मैनेजमेंट फंडा (एन. रघुरामन)
मुझे याद नहीं आता कि कक्षा की परीक्षा में 10वीं या 11वीं रैंक आने पर मेरे पिताजी ने मुझे कितनी बार यह तंज किया था, 'यदि तुमने ठीक से पढ़ाई नहीं की तो तुम गाय पालने और खेती करने लायक भी नहीं बन पाओगे।'
उनका लहजा बहुत अपमानजनक होता लेकिन, यह मुझे उकसाकर अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा जाता था। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। पांच दशक बाद मुझे उनके कहने में हकीकत दिखाई दे रही है। आज मैकेनिकल इंजीनियर से लेकर कम्प्यूटर एक्सपर्ट तक गायें पालने और दूध बेचने से लेकर मत्स्यपालन कर एक्वाकल्चर तक को अपना बिज़नेस बना रहे हैं। विदेशी डिग्री होने के बावजूद हल उठाना शर्म की बात नहीं है। ये लोग कृषि वाणिज्य को बदलकर रख देंगे।
स्टोरी 1: फेसबुक में wowmakers पर जाइए। आपको विवेक राघवन अौर उनके दस सदस्यीय इंजीनियरिंग ग्रेजुएट की टीम मिलेगी। ये सब उम्र के तीसरे दशक की शुरुआत में ही हैं, जो केरल के एमाकुलम में डिज़ाइन स्टूडियो और रेस्तरां चला रहे हैं। कड़ी मेहनत करने वाला यह समूह एक बार सुस्ताने के लिए अच्छी जगह की तलाश में था और मौके की बात कि वे एक फार्म पर पहुंच गए और वहीं उन्हें विचार आया कि ताजे पानी के प्रान का फार्म बहुत अच्छा बिज़नेस हो सकता है। चूंकि अन्य व्यवसायों में उन्हें सफलता मिल चुकी थी, उन्होंने सोचा कि एक्वाकल्चर तो उनके लिए बहुत ही आसान होगा। शुरू में व्हाइट स्पॉट डिज़ीज ने ढेर सारे प्रान खत्म कर डाले। उन्होंने कुछ लाख और निवेश किए और सेंट्रल मरीन फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट से विशेषज्ञ लेकर आए। उन्होंने ऐरेशन, फीड मैनेजमेंट और ऑक्सीजन वॉटर लेवल चेक करना सीखा। आज वे रोज दस किलो फिश का उत्पादन करते हैं। सफलता के बाद फार्मिंग रिज़ॉर्ट विकसित करने का साहस गया है।
स्टोरी 2: बीस की उम्र से कुछ साल ही ऊपर के विनीत और विष्णु वडाक्केदथ केरल के कोचि शहर में कैफे का सफल बिज़नेस चला रहे थे। जब उनके आर्थिक रूप से सक्षम परिवार ने खाड़ी में बिज़नेस चलाने के लिए मदद करने की पेशकश की तो उन्होंने वहां बिज़नेस खोलने से इनकार कर दिया। अब वे पांच एकड़ क्षेत्र में ऑर्गनिक तरीके से नारियल, प्रान और विशेष तरह के केरल के चावल 'पोक्कली राइस' पैदा करते हैं। मैकेनिकल इंजीनियरिंग की उनकी डिग्री उन्हें खेती के सारे कामों को मशीनों से कराने में मददगार रही। उन्होंने मुंगफली के छिलकों से मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने का ऑर्गनिक तरीका खोजा।
स्टोरी 3: इंजीनियरिंग में स्नातक 37 वर्षीय िडगोल थॉमस पेशे से इंटीरियल डिज़ाइनर हैं। किंतु अपने पेशे की अनिश्चितता ने उन्हें अनजानी वैश्विक समस्याओं का सामना करने की बजाय अपने घर के पीछे के क्षेत्र पर निर्भर होने पर प्रेरित किया। उन्होंने करेले से शुरुआत की और अब खरबूज, शिमला मिर्च और इंग्लिश ककड़ी भी उगाते हैं। उन्होंने बीमारियों को पहचानने की कला में महारत हासिल कर ली। वे अपनी तकनीक को 'अवनी' के ब्रैंड नेम से बेचते भी हैं। वे फेसबुक पर 'avaniagrofarm' के नाम से कंसल्टेंसी भी मुहैया कराते हैं।
स्टोरी4 : जबउनके पिता 200 किलो लौकी बेचने गए तो बाजार ने उन्हें 1 रुपए किलो की कीमत देने की पेशकश की। बिचौलियों के इस शोषण से विचलित 25 वर्षीय सॉफ्टवेयर डेवलपर पीएस प्रदीप ने सीधी मार्केटिंग कंपनी शुरू की। इस ऑनलाइन स्टोर farmersFZ को पहले साल में ही 4,000 ग्राहक मिल गए। फसलों को पोषक तत्व देने के लिए वे गोबर पर भरोसा करते हैं। वे ऐसा सिस्टम खड़ा करना चाहते हैं कि खेती की चीजों को प्रोसेस करके सीधे डिलीवरी की जा सके। आज उनकी उपज न्यूनतम समय में 100 किलोमीटर दूर तक पहुंच जाती है।
फंडा यह है कि भविष्य में खेती को गुणवत्तापूर्ण उत्पादों की मांग आपूर्ति का फर्क दूर करने के लिए उच्च शिक्षित लोगों की जरूरत पड़ेगी।
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
फंडा यह है कि भविष्य में खेती को गुणवत्तापूर्ण उत्पादों की मांग आपूर्ति का फर्क दूर करने के लिए उच्च शिक्षित लोगों की जरूरत पड़ेगी।
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साभार: भास्कर समाचार
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