Thursday, August 11, 2016

मैं दो साल और गवर्नर रहना चाहता था लेकिन ओछे सियासी हमले ....... -आरबीआई गवर्नर राजन

आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन चार सितंबर को रिटायर हो रहे हैं। मंगलवार को उन्होंने आखिरी बार मौद्रिक नीति की समीक्षा की। बुधवार को उन्होंने अपने दूसरे कार्यकाल को लेकर हुए विवाद और मन की बातों का खुलकर इजहार किया। बोले-बतौर गवर्नर मैं दो साल और सेवा देना चाहता था, ताकि अधूरे कामों को पूरा कर
सकूं। पर ऐसा नहीं हो सका। हालांकि मैं खुशी-खुशी कुर्सी छोड़ रहा हूं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। 2013 में मेरे सामने इकोनॉमी को स्थिर करने की चुनौती थी। घरेलू इकोनॉमी पर नजरिया बदलना था। रुपए की कमजोरी चिंता थी। इसलिए फाइनेंशियल सेक्टर में बड़े सुधार किए। गरीबों, एसएमई सेक्टर को बैंकिंग सुविधाएं दीं। डूबे कर्ज की रिकवरी रुके प्रोजेक्ट को चालू कराया गया। पढ़िएऔर किन मुद्दों पर राजन ने क्या कहा:
मेरे ऊपर जो राजनीतिक हमले हुए उनका कोई आधार नहीं था। वो बेहद ओछे स्तर के थे। मैंने कभी उन पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया। मैंने भविष्य के अपने कॅरिअर को लेकर कभी भी चिंता नहीं की। देशहित में वह सब कुछ किया जो मैं कर सकता था। मैंने बतौर टीम प्लेयर श्रेष्ठ भूमिका निभाई है। -राजनकार्यकाल और आलोचना: मैं पहले प्रोफेसर था, आरबीआई गवर्नर बाद में बना। कुछ नया करने का जोश था। मेरे आइडिया को आगे बढ़ाने का काम मेरी टीम ने किया। मैं तीन साल के लिए काम करने का इरादा लेकर ही आया था। अच्छा होता एमपीसी (मॉनेट्री पॉलिसी कमेटी), बैंकों की बैलेंस सीट को सुधरता देखता। मेरा 90-95 फीसदी एजेंडा पूरा हुआ है। गवर्नर की जिम्मेदारियां कभी खत्म नहीं होतीं। एक्सटेंशन को लेकर सरकार के साथ बात नहीं बनी। पॉलिसी पर आलोचना आम बात है। लेकिन मैं आलोचना से विचलित नहीं हुआ। 
पॉलिसी और बाजार: दुनियामें महंगाई अचानक बढ़ी तो बाजारों में बड़ी गिरावट देखने को मिलेगी। अमेरिका में बढ़ती महंगाई चिंता की बात है। भारत ग्लोबल हालात से निपटने को तैयार है। घरेलू इकोनॉमी को सुधारने के लिए उठाए कदमों का सकारात्मक असर दिख रहा है, लेकिन अभी बहुत कुछ करना है। 
कर्ज और रिफाॅर्म: एनपीए की समस्या से निपटने के लिए लोन की प्रक्रिया को बेहतर बनाना होगा। बैंकों की गवर्नेंस में सुधार करना होगा। बैंक बोर्ड ब्यूरो बनाने का फैसला अच्छा है। कर्ज देने से पहले बैंकों को पूरी पड़ताल करनी चाहिए। कंज्यूमर प्रोटेक्शन को लेकर चिंता है। इंश्योरेंस की मिससेलिंग रुकनी चाहिए। एटीएम के कामकाज में भी सुधार की जरुरत है। 
जीएसटी और महंगाई: जीएसटी पर सभी राजनीतिक पार्टियों का साथ आना अच्छा संकेत हैं। पार्टियां अहम रिफॉर्म पर एक साथ सकती हैं। आरबीआई ने 2-6 % महंगाई का लक्ष्य रखा है। इसके लिए सरकार और आरबीआई मिलकर काम रहे हैं। उम्मीद है कि महंगाई स्थिर रहेगी। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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