Sunday, August 7, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: चाहते हैं कि नियति आप पर मुस्कराए तो HTDO को आदत बनाएं

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
इस हफ्ते पूरे शुक्रवार मुंबई पर आसमान कहर बरपाता रहा और चूंकि सारी सड़कें पानी से भरी थीं तो हर घर के लिए 'लेक व्यू' बन गया था। अभिनेत्री परिणीति चोपड़ा की कार घोंघे की चाल से रेंग रही थी और वे बेचैन हो रही
थीं, क्योंकि वे 12 अगस्त से अमेरिका में शुरू हो रहे अपने कार्यक्रम 'ड्रीम टूर कन्सर्ट' के लिए वीसा इंटरव्यू के लिए जा रही थीं। उन्हें आने वाले सोमवार तक वीसा चाहिए था। मेरा एक मित्र भी ऐसी ही परिस्थिति में फंसा था। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। वह इस कन्सर्ट का कोऑर्डिनेशन करने वाली इवेंट टीम का नेतृत्व करने वाले सदस्यों में था। उसकी खुशकिस्मती थी कि वह समय से इंटरव्यू के लिए पहुंच गया, लेकिन उसे पार्किंग की जगह खचाखच भरी मिली। 
कारें रेंग रही थीं और ड्राइवर खाली जगह की तलाश कर रहे थे। मेरे मित्र ने देखा कि एक जगह खाली हो रही है और उसी तरह अच्छे वस्त्रों में सजे-संवरे बुजुर्ग-से सज्जन ने भी इसे देखा, जो उस जगह के पास ही खड़े थे। मेरे युवा मित्र ने बुजर्ग को मात देने की सोची और एक्सीलेटर पर दबाव बढ़ा दिया। यह देख बुजुर्ग घबरा गए, क्योंकि मेरे मित्र उनकी कार के बहुत निकट पहुंच गए और आखिर मेरे मित्र ने पार्किंग की जगह पर कब्जा करने में बुजुर्ग को मात दे दी। अपनी इस छोटी-सी जीत से खुश और वीसा औपचारिकताएं पूरी करने का आत्मविश्वास होने के कारण मेरे मित्र ने उस बुजुर्ग की आंखों में तिरस्कार के भाव की अनदेखी कर दी, जो पार्किंग के लिए दूसरी जगह खोजने में लग गए थे। 
जब वह भीतर गया तो उसे थोड़ी देर इंतजार करने को कहा गया, क्योंकि बारिश के कारण वीसा ऑफिसर को देर हो गई थी। जब उसे इंटरव्यू के लिए अंदर बुलाया गया तो मेरा मित्र बहुत विचलित हो गया, क्योंकि वीसा अधिकारी वही बुजुर्ग थे, जिनसे कुछ मिनटों पहले उसने पार्किंग की जगह लगभग छीन ही ली थी। प्रश्न सरल थे, लेकिन उसने जीवन में जितने इंटरव्यू का सामना किया था, उनमें यह सबसे कठिन था। उसे बताया गया कि सोमवार को उसे वीसा की स्थिति पता चलेगी। इसका मतलब तो यही था कि उसे वीसा मिल गया है, लेकिन सेंटर से बाहर आने के बाद से वह तनाव में है और वह तब तक ऐसा ही रहेगा, जब तक कि उसके हाथ में वीसा नहीं जाता। काश! वह एचटीडीओ आदत का अभ्यासी होता! 
यह एचटीडीओ क्या है? एचटीडीओ के बारे में मैंने हाल ही में कहीं पढ़ा है। 
यह शायद पहले भी आपके साथ हुआ है। जब आप किसी होटल के दरवाजे की तरफ बढ़ रहे होते हैं तो आगे चल रहा व्यक्ति दरवाजा धकेलकर आगे निकल जाता है और दरवाजा आपकी नाक या दरवाजे पर आकर टकरा जाता है। या ऐसा भी होता है कि आपके आगे का व्यक्ति दरवाजा खोलकर रखता है (होल्ड्स डोर ओपन यानी एचटीडीओ) और आपके गुजरने के बाद उसे बंद करता है। याद करें कि आपको कितना अच्छा लगा था, हालांकि यह केवल उस क्षण की ही बात थी। दुनिया को दो प्रकार के लोगों में बांटा जा सकता है। एक वे जो दरवाजा खोलते हैं और उसे पीछे धड़ाम से टकराने के लिए छोड़ आगे बढ़ जाते हैं। 99 फीसदी आबादी ऐसी ही होती है। फिर 1 फीसदी वे भी होते हैं जो अगले व्यक्ति के गुजरने तक दरवाजा खोलकर रखते हैं। एचटीडीओ सिर्फ अन्य लोगों को अच्छा अहसास देता है बल्कि खुद आपको भी अच्छा लगता है। एचटीडीओ ही मदद और देखभाल करने के व्यवहार में विकसित होता है। 
क्या यह अचरज की बात नहीं है कि जब कोई हमारे लिए दरवाजा खोलकर रखता है तो हमें अच्छा लगता है, लेकिन हम शायद ही किसी दूसरे के लिए ऐसा करते हैं? ऐसा क्यों? क्योंकि हम गरीब देश हैं, इसलिए हम धनी होने के लिए आंख मूंदकर दौड़ते चले जा रहे हैं। हमारे सारे उपनिषद दूसरे लोगों को जिंदगी में जीत हासिल करने में मदद करने को ही जिंदगी की असली जीत बताते हैं, व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और तरक्की की वे उतनी बात नहीं करते। हममें से कई लोगों ने आंखें मूंद ली हैं और इस व्यावसायिक चूहा-दौड़ में बेतहाशा भागे चले जा रहे हैं। 
फंडा यह है कि आप यदि दूसरों के लिए दरवाजा खोलते हैं तो आप अपने लिए नियति को मुस्कुराता पाएंगे।
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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