कश्मीर मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने की कोशिश में लगे पाकिस्तान को हर तरफ से मुंह की खानी पड़ रही है। कभी कश्मीर के मुद्दे पर यूरोपीय देशों के अलावा संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका से भी समर्थन हासिल करने वाला पाकिस्तान इस मुद्दे पर अलग-थलग है। अब कश्मीर पर न तो यूरोपीय संघ के संसद में और न ही ब्रिटिश
संसद में कोई प्रस्ताव पारित होता है। संयुक्त राष्ट्र (यूएन) और अमेरिका ने भी पाकिस्तान को सांकेतिक तौर पर बता दिया है कश्मीर में जब तक उसकी मदद से चल रही हिंसा समाप्त नहीं होगी तब तक कश्मीर समस्या का हल नहीं निकल सकता। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। जानकारों के मुताबिक कश्मीर पर पाकिस्तान की दोहरी रणनीति को दुनिया के सामने लाने में भारत की कूटनीति के साथ आतंक को एक सरकारी नीति के तहत बढ़ावा देने की पाक की आदत भी है। दुनियाभर की अधिकांश आतंकी घटनाओं के तार जिस तरह से पाकिस्तान की धरती से जुड़े हुए पाए गए हैं उसे देखते हुए फिलहाल कोई भी देश कश्मीर पर उसकी बयानबाजी को गंभीरता से नहीं ले रहा है। पिछले दिनों एक पाकिस्तानी समाचारपत्र के प्रतिनिधि ने जब अमेरिकी विदेश मंत्रलय के प्रवक्ता से कश्मीर में जारी हिंसा और ‘भारतीय क्रूरता’ के बारे में सवाल पूछा तो प्रवक्ता ने जवाब दिया कि यह मुद्दा दोनों देशों को ही हल करना होगा। बाद में अमेरिका के विदेश मंत्रलय ने यह भी नसीहत दे दी कि पाकिस्तान को न सिर्फ अपने घर में परेशानी पैदा करने वाले आतंकियों पर नकेल कसनी होगी बल्कि पड़ोसी देशों के लिए मुसीबत बनने वाले आतंकियों को भी काबू में करना होगा। इसी तरह से यूएन में बार-बार कश्मीर मुद्दा उठाने के बावजूद उसकी बात का असर पड़ता नहीं दिख रहा है। यूएन के महासचिव बान की मून ने कश्मीर पर सभी पक्षों को एहतियात बरतने की सलाह दी है। हालांकि पाकिस्तान की तरफ से लगातार बान की मून पर बयान देने का दबाव बनाया जा रहा है। पाकिस्तान की मीडिया ने यहां तक लिखा है कि यूएन महासचिव ने कश्मीर पर मुंह नहीं खोलने की कसम खा ली है। पाकिस्तान को अपने पुराने हितैषी तुर्की का साथ जरूर मिला है। पाकिस्तान ने इस्लामिक देशों के संगठन (ओआइसी) से विशेष दल कश्मीर भेजने का आग्रह किया है। यही नहीं कभी यूरोपीय संघ के संसद और ब्रिटिश संसद में भी कश्मीर को लेकर पाकिस्तान नजरिये को जगह मिलती थी, वह अब पूरी तरह से बंद है। कश्मीर पर ब्रिटिश संसद में अंतिम बहस सितंबर, 2014 में हुई थी जिसमें भाग लेने वाले 18 सांसदों में से सिर्फ तीन ने पाकिस्तान के नजरिये का समर्थन किया था।
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साभार: जागरण समाचार
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