Thursday, July 21, 2016

दिल्ली घूस और ख़ुदकुशी मामला: काली कमाई के इस डरावने सच के बाद झकझोर देने वाला मौका

कल्पेश याग्निक (सम्पादक दैनिक भास्कर)
एक अफसरकी, घूस लेने पर हुई गिरफ्तारी और छापे के सदमे से उसकी पत्नी और बेटी की आत्महत्या ने काली कमाई के सबसे काले पहलू को भयावह रूप में पेश कर दिया है। दिल्ली की इस लोमहर्षक घटना के बाद अनुमान लगाया जा रहा है कि अफसर के भ्रष्टाचार का संभवत: परिवार को पता नहीं था। इससे ठीक उल्टा वाकया पिछले ही माह घटा था। सीबीआई अदालत ने जबलपुर में एक अफसर को काली कमाई का दोषी पाने पर चौंका देने वाला फैसला सुनाया था। कि अफसर की अवैध-अघोषित आय को भोगने वाले उसके बेटे-बहू और उसकी पत्नी को भी पांच साल के सश्रम कारावास की सज़ा दी जाती है! यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इस घटना में कानूनी तर्क यह था कि अफसर के भ्रष्टाचार का परिवार को पता था। 
दोनों घटनाएं दिल दहलाने या धक्का पहुंचाने वाली तो हैं ही - किन्तु साथ ही बहुत बड़ा सबक सिखाने वाली हंै। इन्हें गहराई से देखें, तो पाएंगे कि सरकारी अफसर काली कमाई कर अंतत: किस तरह अपना ही घर-संसार तबाह कर रहे हैं। और लाखों अफसर-कर्मचारी परिवार यदि इन दो डरावने उदाहरणों से सतर्क हो, अपने अफसर पति या पिता से स्पष्ट, साहसपूर्वक पूछ लें कि क्या वे कोई ग़लत काम कर पैसा लाते हैं? फिर देखिए, देश का ढर्रा और ढांचा ही बदल जाएगा। 'भास्कर' की दृढ़ सोच है कि भ्रष्टाचार पर सबसे शक्तिशाली प्रहार, परिवार ही कर सकता है। भले ही आज सभी कह देंगे कि नहीं, वे सबकुछ वैध ही कर रहे हैं। किन्तु एक डर तो बैठ ही जाएगा। यही घूस पर स्वनियंत्रण की शुरुआत होगी। 
और रिश्वत रुकने पर देखिए कैसे-कैसे पाप रुक सकते हैं। इन्हीं घटनाओं को लें। दिल्ली के जिस अफसर की बात हो रही है, वह डायरेक्टर-जनरल, कॉर्पोरेट अफेयर्स है। बीके बंसल। रिश्वत में 9 लाख ले चुका था। 'कुसुम' और 'कुमकुम' धारावाहिकों के अभिनेता अनुज सक्सेना से। जांच रोकने के बदले। आरोप है कि सक्सेना ने 24 हजार निवेशकों को धोखा देकर 175 करोड़ रुपए ठग लिए। विदेश भेज दिए। ख़ुद विदेश चला गया। इस काली कमाई से क्या हुआ? वो लाख अब अफसर के किस काम के? और नहीं लेता, तो ख़ुद का परिवार तो सकुशल रहता ही; उन निर्दोष 24 हजार लोगों को न्याय मिलने की आशा भी बढ़ जाती। 
ऐसे ही जबलपुर का रक्षा विभाग का डिप्टी अकाउंटेंट। सूर्यकान्त गौर। अघोषित 94 लाख रु. बेटे-बहू पत्नी के खाते में जमा किए थे। जिनके सुख के लिए काली कमाई जुटाई, वे ही जेल में बंद। उसी की करतूत से। और तो और, एक नन्हा-सा पोता है। जो अकेला जेल से बाहर। तो कोर्ट ने उसकी देखभाल के लिए उसे भी उनके साथ कर दिया। यानी, प्रकारांतर से, एक भ्रष्ट कदम, घर के नन्हे बच्चों तक को जेल भिजवा देता है! अनंत आंसू। 
सब कुछ परिवार के हाथ में है। घर मेें अचानक वैभव कैसे रहा है? बेटे की विदेश में पढ़ाई का महंगा बोझ कैसे आसानी से उठा लिया? विलासिता के साधन और आमोद-प्रमोद के पांच सितारा तरीके क्यों और कहां से गए? सब कुछ पूछ सकता है परिवार। और कितना ही छुपाएं, एक सीमा में व्यक्ति को खुलना ही पड़ता है। 
परिवार, कुछ तीसरी तरह के भी हैं। ये मानकर चलते हैं कि सरकारी नौकरी या ओहदे साथ में स्वाभाविक रूप से रसूख, रुतबा रकम आएगी ही! ऐसा बिलकुल नहीं है। आज सिर्फ काम करने पर जोर है। लोग जागरूक हो रहे हैं। मीडिया बहुत चौकन्ना है। भीतर तक बात, खोज शोध करता है। सोशल मीडिया कमेंट के लिए, अलग है। कोर्ट सक्रिय है। काली घूस पर, बाबू परिवारों के सशक्त प्रहार की सारा राष्ट्र प्रतीक्षा कर रहा है। 
हां, जिन्हें विश्वास है कि उनके पति, पिता या पत्नी को ग़लत फंसाया गया है- उनके लिए भी यह सर्वोच्च अवसर है कि लड़ें। लड़ते रहें। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com

साभार: भास्कर समाचार 
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