Thursday, July 14, 2016

अच्छे काम से बहुत बड़ा सामाजिक लाभ मिलता है

एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
उनका जन्म 1930 में धार रियासत में हुआ था, यह क्षेत्र अब मध्यप्रदेश में आता है। उनके पिता बागवानी विभाग के प्रमुख थे। चार बच्चों में दूसरे नंबर की संतान के रूप में वे सामान्य छात्र ही थे, जब तक कि कॉमर्स के टीचर ने उन्हें महात्मा गांधी के बारे में नहीं बताया था। कुछ समय बाद सैनी विनोबा भावे के संपर्क में आए और
उनके मार्गदर्शन में कई गांधीवादी संस्थाओं में काम किया। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इसमें भील जनजाति के लिए बनी एक संस्था भी थी। इस तरह वे भावनात्मक रूप से इन लोगों के नज़दीक आए। शिक्षा तो इनके लिए बहुत दूर की बात थी। फिर उन्होंने खबर पढ़ी कि बस्तर की कुछ आदिवासी लड़कियां स्थानीय मेले से लौट रहीं थीं और गुंडों ने उन्हें परेशान किया। तो लड़कियों ने बदमाशों की हत्या कर दी। 
इस खबर ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया। उन्होंने सोचा कि अगर लड़कियों को शिक्षित कर उनकी ऊर्जा को सकारात्मक दिशा दी जाए तो ऐसे अपराध रुक सकते हैं। इसके बाद उन्होंने अपने गुरु विनोबा भावे से लड़कियों का आश्रम शुरू करने की इजाजत मांगी, लेकिन इसे नकार दिया गया। किंतु बाद में उनकी जिद के आगे विनोबा भावे नर्म पड़ गए। पहचान के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ला का हाथ का लिखा खत लेकर 46 साल के धरमपाल सैनी, जिन्हें लोग प्यार से ताऊजी कहते थे, बस्तर पहुंचे। उन्होंने दिमरापाल गांव पर ध्यान केंद्रित किया। गांव जगदलपुर जिला मुख्यालय से 11 किलोमीटर दूर है। यहां साक्षरता दर सिर्फ एक प्रतिशत थी। तब अधिकारियों ने उन्हें चुनौती दी थी कि सरकार ने 80 छात्राओं की स्वीकृति दी है, आप तो सिर्फ आठ छात्राओं को पढ़ाकर दिखा दें। उनका कहना सही था। छह महीने में उन्हें सिर्फ पांच छात्राएं मिल पाईं। ताऊजी ने छात्राओं को रहवासी स्कूल में पढ़ाई के साथ खेती सिखाना शुरू कर दिया। इससे लोग लड़कियों को स्कूल में भर्ती करने के प्रति आकर्षित हुए, क्योंकि उन्हें लगा कि पढ़ाई के साथ-साथ खेती सीखने से उनकी परंपरागत जड़ें भी कमजोर नहीं होंगी। 
अब सीधे 2016 में जाते हैं। आज बस्तर में लड़कों के 16 स्कूल और लड़कियों के 21 स्कूल चल रहे हैं, जो हजारों आदिवासी बच्चों को स्कूली शिक्षा हासिल करने में मदद कर रहे हैं। आश्रम नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में हिंसा और कठोर सच्चाइयों से जूझने में लड़कियों के लिए शरण स्थल गए। यहां उन्हें अपने लिए नया जीवन बनाने का अवसर मिला। ताऊजी की माता के नाम शुरू किए गए माता रुक्मणी देवी आश्रम में 350 लड़कियां रहती हैं। इनमें से 150 देशभर में खेल स्पर्द्धाओं में भी हिस्सा लेती हैं। 30 से 40 लड़किया यहां साल भर ट्रेनिंग लेती हैं। ताऊजी का मानना है कि खेल उर्जा को गलत दिशा में जाने से रोककर सही दिशा देते हैं, इसलिए ताऊजी िदमरापाल गांव में खेल क्रांति लाए। साथ ही साक्षरता दर को भी 1 से बढ़ाकर 65 प्रतिशत पर ले गए। आदिवासी समुदाय का देखने का नज़रिया और जीवनस्तर तब से अब तक 360 डिग्री बदल चुका है। जीवन में ऊपर उठना ही कई लड़के और लड़कियों का लक्ष्य है, जबकि पहले उनके पास कोई दिशा नहीं थी। सब कुछ बदल चुका है- बातचीत करने के तरीके से लेकर, लक्ष्यों के प्रति आशाएं और उन्हें हासिल करने तक। 87 साल के वृद्ध के समर्पण से यहां बड़ा परिवर्तन गया है। इसके पीछे इस स्वतंत्रता सेनानी की 40 साल की कड़ी मेहनत है। किसी ने व्यंग्य किया था कि दूध बांटने के लिए गली-गली जाना पड़ता है, दरवाजे पर दस्तक देनी पड़ती है, लेकिन शराब की दुकानें तो लोगों को अपनी ओर खुद खींचती हैं। \

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
For getting Job-alerts and Education News, join our Facebook Group “EMPLOYMENT BULLETIN” by clicking HERE. Please like our Facebook Page HARSAMACHAR for other important updates from each and every field.