Wednesday, August 17, 2016

एक्सपर्ट ओपिनियन: लाल किले से नरेन्द्र मोदी की 'बड़ी बात'

विवेक काटजू (पूर्व विदेश सेवा अधिकारी व पाक मामलों के विशेषज्ञ)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से पाकिस्तान, जम्मू-कश्मीर और बलूचिस्तान का मुद्दा उठाया है। इससे पहले किसी प्रधानमंत्री ने लाल किले से दिए गए अपने भाषण में इन मुद्दों का जिक्र नहीं किया। 12 अगस्त को सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानी पीओके के लोग पाकिस्तान के दमन का शिकार हो रहे हैं। साथ ही उन्होंने विदेश मंत्रलय से दुनिया के विभिन्न हिस्सों में रह रहे पीओके के लोगों से संपर्क स्थापित करने को कहा है। यह पीओके पर भारत की पूर्व स्थिति का तार्किक विस्तार है, जिसमें कहा जाता है कि पूरा जम्मू-कश्मीर राज्य भारतीय संघ का हिस्सा है और पाकिस्तान ने पीओके पर अवैध रूप से कब्जा किया हुआ है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। बाद में उन्होंने अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में असाधारण रूप से कहा कि पीओके और बलूचिस्तान के लोगों द्वारा व्यक्त किया गया आभार वास्तव में भारत के लोगों के लिए है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी ने सर्वदलीय बैठक में पाकिस्तान द्वारा वहां किए जा रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन का मुद्दा उठाया था। 

पाकिस्तान के साथ रिश्ते सुधारने के क्रम में भारत ने कभी भी पीओके पर खुले तौर पर ध्यान नहीं दिया था, लेकिन भारत के संयम से पाकिस्तान पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। भारत के वहां के लोगों के साथ खुले संपर्क के अभाव के कारण भारत के लिए यह मुश्किल होगा कि वह पीओके में रहने वाले लोगों के साथ तुरत-फुरत संपर्क स्थापित कर सके-बावजूद इसके कि उन्होंने मोदी के आह्वान पर तत्काल अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। पीओके में पाकिस्तान का विरोध है, लेकिन भारत को वहां के लोगों के साथ संपर्क के अपने प्रयासों में निरंतरता कायम करनी होगी, अन्यथा उसके लिए अपनी विश्वसनीयता कायम करना मुश्किल होगा। बलूचिस्तान पर मोदी का रुख 2009 में शर्म-अल-शेख में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के वक्तव्य के ठीक उलट है। तब उन्होंने अपने पाकिस्तानी समकक्ष यूसुफ अली गिलानी के साथ बैठक के बाद साझा वक्तव्य में बलूचिस्तान का उल्लेख करने पर सहमति जताई थी। पाकिस्तान का आरोप था कि भारत उस प्रांत में हस्तक्षेप कर रहा है। अब कश्मीर में पाकिस्तान के हस्तक्षेप को लेकर मोदी आक्रामक मुद्रा में हैं। उन्होंने पाकिस्तान को अपने ही लोगों पर अत्याचार करने के लिए जिम्मेदार ठहराया है।

मोदी की दोनों टिप्पणियां दर्शाती हैं कि वह कश्मीर में आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद घाटी में पैदा हुई स्थितियों पर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया से बहुत व्यथित हुए हैं। पाकिस्तान ने वहां आंदोलन को भड़काया है। उसकी मंशा अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान घाटी की ओर आकर्षित करना है और भारत को दबाव में लाना है। इस उद्देश्य की खातिर ही उसने अपने स्वतंत्रता दिवस को कश्मीर की आजादी के लिए समर्पित किया है। मोदी को अंतरराष्ट्रीय समुदाय को साफ शब्दों में बताना चाहिए कि भारत कश्मीर में पाकिस्तान प्रेरित और नियंत्रित प्रदर्शन से निपटने में किसी दबाव में नहीं आएगा, भले ही वह कितना ही लंबा चले। भारत तब भी संयम का परिचय दे रहा है जब वहां सुरक्षा बलों के खिलाफ जमकर अफवाह फैलाई जा रही है। पैलेट गन के प्रयोग से पैदा हुए हालात ने लोगों का खासा ध्यान खींचा है। लिहाजा पत्थरबाजों को नियंत्रित करने के लिए सरकार को दूसरे विकल्पों पर ध्यान देना चाहिए। इस संबंध में भी अफवाह फैलाई गई है कि घाटी में प्रदर्शन स्वत: प्रेरित हैं और स्थानीय लोगों ने इसे स्वयं शुरू किया है। उसमें पाकिस्तान और आतंकवादी संगठनों की भूमिका नहीं है। जो इस दुष्प्रचार में भरोसा कर रहे हैं वे भूल रहे हैं कि बुरहान हिजबुल का सदस्य था। यहां हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हर विरोध-प्रदर्शन का कोई न कोई अगुआ होता है और इस मामले में प्रदर्शन में पाकिस्तानी एजेंटों की सीधी संलिप्तता दिखती है।

बाहरी मोर्चो पर मोदी ने कड़ा रुख अपनाया है। उन्होंने कहा है कि जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की नीति इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत पर आगे बढ़ने का भरोसा दिलाया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि यह एक अच्छी नीति है, लेकिन आज कश्मीर में हालात वाजपेयी के समय से कुछ अलग हैं। हाल के दिनों में आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट का उभार हुआ है और उसने बड़े पैमाने पर मुस्लिम युवकों को आकर्षित किया है। कश्मीर के संदर्भ में इंसानियत की बात संविधान के दायरे के बाहर नहीं हो सकती है। मुख्यधारा का भारतीय राजनीतिक वर्ग भारत के संविधान की सीमा के बाहर जाकर दिल्ली और कश्मीर में असंतुष्ट लोगों के बीच की खाई को दूर नहीं कर सकता है। सिर्फ हाशिये पर खड़े और कट्टर राजनीतिक समूह, जिनका भारतीय संविधान में कोई भरोसा नहीं है, वही इंसानियत की अपने ढंग से व्याख्या कर सकता है। यहां इंसानियत का मतलब है मानवाधिकारों पर आधारित भारतीय संवैधानिक प्रक्रियाओं का सम्मान। कुछ विपक्षी पार्टियों ने केंद्र सरकार से हुर्रियत सहित कश्मीर के सभी वर्ग से बात करने की मांग की है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने कोई वादा नहीं किया है कि वार्ता में हुर्रियत भी शामिल होगी या नहीं। पूर्व में ऐसे मौकों पर सरकारें हुर्रियत से संपर्क करती थीं, क्योंकि उनका मानना था कि वे भारतीय हैं, भले ही उनका मकसद कश्मीर को भारत से अलग करना हो। यह भी तर्क दिया गया कि यदि सरकार पूवरेत्तर राज्यों में विभिन्न अलगाववादी समूहों से बात कर सकती है तो हुर्रियत के साथ वार्ता करना गलत कैसे है? अतीत में चाहे जैसी सोच रही हो, लेकिन आज की स्थितियों में पाकिस्तान प्रायोजित छद्म युद्ध को किसी भी तरह बढ़ावा देना गलत होगा। खासकर तब जब मोदी जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान के हस्तक्षेप पर मुखर होकर बोल रहे हैं। 

अलगाववादियों को भी एक कड़ा संदेश देना चाहिए कि भारत कश्मीर में पाकिस्तान की दखलअंदाजी के प्रश्न पर ज्यादा दिनों तक चुप नहीं रहेगा। भारत आतंक, अशांति और उपद्रव के इस सिलसिले को खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है। जब तक अलगाववादी तत्व पाकिस्तान और वहां फल-फूल रहे आतंकवादी समूहों से संपर्क नहीं तोड़ लेते तब तक किसी प्रकार की वार्ता नहीं होगी। मोदी सरकार को इस नीति पर मजबूती से टिके रहना चाहिए। भारतीय जम्हूरियत का मतलब यह नहीं है कि यह देश उन लोगों को अनंतकाल तक बर्दाश्त करता रहे जो इसे तोड़ना चाहते हैं। आज समय की मांग है कि कश्मीर में पाकिस्तान के हस्तक्षेप और उसके छद्म चेहरों को खत्म किया जाए। जब तक यह नहीं होगा तब तक राज्य की आंतरिक समस्याएं भी खत्म नहीं हो सकेंगी। मोदी ने पाकिस्तान को संकेत दिया है कि भारत का धैर्य अब जवाब दे रहा है और उसे समझ लेना चाहिए कि देश अब बर्दाश्त करने की पुरानी नीति पर नहीं चलेगा।

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साभारजागरण समाचार 
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