Friday, January 13, 2017

बात बहुत काम की: स्पष्ट कॅरिअर रोड मैप रखेंगे तो पेरेंट्स बाधा नहीं डालेंगे

मैनेजमेंट फंडा (एन. रघुरामन)
वह स्कूल जाने के लिए तैयार हो रहा था। दरवाजे पर घंटी बजी और मां ने जोर से किचन में से कहा 'विजय देखो दरवाजे पर कौन है'। विजय दौड़कर गया और दरवाजा खोला। एक मिनट के लिए वह पीछे हटा। एक पुलिस
अधिकारी दरवाजे पर मौजूद था। उसकी आंखें चमचमाते ब्राउन जूतों, करीने से प्रेस की हुई पेंट, बीचों-बीच लोगो लगे चौड़े बेल्ट, खाकी शर्ट के फ्रंट पॉकेट पर लगी जगदीश डावर के नाम की नेमप्लेट से होती हुई चेहरे पर पहुंची तो देखा सामने चाचा खड़े हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। उन्होंने उसी दिन पुलिस फोर्स जॉइन की थी। डिप्टी एसपी जगदीश डावर विजय के पिता से आशीर्वाद लेने आए थे। 
दसवीं कक्षा के केंद्रीय स्कूल के छात्र विजय ने उस दिन एक शपथ ली कि बड़े होकर पुलिस फोर्स जॉइन करेगा लेकिन, वह नहीं जानता था कि पिता की पुलिस फोर्स के बारे में राय कुछ और है। वे चाहते थे कि बेटा इंजीनियर बने, जैसा कि देश के अधिकतर पिता चाहते हैं। उसने परीक्षा भी दी और बेस्ट इंजीनियरिंग कॉलेज में चयन हो गया लेकिन, एडमिशन नहीं लिया। उस सुबह सीधे वे अपने पिता के पास गए और कहा, 'मुझे सिर्फ चार साल का समय दीजिए और अगर मैं अपने मिशन में फेल हो गया तो जो आप कहेंगे वो करूंगा'। पिता ने शायद बेटे की आंखों में संकल्प और दिल में आग देखी, इसलिए उसे अपना कॅरिअर चुनने का मौका दे दिया। 
उसने बीए में एडमिशन ले लिया और पब्लिक सर्विस कमिशन परीक्षा के लिए तैयारी शुरू कर दी। पूरा फोकस पढ़ाई पर किया। पिता अर्जुन सिंह डावर ने उसके सपने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने सिर्फ बेटे को उसका कॅरिअर चुनने की आजादी दी, बल्कि घर पर जब कोई मेहमान आता तो उसका परिचय यह कहकर कराते कि यह लड़का कल का शानदार अफसर बनेगा। यह उनका अनोखा तरीका था विजय को अपना लक्ष्य याद दिलाने का। ऐसा वो हफ्ते में दो बार करते। लेकिन उसके इस सुनियोजित कॅरिअर में एक दुश्मन सामने आया। उसके सभी क्लासमेट किसी किसी जॉब के लिए चुल लिए गए और इस वजह से विजय में एक असुरक्षा का भाव गया। 
विजय ने वही गलती की जो अधिकतर बच्चे कभी कभी करते हैं। समाज से 'वेल-सेटल्ड' का सर्टिफिकेट पाने और पुलिस यूनिफॉर्म पहनने का सपना पूरा करने के लिए उसने स्थानीय सब इंस्पेक्टर के जॉब के लिए आवेदन किया और इसके लिए चुन भी लिया गया। फाइनल फिजिकल परीक्षा के दौरान अंकल जगदीश ने उसे कतार में खड़े देखा। उन्होंने उसे कतार से बाहर खींचा और टेस्ट में शामिल होने की इजाजत नहीं दी। उन्होंने उसे याद दिलाया कि वह अपने सपने से समझौता कर रहा है। विजय ने फिर परीक्षा की तैयारी शुरू की लेकिन, अब अपने अंकल की देखरेख में। बाहर जाना और कॉलेज लाइफ का सोशल मनोरंजन पूरी तरह बंद कर दिया। विजय अपने प्रति सख्त हो गया और नतीजा यह हुआ कि परीक्षा के ठीक पहले बीमार हो गया। डॉक्टरों ने कहा कि वजह तनाव है और उसे परीक्षा को सामान्य तरीके से लेना चाहिए लेकिन, विजय इस बार मौका गंवाना नहीं चाहता था। पहले प्रयास में ही उसने परीक्षा पास कर ली। परिवार की सलाह थी कि डिप्टी कलेक्टर को पहली प्राथमिकता दे, लेकिन उसने डिप्टी एसपी चुना, क्योंकि चाचा की तस्वीर दिमाग में अब भी ताजा थी। मिलिए विजय डावर से। एडिशनल एसपी (एआईजी) उज्जैन, मध्यप्रदेश। उन पर पिछले साल आयोजित कुंभ मेले की सुरक्षा की भारी-भरकम जिम्मेदारी थी। 
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साभार: भास्कर समाचार 
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