Monday, November 14, 2016

पढ़ने का जूनून: स्कूल में नहीं बल्कि शोर-शराबे से दूर खेतो में खुलती हैं इन बच्चों की किताबें

चंडीगढ़ में लेक के पास बसे कैंम्बवाला गांव में रहता है 8 साल का अरविंद। 5वीं कक्षा में पढ़ता है। बड़ा होकर डॉक्टर बनना चाहता है। वह कहता है, टीचर के मुताबिक डॉक्टर बनने के लिए मुझे बहुत पढ़ाई करनी होगी।
लेकिन घर में शोर-शराबा और पास-पड़ोस में हर दूसरे दिन होने वाले झगड़ों की वजह से पढ़ाई नहीं कर पाता हूं। डॉक्टर बनने का जुनून उसपर इस कदर हावी है कि गांव के बाहर एकांत में बने एक मंदिर में जाकर पढ़ना शुरू कर दिया। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। 
दो सप्ताह बाद गांव के छह और बच्चे उसके साथ मंदिर में पढ़ने लगे। इन्हें पढ़ाने के लिए यहां कोई शिक्षक नहीं आता। वे खुद ही पढ़ाई में एक-दूसरे की मदद करते हैं। अगर किसी विषय में कोई दिक्कत आती है तो वे कमरे के बाहर से गुजरने वाले या गांव के किसी शख्स से पूछकर अपनी जिज्ञासा दूर कर लेते हैं। अगर कोई नहीं मिला तो वह सवाल अपनी डायरी में लिखकर अगले दिन स्कूल में टीचर से पूछते हैं। वे दो साल से ऐसा ही कर रहे हैं। अब अरविंद के साथ गांव के 71 और बच्चे पढ़ाई करते हैं। हालांकि, अब ये मंदिर में नहीं खेत में बने एक कमरे में पढ़ाई करते हैं। इस कमरे का नाम रीडिंग क्लब है। सभी एक ही सरकारी स्कूल में कक्षा 2 से 8वीं तक की कक्षाओं में पढ़ते हैंं। तरुण और सूरज बताते हैं कि करीब एक साल तक हमने मंदिर में पढ़ाई की। फिर एक दिन सड़क से गुजरते हुए एक भैया ने हमें पढ़ते देखा। यहां आकर पढ़ने की वजह पूछी। अब वे हर सप्ताह हमें मैथ्स पढ़ाने आते हैं। इनके भैया का नाम सुभाष है। लेकिन ये बच्चे आज भी इनका नाम नहीं जानते। सुभाष चंडीगढ़ की एक फर्म में नौकर है। उसने वापस आकर फर्म के सीए दीपक प्रसाद से बच्चों के बारे में बताया। उनकी मदद के लिए लगातार उनसे कहता रहा। अाखिरकार एक दिन दीपक अपने दोस्त वीके जैन के साथ बच्चों से मिलने गांव पहुंच गए। दीपक बताते हैं कि उनकी लगन देखकर हम हैरान रह गए। उसी के बाद हम मदद के लिए तैयार हो गए। वीके जैन ने गांव में ही अपनी जमीन पर उन्हें पढ़ने के लिए एक कमरा बनाकर दे दिया। मैं बिजली और कमरे के मेंटिनेंस का खर्च उठाने के लिए तैयार हो गया। इन्होंने कमरे को रीडिंग क्लब नाम दिया है। फीस के नाम पर ये बच्चे हर महीने एक-एक रुपए जमा करते हैं, ताकि नोटिस बोर्ड खरीदकर उसमें नई-नई जानकारियां लिखें। वे बोर्ड खुद ही तैयार करते हैं। कमरे में लगे एक बोर्ड पर सभी विषय के बेसिक लिखे हैं जैसे वर्ण क्या हैं, अक्षर क्या हैं से लेकर आम बोल चाल के अंग्रेजी भाषा के शब्द। तीसरी क्लास में पढ़ने वाला तरुण और 5वीं पढ़ने वाला शोएब बताता है कि मैथ्स का चार्ट हम दोनों ने मिलकर बनाया। अरविंद के पिता एक शो रूम में सिक्यूरिटी गार्ड हैं। वे रोजाना वहां से एक दिन पुराना अखबार लेकर आते हैं, फिर रीडिंग क्लब में उस अखबार को सभी बच्चे पढ़ते हैं। इसमें से महत्वपूर्ण खबरों को नोटिस बोर्ड पर चिपका लेते हैं। इस कमरे की चाबी इन्हीं बच्चों के पास रहती है। जो सबसे देर तक पढ़ता है, वह चाबी ले जाता है। अगले दिन जल्दी आकर उसे ही कमरा खोलना होता है। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
For getting Job-alerts and Education News, join our Facebook Group “EMPLOYMENT BULLETIN” by clicking HERE. Please like our Facebook Page HARSAMACHAR for other important updates from each and every field.