एसवाईएल पर पंजाब सरकार ने नया पैंतरा चला है। पंजाब विधानसभा के विशेष सत्र में बुधवार को दो अहम प्रस्ताव पास हुए। पहला सीएम परकाश सिंह बादल लेकर आए। इस प्रस्ताव के जरिए विधानसभा ने अपने ही मंत्रियों-अफसरों समेत पूरी सरकारी मशीनरी को आदेश दिए कि एसवाईएल बनाने में कोई सहयोग किया जाए।
किसी भी एजेंसी को जमीन सौंपी जाए। ही काम होने दिया जाए। ये प्रस्ताव लाकर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना से बचने की कोशिश की गई है, क्योंकि कोर्ट ने नहर बनाने की राय दी है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। दूसरा प्रस्ताव संसदीय कार्यमंत्री मदनमोहन मित्तल लेकर आए। ये नॉन राइपेरियन स्टेट्स राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली से पानी पर राॅयल्टी वसूलने का था, जिसे बैंस बंधुओं के विरोध के बाद संशोधित किया गया। 'रॉयल्टी' की जगह 'कीमत' शब्द किया गया। डिप्टी सीएम सुखबीर बादल ने कहा, 'पानी की कीमत तय करने के लिए चीफ सेक्रेटरी सर्वेश कौशन की अगुवाई में कमेटी बनाई जाएगी। इसमें फाइनांस और इरिगेशन डिपार्टमेंट के सेक्रेटरी भी होंगे।' इसके बाद बिल भेजा जाएगा। सदन में कोई बिल नहीं लाया गया, क्योंकि सरकार को राज्यपाल की मंजूरी पर संदेह था। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ कोई भी विधेयक अदालत की अवमानना के दायरे में जाता। पंजाब के इस प्रस्ताव को राजस्थान ने भी कानूनन गलत बताया है। राजस्थान के एडवोकेट जनरल, राजस्थान नरपत मल लोढ़ा ने कहा कि हम पंजाब के प्रस्ताव को चैलेंज करेंगे। पंजाब का ये दांव कितना वाजिब है? इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के दो पूर्व जजों ने भास्कर को बेबाक राय दी। जस्टिस अशोक भान और जस्टिस एचएस बेदी मानते हैं कि फेडरल सिस्टम में राज्यों के विवाद निपटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट, ट्रिब्यूनल और एग्जीक्यूटर्स हैं। फैसला हक में आए तो मानने से कोई राज्य इनकार कैसे कर सकता है। पानी पर रायॅल्टी का अधिकार किसी भी राज्य को नहीं है। जस्टिस भान ने कहा, 'जल बंटवारे के समझौते पर पंजाब राजी नहीं तो सभी पार्टियां पीएम की मध्यस्थता में बैठकर नया करार कर सकती हैं। या फिर सुप्रीम कोर्ट की बात मान लें, जहां पंजाब हार चुका। वहीं, जस्टिस बेदी का मानना है, 'पानी पर रॉयल्टी का फैसला दूसरे राज्यों पर नहीं थोप सकते। पानी की कीमत के प्रस्ताव से फर्क नहीं पड़ने वाला। पानी बंटवारा केंद्र के अधिकार क्षेत्र में आता है।
35 साल से पानी नहीं, पहले उसकी रॉयल्टी दो: एसवाईएल के जरिए 35 साल से जो पानी नहीं दिया, पंजाब पहले उसकी रॉयल्टी दे। जल बंटवारे में रॉयल्टी का कानूनी हक नहीं है। चीफ सेक्रेटरी, डीजीपी या अन्य एडमिनीस्ट्रेटिव मशीनरी राज्य सरकार की गुलाम नहीं होती, जो असेंबली में प्रस्ताव पास करके उन्हें एसवाईएल के निर्माण में सहयोग से रोका जाए। -बीआरमहाजन, एडवोकेट जनरल, हरियाणा
हम लीगली सही, एक-एक बूंद का हिसाब लिया जाएगा: दोनोंप्रस्ताव पूरी तरह संवैधानिक है। जो भी पानी हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली को गया है या जा रहा है, उसकी एक-एक बूंद का हिसाब लेंगे। असेंबली ने हिदायत दी है कि पंजाब सरकार का कोई भी अफसर नहर बनाने में सहयोग नहीं देगा। जमीन किसानों को वापस हो रही है। एसवाईएल ही नहीं रहेगी तो पानी कैसे जाएगा। -सुखबीरबादल, डिप्टी सीएम, पंजाब
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साभार: भास्कर समाचार
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