Wednesday, August 10, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: आपके परिवेश से तय होता है आपका अच्छा व्यवहार

एन रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
अजय रामसंजीव गौतम के हिल रोड जैसी पॉश इलाके में समुद्र किनारे के बंगले में सहायक हैं। यह बंगला बांद्रा स्थित ख्यात मेहबूब स्टूडियो के ठीक सामने है। संजीव अग्रणी कंसल्टंट हैं और अमिताभ तथा जया बच्चन जैसी शख्सियतें भी उन्हंें उनकी सरलता, ईमानदारी और जिस प्रकार वे अपने राष्ट्र को सर्वोच्च स्थान देते हैं,
उसके लिए उनका बहुत आदर करते हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। संजीव ने अमिताभ के लिए राजनीतिक सलाहकार की भूमिका निभाई थी और इलाहाबाद के चुनाव में अमिताभ की बड़े अंतर से जीत का श्रेय उन्हें ही है। संजीव इलाहाबाद में ही जन्मे और बड़े हुए थे। कॅरिअर के लिए दिल्ली मुंबई आने के पहले उनका इलाहाबाद में बहुत बड़ा नेटवर्क बन गया था। 

अमिताभ हमेशा उन्हें उनके बचपन के नाम 'गुड्डू' से ही पुकारते हैं। उनकी पहुंच महानायक के सारे व्यक्तिगत मामलों तक भी है। जब जया राज्यसभा सदस्य थीं तो उनके राजनीतिक मामले भी वे ही देखते थे। अमिताभ ने जब राजनीति छोड़ दी तो संजीव भी दूसरी जगह चले गए, लेकिन दोनों के बीच वही अपनत्व आज भी है। संजीव अपने कामकाज और निजी जीवन में दूरी बनाए रखते हैं और इसीलिए उन्होंने विप्रो में वरिष्ठ पद पर काम करने वाली पत्नी रंजोना का अमिताभ से कभी परिचय नहीं कराया। काम के लिए सिलसिले में रंजोना को प्राय: हवाई यात्राएं करनी पड़ती हैं और लगभग हर पखवाड़े वे अमेरिका जाती हैं। ब्रिटिश एयरवेज की एक फ्लाइट में एक बार उनकी मुलाकात अमिताभ बच्चन से हुई और उन्हें बताना पड़ा कि वे 'गुड्डू की पत्नी' है। संजीव सिर्फ सरल बल्कि जीवन मूल्यों से चलने वाले व्यक्ति हैं। 
आप समझ सकते हैं कि अमिताभ बच्चन से मिलने का अजय राम का सपना कभी साकार क्यों नहीं हुआ। अजय बिहार के हैं और तीन दशकों से वे संजीव के यहां काम कर रहे है। 8 अगस्त को उन्होंने बैंक जाने के लिए ऑटो रिक्शा लिया, क्योंकि उन्हें अपना वेतन बिहार में अपने परिवार के लिए ट्रांसफर करना था। वे बैंक परिसर के ठीक समाने उतरे। उसी वक्त दो विदेशी ऑटो तक पहुचे और वे मेहबूत स्टूडियो जाना चाहते थे, ठीक वहीं जहां से अजय राम ने ऑटो लिया था। ऑटो ड्राइवर ने विदेशी देखते हुए वहां जाने का किराया 200 रुपए बताया जबकि अजय राम उसी दूरी के लिए 40 रुपए देते आए थे। 
संजीव की तरह अजय राम भी वहां से चुपचाप चले नहीं गए बल्कि दृढ़ता से ड्राइवर से कहा, 'तुम क्यों उन्हें लूटकर देश का नाम खराब कर रहे हो। कृपया उनसे भी उतना ही किराया हो जितना मुझसे लिया है और लेना ही है तो दस रुपए अतिरिक्त ले लो।' ड्राइवर 40 रुपए में उन्हें छोड़ने को तैयार हो गया। फिर अजय राम ने टूटी-फूटी अंग्रेजी में उन दोनों महिलाओं से कहा कि वे 40 रुपए ही चुकाएं और अपना मोबाइल नंबर देते हुए कहा कि यदि ड्राइवर तय राशि से ज्यादा मांगे तो उन्हें फोन करें। वे तो दूसरा रिक्शा लेकर पीछे-पीछे जाना चाहते थे, लेकिन समय के अभाव के कारण वे ऐसा नहीं कर सके। 
बाद में उन्हें विदेशी पर्यटकों का फोन आया। उन्होंने धन्यवाद देते हुए मेहबूब स्टूडियो में सुरक्षित पहुंचने की सूचना दी। स्वाभाविक था कि उनके सद्व्यवहार और नेक इरादे को देखते हुए विदेशी महिलाओं ने अपना मोबाइल नंबर उसे देने का जोखिम उठाया था। उन्होंने आसानी से हमारे देश के इस नागरिक के व्यवहार का आकलन कर लिया था, जिसने साधारण कपड़े पहन रखे थे। इस तरह उन्होंने इन दो अज्ञात विदेशियों पर हमारी अच्छी छाप छोड़ी। मेरे लिए तो अजय कई कहावतों लोकोक्तियों को निचोड़ हैं : 'एक अादमी भी फर्क पैदा कर सकता है, हर बूंद का महत्व है और राष्ट्र की छवि को सबसे ऊपर रखें।' 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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