डोनेशन को हिंदी में ‘दान’ कहते हैं। जहां दान की बात आ जाए वहां
‘स्वेच्छा’ शब्द स्वयं जुड़ जाता है। मगर शिक्षा के बाजार में तो ‘डोनेशन’
का अर्थ ही पलट दिया। यहां डोनेशन का मतलब किताबों का ऐसा व्यापार है,
जिसमें स्कूल संचालक मुनाफा कमाते हैं और अभिभावकों की जेब पर कैंची चलती
है। नया सत्र शुरू होते ही इस धंधे ने जोर पकड़ लिया। निजी स्कूल संचालक
मोटी कमाई कर रहे हैं। अभिभावकों के पास बेबसी जाहिर करने के अलावा कोई
चारा नहीं है। शिक्षा विभाग ने स्पष्ट किया है पाठयक्रम के मामले में स्कूल
संचालक मनमानी नहीं कर सकते। लेकिन बावजूद इसके वह सबकुछ और रहा है, जो
विधिक और नैतिक
दोनों ही मायनों से गलत है। दरअसल, डोनेशन किताबों की कीमत
का वह हिस्सा है, जो प्रकाशक स्कूल संचालकों को देते हैं। सत्र शुरू होने
से पहले प्रकाशक स्कूलों में घूमना शुरू कर देते हैं। वे स्कूल संचालकों
अपनी किताब दिखाते हैं। यदि स्कूल संचालकों को किताबें पसंद आ जाए तो फिर
सौदे की बात होती है। यहां सौदे का मतलब है फिफ्टी फिफ्टी। यानी बिकने वाली
पुस्तकों की आधी कीमत स्कूल संचालकों को मिलेगी। इस कीमत का भुगतान
प्रकाशक पुस्तकें बिकने से पहले देते हैं। कोई किताब 300 रुपये की है तो
डेढ़ सौ रुपये स्कूल संचालक को मिलेंगे। इस कमीशन को यहां डोनेशन कहा जाता
है।
ऐसे चलता है धंधा: अगर स्कूल संचालक सीधे तौर पर किताबें बेचें तो
अभिभावकों को शक हो जाता है। इसलिए वे किसी पुस्तक विक्रेता को बिचौलिया
बनाते हैं। स्कूल प्रबंधन सिफारिश करता है और अभिभावक बताई गई दुकान से
पुस्तक खरीदते हैं। यहां ये भी नियम है कि कोई पुस्तक प्रिंट रेट से कम दाम
पर नहीं मिलेगी। इस तरह प्रकाशन, स्कूल संचालक और दुकानदार मिलकर मुनाफा
कमाते हैं। एक सामान्य स्कूल हर
साल तीन से पांच लाख रुपये सिर्फ किताबों से कमाता है।
ये हैं शिक्षा
विभाग के दिशा-निर्देश: शिक्षा विभाग के दिशा निर्देश हैं कि सभी निजी
स्कूलों में एनसीईआरटी यानी राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद
द्वारा जारी पाठयक्रम ही लगाया जाना चाहिए। इस पाठयक्रम के अलावा किसी भी
प्रकाशक की पुस्तक खरीदने के लिए विवश नहीं किया जा सकता। स्कूल संचालक
एनसीईआरटी की किताबों से परहेज करते हैं, क्योंकि उसमें मुनाफा नहीं मिल
पाता।
DEO को शिकायत दें, कार्रवाई होगी: फतेहाबाद के डीईईओ डॉ. यज्ञदत्त वर्मा का
कहना है कोई स्कूल संचालक किसी प्रकाशक की पुस्तकें खरीदने के लिए मजबूर
नहीं कर सकता। यदि कोई ऐसा करता है तो कानूनन गलत है। क्योंकि एनसीईआरटी की
पुस्तक की मान्य हैं। यदि कोई स्कूल संचालक ऐसा करता है तो शिकायत दें,
कार्रवाई होगी।
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साभार: जागरण समाचार
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