Saturday, August 6, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: सफलता का हमेशा कोई न कोई नुस्खा होता है

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
चेन्नई कातीन दिन का मेरा टूर सफलता के नुस्खे पर क्रेश कोर्स के साथ पूरा हुआ। हाल ही में हम सभी ने द्रव्य ढोलकिया की कहानी सुनी, जिनके 6000 करोड़ रुपए की संपत्ति के मालिक पिता ने सफलता का महत्व समझाने के लिए उन्हें छोटे-मोटे काम करके अनुभव लेने का कहा था। किंतु 1968 में 16 साल के किशोर रहे ये सज्जन पहले ही यह अनुभव ले चुके हैं। तब वे अपने अंकल के मेडिकल स्टोर पर 60 रुपए महीने के वेतन पर काम मद्रास (अब चेन्नई) आए थे। काफी कमाई भोजन पर खर्च हो जाती थी। काम था दुकान में साफ-सफाई करना। लेकिन उन्होंने समझदारी दिखाकर फार्मेसी का डिप्लोमा कोर्स ज्वॉइन कर लिया। इसके बाद समृद्ध परिवार ने उन्हें 60 हजार रुपए का लोन केमिस्ट शॉप खोलने के लिए दिया। अगले 30 महीनों तक उन्होंने दुकान का पूरा काम अकेले ही किया, तब रोजाना 250 रुपए का बिजनेस होने लगा। जब बिक्री 700 रुपए पहुंच गई तो उन्होंने पहला कर्मचारी रखा। इसके बाद फिर कभी मुड़कर नहीं देखा। हालांकि उन्हें पैर जमाने में 14 साल लगे। उन्होंने छह महीने में दूसरी केमिस्ट शॉप खोली और इसके बाद हर दो साल में वे दुकान खोलते रहे और दुकानों की संख्या 51 तक पहुंच गई। 19 होलसेल दुकानें भी उन्होंने खोली, जो पूरे चेन्नई के 3500 कैमिस्ट को सेवाएं देती हैं। 500 कर्मचारियों वाली ये कंपनी अब जल्द ही स्टोर्स की संख्या 100 करने की प्लानिंग कर रही है। 
मिलिए ज्ञानम से, जिनकी मुत्थु फार्मेसी के काम करने का तरीका अलग ही है। प्रिस्क्रिप्शन और इलाज की बड़ी उम्मीद लेकर आने वाले किसी पेशेंट को 'आउट आफ स्टॉक' कहना उन्हें पसंद नहीं है। इसलिए उनके पास 46 हजार फॉमूर्लों का स्टॉक है। दोनों महत्वपूर्ण पोजिशन एमडी और एचआर डाइरेक्टर की पोजिशन पर उन्होंने अपनी बेटी को नियुक्त किया है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि उन्होंने इनोवेशन पर ध्यान दिया है। शुरुआती दिनों में उन्होंने दुकान से गरीब मरीजों के लिए ब्लड डोनेशन कैंप भी चलाया। बाद में 1990 में होम डिलिवरी शुरू की, जब इस बारे में मेडिकल बिरादरी ने किसी ने कुछ भी सुना नहीं था। अब तो वे मेडिकल शॉप में डॉक्टर भी रखने लगे हैं। उनके 51 आउटलेट्स में से दस पर जनरल फिजिशियन की डिस्पेंसरी है। ये सुविधा जरूरतमंदों की समस्या का एक ही स्थान पर समाधान करने के लिए है। 
इतनी बड़ी सफलता के साथ मुत्थु फार्मेसी का चैरिटेबल ट्रस्ट है, जो अभावग्रस्त बच्चों की शिक्षा में मदद करता है। इसके अलावा मुत्थु हॉस्पिटल जरूरतमंदों के पास खुद पहुंचता है। ज्ञानम के लिए 16 से 65 साल की इस उम्र तक पहुंचने में कुछ सिद्धांत रहे। उन्होंने प्रतिबंधित दवाएं कभी नहीं बेची और किसी की सेहत के साथ कभी खिलवाड़ नहीं किया। उन्होंने पुख्ता इंतजाम किया कि उनके आउटलेट्स से कभी भी डॉक्टर द्वारा लिखी गई दवा के अलावा कोई वैकल्पिक दवा लेने का सुझाव नहीं दिया जाए। ही किसी पेशेंट को अपनी जरूरत के लिए किसी अन्य दुकान पर जाने की जरूरत पड़े। इन चीजों ने उन्हें पॉपुलर बनाया और भरोसे के कारण उनके नियमित ग्राहक बढ़ते गए। माउथ पब्लिसिटी ने उनके ब्रैंड का मूल्य बढ़ाया। उन्हें अंग्रेजी भाषा का ज्ञान नहीं था। प्रिस्क्रिप्श्न पढ़ने के लिए अंग्रेजी का ज्ञान जरूरी है। उन्होंने देखकर, सुनकर और बिना डर के उन शब्दों को दोहराकर जरूरी व्यावहारिक अंग्रेजी सीख ली। इस दृढ़ता से ज्ञानम ने 300 स्क्वेयर फीट से 45 साल पहले शुरुआत करके एक-एक ईंट जोड़ी और आज मेडिकल प्रोफेशन का इतना बड़ा साम्राज्य एक शहर में स्थापित किया।
फंडा यह है कि सफलताका शानदार नुस्खा कैसे लिखते हैं, यह जानना जरूरी है। यह आपको जीवन की अनोखी यात्रा पर ले जाएगा। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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