Wednesday, July 20, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: प्रकृति के साथ साझेदारी, एक ट्रेंडी और टिकाऊ बिजनेस

एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)

स्टोरी 1: इस साल मानसून पूरे देश में व्यापक रूप से छाया हुआ है और संतोषजनक भी है। यह कई सूखा पीड़ित राज्यों में भारी राहत लेकर आया है। यह संयोग ही है कि मेरा काम मुझे उन छोटे-बड़े 12 शहरों में ले गया, जहां मौसम की पहली बारिश हो रही थी। इसमें कंक्रीट के जंगल वाला मुंबई भी है तो प्राकृतिक सुंदरता वाला नासिक भी। कई लोगों ने इन शहरों में मजाक में कहा कि आप हमारे लिए बारिश लेकर आए हैं। लेकिन, मैं इस मजाक पर हंस नहीं सका, क्योंकि इस बार मुझे उस आनंद का अनुभव नहीं हो रहा था, जो बारिश का मौसम शुरू होने पर होता है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इन दो भिन्न प्रकृति के सभी 12 शहरों में एक आम समान बात यह थी कि पहली बारिश के बाद जो मिट्‌टी की सौंधी खुशबू आती है वह इस बार पूरी तरह गायब थी। मैं चिंतित था कि क्या अगली पीढ़ी कभी उस खुशबू का अनुभव कर पाएगी, जिसने हमें कई दशकों तक आनंदित रखा। 
प्रकृति के विशेषज्ञ और ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने वाले मंदार वैद्य कहते हैं कि मुंबई जैसे कंक्रीट के कुछ घने जंगलों में मिट्‌टी अब जीवित नहीं है और नासिक जैसे कुछ छोटे शहरों में जो अब कंक्रीट का जंगल बनते जा रहे हैं, वहां जमीन अब तेजी से अनुपजाऊ होती जा रही है, इसलिए हम सभी पहली बारिश की उस सौंधी खुशबू को खोते जा रहे हैं। उनका मानना है कि ज्यादा पौधे लगाना और ऑर्गेनिक की ओर बढ़ना ही एक मात्र तरीका है जो हमें प्रकृति की उस श्रेष्ठता के दर्शन करा सकता है। उनका काम है किचन गार्डन्स को बढ़ावा देना और गमलों में ककड़ी, करी पत्ता, धनिया, पालक और लेमन ग्रास आदि उगाने में लोगों की मदद करना। 
स्टोरी 2: नासिकसे काफी दूर मदुरै के तमिलनाडु में वैद्य से अनजान उनके जैसी ही ओरल पेथोलॉजिस्ट डॉ. पी. शणमुग प्रिया का भी पक्का भरोसा है कि प्रकृति की ओर लौटना ही एक मात्र तरीका है, जिसके जरिये प्रकृति की श्रेष्ठता का आनंद लिया जा सकता है। उन्होंने पुराने काम से ब्रेक लिया और प्रकृति से प्रेम को स्टाइल स्टेटमेंट बनाया। पिछले साल अगस्त में उन्होंने 'अनुपम' शुरू किया जो ऑर्गेनिक फूड आइटम बेचता है। देश के अलग-अलग स्थानों से फूड आइटम मंगवाने के दौरान उन्होंने पाया कि चीन में बने प्लास्टिक के सस्ते सामान की हर जगह बाढ़ आई हुई है और इसका असर भूमि पर भी पड़ रहा है। उन्होंने एक स्टोर शुरू किया जिसका नाम है- जूट कॉटेज, जहां सिर्फ एथनिक और परंपरागत स्टाइलिश प्रोडक्ट बेचे जाते हैं ताकि लोग प्लास्टिक के सामान के खिलाफ जागरूक हों। उन्होंने तमिलनाडु जूट कॉटेज इंडस्ट्री की पहली फ्रेंचाइजी ली। यह स्टोर तुरंत ही हिट हो गया। 
इस डॉक्टर ने खुरदुरे जूट की नई परिभाषा रची और इसे फैशनेबल और स्टाइलिश सामग्री बना दिया। इसी शहर में एक और शानदार स्टोर 'बैक टू नेचर' बड़ा बिज़नेस कर रहा है। इसका भी मिशन इको फ्रेंडली गिफ्ट आइटम को देश के हर कोने से लाना। इसमें शिमोगा का सुपारी के पत्तों से बना टेबल का सामान, बंगाल के टेराकोटा लैम्प, उत्तरप्रदेश में ताड़ के पत्तों से बने बास्केट, ट्रे, छोटे बर्तन, लकड़ी की कटलरी, तमिलनाडु के पत्थामदाई की मेट, महाराष्ट्र के वर्ली में बांस से बने कलात्मक छाता होल्डर, उत्तराखंड के मिट्‌टी के दीये, गुजरात में हाथ से बने किचन के बर्तन, आंध्र प्रदेश के कलमागिरी के कालीन उन सैकड़ों उत्पादों में से हैं, जो बिक्री के लिए यहां उपलब्ध हैं। होम डेकोर, ज्वेलरी, कपड़े और जूट के बैग भी यहां हैं। दिलचस्प यह है कि ये लोग सिर्फ व्यावसायिक रूप से सफल हैं, बल्कि इन्हें ट्रेंड सेटर के रूप में भी देखा जाता है। 
फंडा यह है कि प्रकृतिके साथ साझेदारी ट्रेंड बन गया है और इसमें सफलता ही है। जो अपने शहरों में इसकी शुरुआत करेंगे उन्हें फायदा होगा। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com

साभार: भास्कर समाचार 
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