एन रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
देव कुमारविश्वकर्मा उस परिवार का एक मात्र सक्षम सदस्य था। पिता ने उसे, उसकी बूढ़ी मां और पोलियो से पीड़ित छोटे भाई को छोड़ दिया था। 10वीं की पढ़ाई के बाद 'देवा' ने अपने प्यार के इस नाम पर खरा उतरते हुए परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली। वह परिवार की बुनियादी जरूरतें पूरी करने लगा, लेकिन किस्मत
में कुछ और लिखा था। वह दिमागी रूप से अस्थिर हो गया और बिलासपुर स्थित मोपका के राजकिशोर नगर में यूं ही अर्द्धनग्न अवस्था में घूमने लगा। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। वह आने-जाने वालों को परेशान करता और लोगों को उस पर तरस आता। सिर्फ एक ही व्यक्ति से वह शांति से बात करता था और वे थे विजय कुमार जडे, आशा ऑटो केयर के मालिक। उनके आठ कर्मचारी भी इस युवक के प्रति रहमदिल थे। शुरू में वे उसकी पैसे देकर मदद कर दिया करते थे, लेकिन वह काम देने की उनकी तैयारी को नज़रअंदाज कर देता था। फिर देवा पूरे क्षेत्र में कामचोर कहलाने लगा।
यही समय था जब उसके शुभचिंतकों ने मामला अपने हाथों में ले लिया। विजय और उनके मैकेनिक साहू, रघु, गोलू, दिलीप, शनि यासिन एक दिन उसे शेंदरी के सरकारी मेंटल हॉस्पिटल ले गए, लेकिन अस्पताल ने उसे भर्ती करने से इंकार कर दिया, क्योंकि इनमें से कोई भी उसका रिश्तेदार नहीं था। कई घंटों के अनुनय-विनय और उसकी मां को गवाह बनाने के बाद इलाज शुरू हो सका, लेकिन देवा अक्सर अस्पताल से भाग जाता और उसके दोस्त उसे फिर अस्पताल लेकर आते।
वे सभी मिलकर उसके इलाज के लिए बहुत ज्यादा पैसा तो नहीं दे पाए थे, लेकिन उन्होंने उसके लिए समय बहुत दिया और उसकी देखभाल की। कई वर्षों के कठिन परिश्रम के बाद आखिर पांच महीने पहले इसका फल मिला। देवा सामान्य व्यक्ति बन गया, लेकिन अब एक समस्या थी कि कोई भी उसे काम नहीं देना चाहता था। एक बार फिर विजय आगे आए और उन्होंने अपने आठ मैकेनिकों के लिए उसे हेल्पर बना दिया। आज अगर आप आशा ऑटो केयर जाएंगे तो सुनाई देगा, 'देवा 8 नंबर का पाना लाना, देवा ऑइल की केन खिसकाना, देवा स्क्रू से ऑइल साफ करना'। देवा का नाम वर्कशॉप में सभी तरफ से गूंजता है और यह युवक आठों मैकेनिकों की मदद के लिए यहां-वहां भागता रहता है। देवा के लिए ये सभी वे लोग हैं, जिन्होंने उसका जीवन बेहतर करने के लिए कुछ कुछ किया है। ऑटो केयर में काम और इन आठ लोगों के साथ ने देवा को आज जिंदगी का मकसद दे दिया है।
पांच सप्ताह की ट्रेनिंग ने उसे अच्छा हेल्पर बना दिया है और उसकी साप्ताहिक कमाई इतनी हो गई है कि वह परिवार का पेट भर सके। इससे लंबे समय से चल रही परिवार की दरिद्रता भी दूर हो गई। पिछले तीन महीने से देवा हर सप्ताह अपनी तनख्वाह के दिन विजय के पास आता है और कमाई और खर्च का हिसाब विजय और उसके मैकेनिक दोस्तों को देता है। जब वह कहता है, 'मैं पूरे सप्ताह का राशन ले आया'। जब वो तीन साल के छोटे बच्चे को खिलौना मिलने जैसी खुशी में बताता है कि 'लंबे समय बाद मैंने मां के हाथ का बना नॉन वेजिटेरियन खाना खाया', तो उसके सामने नौ जोड़ी आंखें नम हो जाती हैं। उन्हें इस बात पर गर्व होता है कि वे कार की मशीन तो सुधार ही रहे हैं, बल्कि कहीं कहीं एक इंसान के जीवन को भी रनिंग कंडिशन में ले आए, हैं जिस पर दस साल पहले जंग लग गया था। खलील जिब्रान ने कहा है, 'मैं कैसे जीवन के न्याय में भरोसा खो सकता हूं, जबकि पंखों के बिछोने पर सोने वालों के सपने भी जमीन पर सोने वालों के सपनों से अलग और बेहतर नहीं होते।
फंडा यह है कि मशीनको ठीक कर काम करने योग्य बनाना आसान है, किंतु कुछ ही इस हुनर को इंसानी िजंदगी पर लागू कर पाते हैं।
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साभार: भास्कर समाचार
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