Friday, March 6, 2015

दुर्दशा शिक्षा की: देश में पांच लाख शिक्षकों की कमी, ख़त्म हो रही गुणवत्ता

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देश के सरकारी सेकेंडरी स्कूलों में पांच लाख से ज्यादा अध्यापकों की कमी है। सेकेंडरी स्कूलों में अध्यापकों के खाली पदों की यह संख्या मानव संसाधन मंत्रालय का सिर्फ आंकड़ा भले हो मगर इसका सीधा मतलब ये है कि अगर एक अध्यापक 40 छात्रों को पढ़ाता है तो उस हिसाब से देश में लगभग दो करोड़ से ज्यादा छात्र रोजाना पढ़ाई से वंचित रह जाते हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार में अध्यापकों की कमी सबसे ज्यादा है। जबकि बाकी
राज्यों का भी बुरा हाल है। सरकारी स्कूलों की इस बुरी हालत के कारण ही निजी स्कूलों में मां बाप अपने बच्चों को भेजना चाह रहे हैं। 2013 में छह से 14 साल के 29 फीसदी बच्चों ने निजी स्कूलों में दाखिल लिया। यह आंकड़ा 2014 में बढ़कर 30.8 फीसदी हो गया है। 

उत्तर प्रदेश और बिहार में अध्यापकों की कमी सबसे ज्यादा: उत्तर प्रदेश में 1,45 हजार से ज्यादा तो बिहार में 1,38 हजार से ज्यादा अध्यापकों के पद प्राथमिक और सीनियर स्कूलों में खाली पड़े हैं। इसके बाद झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा अध्यापकों के पद खाली पड़े हैं। उत्तराखंड में 3232, दिल्ली में 670, जम्मू कश्मीर में 1883, हिमाचल प्रदेश में 485, पंजाब में 12,875 पद खाली पड़े हैं। पदों को भरने को लेकर केंद्र और राज्य सरकार दोनों का रवैया बेहद शर्मनाक है क्योंकि खाली पदों की संख्या घटने के बजाय लगातार बढ़ रही है। अध्यापकों की कमी का असर सीधा शिक्षा के स्तर पर पढ़ रहा है। बच्चों की पढ़ाई की गुणवत्ता इससे प्रभावित हो रही है। सरकारी स्कूलों के कक्षा पांच में पढ़ने वाले लगभग 52 फीसदी छात्र ऐसे हैं जो कि दूसरी कक्षा का पाठ पढ़ने के काबिल नहीं है। वहीं गणित के मामले में तो और बुरा हाल है। कक्षा तीन में पढ़ने वाले सिर्फ 25 फीसदी बच्चे ही दो अंकों के साधारण घटाने के सवाल को हल कर पाते हैं। कक्षा दो के 19 फीसदी बच्चे नौ तक के अंक भी नहीं पहचाने पाते। 
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साभार: अमर उजाला समाचार
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