सुखाड़िया विश्वविद्यालय से एमएससी बायोटेक में प्रथम बैच के पहले गोल्ड मेडलिस्ट प्रो. चूनाराम चौधरी सुखाड़िया की लैब से रिसर्च सीखने के बाद आज महज 40 साल की उम्र में दुनिया की सर्वश्रेष्ठ लैब जर्मनी डेनमार्क के कोपनहेगन यूनिवर्सिटी में रिसर्च कर रहे हैं। नागौर में साधारण परिवार में जन्मे चूनाराम सेंटर फॉर प्रोटीन रिसर्च में सिर्फ प्रोफेसर हैं बल्कि 10 वैज्ञानिकों का नेतृत्व भी कर रहे हैं। लैब में कैंसर जैसी गंभीर बीमारी की रोकथाम पर अनुसंधान होता है। यह
पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। महज 40 वर्ष की आयु में प्रोफेसर बनने वाले चूनाराम कभी बायोटेक कोर्स इसलिए छोड़ना चाहते थे क्योंकि उनकी अंग्रेजी काफी कमजोर थी। आज वे बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिकों के साथ अनुसंधान कर रहे हैं। चूनाराम शुक्रवार को बीएन यूनिवर्सिटी में छात्रों और शिक्षकों से संवाद करेंगे। सुविवि के बॉटनी विभाग के प्रोफेसर एसडी पुरोहित ने बताया कि अंग्रेजी काफी कमजोर होने के कारण वे बायोटेक कोर्स बीच में ही छोड़ना चाहते थे लेकिन कॉलेज के प्रोफेसरों ने प्रेरित किया। प्रो. पुरोहित ने बताया कि चूनाराम ने अपना प्रोजेक्ट मेरी लैब में पूरी की। एक बार दिल्ली से आए एक्सपर्ट एक्सटर्नल भी एक परीक्षा में चूनाराम के दिए सभी सवालों के जवाब देख हैरान रह गए। दिल्ली के प्रोफेसर एमबी राजम ने यह देख कहा था कि लड़का तो जीनियस है। मुझसे भी ज्यादा जानता है। इसे मेरे पास दिल्ली भेजो।
विज्ञान को बढ़ावा देने निशुल्क पढ़ा रहे प्रोफेसर: सुविवि के केमेस्ट्री और बायोलॉजी विभाग के प्रोफेसरों की एक टीम पिछले एक साल से सरकारी स्कूलों के बच्चों को निशुल्क पढ़ाकर विज्ञान के प्रति पढ़ने को लेकर प्रोत्साहित कर रही है। इंडियन सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्स एंड बायोलॉजिस्ट वेस्ट जोन के संयोजक प्रो. एके गोस्वामी ने बताया कि विज्ञान की पढ़ाई काफी महंगी है। वहीं, सरकारी स्कूलों में महज एक शिक्षक ही है, जो सभी विषय पढ़ाता है। ऐसे में विज्ञान के प्रति छात्रों का रुझान बढ़ाने के लिए विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों ने मिलकर अभावग्रस्त और संसाधन विहीन स्कूली बच्चों को विज्ञान के लिए प्रेरित करने की मुहिम चलाई है।
नेचर और साइंस पत्रिकाओं में 116 रिसर्च: प्रोफेसर एसडी पुरोहित ने बताया कि चूनाराम पर एक जर्मन वैज्ञानिक की नजर पड़ी और उसने उसे जर्मनी बुला लिया। मात्र 40 साल की उम्र में चूनाराम के 116 रिसर्च पेपर प्रकाशित हो चुके हैं। वह भी नेचर और साइंस जैसी पत्रिकाओं में जहां ज्यादातर नोबेल पुरस्कार से सम्मानित वैज्ञानिकों के रिसर्च छपते हैं।
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साभार: भास्कर समाचार
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