारियों में से एक, जिसका कोई इलाज नहीं है। इसने शौर्य को सिर्फ तीन साल की उम्र में अपनी गिरफ्त में ले लिया था। सौरभ बताते हैं सीएमसी वेल्लोर में डॉक्टरों ने जब यह बात बताई तो ऐसा लगा शरीर सुन्न पड़ गया है। दिमाग काम नहीं कर रहा था। हम दोनों की आंखों में आंसू थे। फिर बेटे को हैदराबाद स्थित सैंडोर प्रयोगशाला ले गए। वहां जांच में पता चला कि शौर्य इस बीमारी के टाइप-2 कैटेगरी से जूझ रहा है। डॉक्टरों ने बताया कि वह 12 वर्ष तक जी सकता है। सौरभ 40 हजार रु. महीने कमाते हैं। इतना महंगा इलाज कैसे कराएं? ऋचा कहती हैं पिछले तीन साल से सोते समय उसे सांस लेने में तकलीफ होती है। तब से मैं भी ढंग से सो नहीं पाई हूं।
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साभार: भास्कर समाचार 
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