Saturday, July 23, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: अगर आपके बनाए हुए नियम टूटें तो परेशान न हों

एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
शुक्रवार कोमैंने मुंबई के इंटरनेशनल एयरपोर्ट टी2 से दिल्ली होकर पटना जाने वाले फ्लाइट ली थी। जब एयरपोर्ट लाउंज पहुंचा तो देखा कि युवाओं के एक समूह ने रजनीकांत टी शर्ट पहन रखी है। यह विशेष रूप से 'कबाली' की रिलीज के लिए बनवाई गई थी। इन सभी ने मुंबई में फिल्म का सुबह 6 बजे का पहला शो देखा था
और अपने शहरों को लौट रहे थे। इनमें से एक लंदन से था और गुरुवार रात को विशेष रूप से फिल्म देखने यहां पहुंचा था। ये लोग मूवी के बारे में फेसटाइम पर डींगे मार रहे थे और मैंने देखा कि लंदन वाले लड़के के पेरेंट्स टेबलेट पर जिज्ञासा से उसके अरोरा थियेटर में फिल्म देखने का अनुभव सुन रहे थे। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। यूके का कोई भी थिएटर इस थिएटर से सौ गुना अच्छा है। पेरेंट्स मुस्कुरा रहे थे, हंस रहे थे, क्योंकि उनका बेटा फेवरेट एक्टर रजनी की फिल्म का पहला शो देखकर रहा था। इससे पहले गुरुवार-शुक्रवार की रात मेरे कजिन, विशेष रूप से मेरी बहनें रातभर चेन्नई, बेंगलुरु और तमिलनाडु कर्नाटक के अन्य शहरों के सिनेमाघरों के बाहर खड़े रहने की अपनी तस्वीरें पोस्ट करते रहीं और मुझे रातभर जगाए रखा। वहां रात 1 बजे, 3 बजे और 5 बजे के शो भी किए गए। इसकी दोषी थी मेरी मलेशिया की कजिन , जिसने यह फिल्म किसी भी भारतीय से 10 घंटे पहले देख ली थी और सोशल मीडिया पर बताकर मेरे पूरे परिवार में जलन पैदा कर दी। इसके बाद मेरे परिवार की लड़कियों और महिलाओं ने अलग-अलग शहरों में उत्सव की तरह फिल्म का पहले दिन का पहला शो देखा। 
यह दृश्य सीधे मुझे मेरे पिता के बुलाए एक दरबार में ले गया। उन्होंने मेरे मामाओं को विशेष रूप से बुलाया था, क्योंकि वे हमेशा मुझे सपोर्ट करते थे। उन्हें अचानक बुलाया गया था, क्योंकि मेरे एक अंकल ने मुझे फिल्म 'त्रिशूल' का पहले दिन का पहला शो देखते पकड़ा था। यह 1970 में प्रदर्शित संजीव कुमार-अमिताभ बच्चन की फिल्म थी। मेरी मां से सबसे पहले सवाल किया गया। पिताजी ने उनसे पूछा, 'तुम्हे पता है तुम्हारा बेटा आज सुबह सात बजे कहां था?' मेरी मां ने खामोशी से कहा था, 'हां, मुझे पता है वह अमिताभ की फिल्म देखने गया था'। मेरे पिता अचानक आक्रामक से बचाव की मुद्रा में गए। और उन्होंने कहा, 'अच्छा तो यह मां-बेटे की मिलीभगत वाला काम था?' फिर उन्होंने अपना गुस्सा मुझ पर निकाला। मुझसे पूछा, 'मिस्टर रघुरामन (जब वे नाराज होते थे तो मुझे पूरे सम्मान से पुकारते थे) क्या तुम मुझे बता सकते हो कि क्लास में फर्स्ट रेंक का क्या मतलब होता है?' उस साल क्लास में मेरी रैंक छठी थी और सिर्फ शीर्ष पांच को ही सम्मानित किया गया था, इसलिए मैं खामोश रहा। उन्होंने अपना गुस्सा जाहिर करना जारी रखा। उन्होंने कहा, 'तुम सिर्फ फर्स्ट डे फर्स्ट शो जानते हो, तुम कैसे समझोगे कि पढ़ाई में फर्स्ट रैंक का क्या मतलब होता है? आज मेरे भाई ने तुम्हे टिकट के लिए थियेटर में झगड़ते देखा। कल पूरा नागपुर यह करते देखेगा और मुझे मेरा सिर शुतुरमुर्ग की तरह कहीं जाकर छिपाना पड़ेगा। तुम्हें यह करने में जरा भी शर्म नहीं आई।' 
मुझे इतना अपमानित महसूस हुआ कि वह आखिरी फिल्म थी जो मैंने पहले दिन पहले शो में देखी थी। हालांकि, एक पत्रकार के रूप में बाद में मैंने कई फिल्मों के प्रिव्यू देखे। मैं कभी अपनी बेटी को ऐसा अकेले करने की इजाजत नहीं देता, हालांकि मेरी पत्नी उसके साथ जाती है और हाल ही में उन्होंने सुल्तान फिल्म इसी तरह देखी है। पिछले 40 वर्षों में यह बदलाव हुआ है कि जिस पर पेरेंट्स शर्मिंदा होते थे उस पर अब गर्व करने लगे हैं। दुनिया बदल चुकी है, कारण चाहे जो हो। 
फंडा यह है कि पुराने मूल्य जरूरी हैं, लेकिन जब नई पीढ़ी नए नियम बनाने के लिए उन्हें तोड़ती है तो अपना दिल मत जलाइए। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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