Thursday, August 11, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: जीवन की कठिनाइयां आप में जगाती हैं दृढ़ता

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
मॉर्डन ओलिंपिकको डिजाइन करने वाले पियरे डे कोबेर्टिन ने कहा है कि जीवन में अहम चीज सफलता नहीं है, संघर्ष है। इस समय जितने भी खिलाड़ी रियो ओलिंपिक गए हैं, उनकी कोई कोई दिलचस्प कहानी जरूर है।
किसी ने बहुत गरीबी देखी है तो किसी को प्रतिभा निखारने के लिए कोई इंटरनेशनल कोच नहीं मिला। किसी के पास तो अपने खेल के अनुसार जूते तक नहीं थे, लेकिन युसरा मार्दिनी की कहानी किसी की भी आंखों में आंसू ला सकती है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। अगर वे कोई ओलिंपिक मेडल जीतती हैं तो उनके पास कोई झंडा नहीं होगा, कोई राष्ट्रगीत नहीं बजाया जाएगा, क्योंकि वे ओलिंपिक एथलिट के रूप में प्रतियोगिता में शामिल हो रही हैं। वे पहले ओलिंपिक रिफ्यूजी स्वाड की सदस्य हैं। वे 10 सदस्यों की रेफ्यूजी कैंप टीम की अगुआई कर रहीं हैं। 
वे युद्धग्रस्त दमिष्क की प्रतिभाशाली स्वीमर थीं। उन्हें सीरियन ओलिंपिक कमिटी का सहयोग था, लेकिन देश में हुए उपद्रव ने उनके सपने नष्ट कर दिए। 2012 में युसरा मार्दिनी का पूरा घर सीरिया में नष्ट कर दिया गया। असद के हत्यारों ने सैकड़ों लोगों को उनके घर में मार दिया। अगले तीन वर्षों में युसरा और उनके परिवार ने सामान्य जीवन में लौटने की बहुत कोशिश की, लेकिन हर दिन कोई कोई मार दिया जाता। उन्हें हमेशा भागते रहना पड़ता था। जीवित रहना हर व्यक्ति के लिए चुनौती थी। जनता हर बुनियादी चीज खो चुकी थी। स्कूलिंग भी। इसलिए एक दिन युसरा और उनकी बहन ने भागने की कोशिश की। एक कश्ती में सवार होकर वे तुर्की के तट पर और फिर वहां से ग्रीस पहुंचना चाहती थीं। अपनी पूरी जमापूंजी लगाकर 250 अन्य लोगों के साथ दोनों इस जोखिम भरे सफर पर निकल पड़ीं। उनके लबों पर लगातार यह दुआ थी कि कहीं कोस्टल पुलिस पकड़ ले, लेकिन सिर्फ 20 मिनट में ही ठसाठस भरी कश्ती का इंजन फेल हो गया और डूबने का खतरा सामने मंडराने लगा। कश्ती पर सवार सिर्फ चार लोग ही तैरना जानते थे। कश्ती बचाने के लिए पानी में कूदे दो पुरुषों ने जल्द ही हार मान ली। 
अब सिर्फ दो लड़कियां ही बचीं थी, जिन्हें अगले साढ़े तीन घंटे तक तैरते हुए बोट को आगे बढ़ाते रहना था। सहमा हुआ एक छोटा बच्चा लगातार उसे देख रहा था और युसरा तरह-तरह की मुख-मुद्राओं से उसका मनोरंजन करने की कोशिश कर रही थी। दोनों बोट को सुरक्षित धक्का देती रहीं। अपनी और डूबती कश्ती में सवार 20 लोगों की जान बचाने की कोशिश में ही तो दोनों ने एजीयन सागर में छलांग लगाई थी। यही विकल्प था कि हिम्मत हार जाएं या तैरते रहें। वे तकदीर से लड़ते हुए तैरती रहीं और लेसबोस तक पहुंचीं। फिर वहां से चोरी-छिपे सर्बिया से हंगरी, ऑस्ट्रिया और फिर आखिर में जर्मनी पहुंचीं। यहां उन्होंने पूरी सर्दियां बिताईं। दिन का पूरा समय शरणार्थी के कागजात हासिल करने की कतारों में बीत जाता। वे अकेली नहीं थीं, जो एकांत में बैठकर रोती थीं, लेकिन स्वीमिंग के प्रति उन्होंने अपना उत्साह बनाए रखा। और बर्लिन में स्थानीय स्वीमिंग क्लब जॉइन कर लिया। यहां उनका टेलेंट नेशनल स्वीमिंग टीम और आईओसी ने देखा। उन्होंने ओलिंपिक में जाने की कोशिश की, हालांकि उनका कोई देश नहीं था, जिसकी ओर से वे मुकाबले में जा सकें। फिर उन्होंने 100 मीटर फ्री-स्टाइल और 100 मीटर बटरफ्लाई के लिए क्वालिफाई किया। 
एजीयन सागर में तैरने के अपने साहस के करीब एक साल बाद आज युसरा रियो ओलिंपिक में शामिल हो रही हैं। वे 10 सदस्यीय टीम का हिस्सा हैं, जो पहली रेफ्यूजी ओलिंपिक टीम है। बुधवार रात को यह कॉलम प्रकाशित हो रहा होगा वे स्वीमिंग कंपीटिशन में होंगी। मैं उम्मीद करता हूं कि वे कोई मेडल जीतें। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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