Friday, August 12, 2016

कभी चॉकलेट, कभी वैनिला: पांच अलग अलग फ्लेवर में मिलेगा सरकारी स्कूल के बच्चों को दूध

प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पहली कक्षा से आठवीं तक के बच्चों को उनकी पसंद के हिसाब से दूध प्रदान किया जाएगा। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने राज्य की गोल्डन जुबली पर शुरू होने वाली स्वर्ण जयंती बाल दूध योजना को मंजूरी प्रदान कर दी है। इसके तहत प्रत्येक बच्चे को स्कूल में 200 मिली लीटर दूध मिलेगा। यह दूध वनीला और चाकलेट समेत पांच अलग-अलग फ्लेवर में होगा। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। प्रदेश के सहकारिता, लेखन एवं मुद्रण और शहरी स्थानीय निकाय राज्य मंत्री मनीष ग्रोवर ने मुख्यमंत्री द्वारा स्वर्ण जयंती बाल दूध योजना को मंजूरी दिए जाने की जानकारी दी। ग्रोवर ने बृहस्पतिवार को चंडीगढ़ स्थित भाजपा कार्यालय में लोगों की समस्याएं सुनीं और उनका समाधान किया। उनके अनुसार सहकारिता विभाग द्वारा सिरसा और जींद के मिल्क प्लांटों में दूध पाउडर तैयार किया जाएगा। यह पाउडर राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में सप्लाई होगा। राज्य मंत्री के अनुसार मिड-डे मिल के साथ ही एक नवंबर से स्कूली बच्चों को 200 मिली लीटर प्रति बच्चे के हिसाब से दूध देना शुरू कर दिया जाएगा। दूध बच्चों की रुचि को ध्यान में रखकर तैयार होगा। राज्य सरकार की इस योजना के बाद मौलिक शिक्षा निदेशालय ने सभी जिलों से संसाधनों के बारे में जानकारी हासिल कर ली है। जिलों से दूध रखने के लिए खाली पतीलों और गिलास के बारे में रिपोर्ट मांगी गई है। मनीष ग्रोवर के अनुसार आज भी सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे ऐसे परिवारों से संबंधित हैं, जिन्हें घर पर दूध नहीं मिलता। इसी बात को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने ‘स्वर्ण जयंती बाल दूध योजना’ शुरू की है। सरकार की इस योजना से बच्चों में पोषक तत्वों की पूर्ति होगी। इससे स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ने की भी उम्मीद है। उन्होंने दावा किया कि इस योजना के लागू होने के बाद हरियाणा स्कूली बच्चों को दूध देने वाला पहला राज्य होगा।

कुपोषण होगा कम: हरियाणा के बच्चों में कुपोषण की स्थिति बढ़ रही है। कुपोषण के चलते बच्चों के दिमाग, वजन और लंबाई का उम्र के साथ विकास नहीं हो पाता। राज्य के हर तीसरे बच्चे का वजन उसकी औसतन आयु से कम है। पांच वर्ष तक की आयु के 39.6 फीसदी बच्चों का वजन कम है। यह संख्या दलित परिवारों के बच्चों में अधिक है। एक सामान्य बच्चे की अपेक्षा एक कुपोषित बच्चे की जान जाने का खतरा नौ गुणा जायदा रहता है। पांच साल तक के बच्चों में 53 मृत्यु दर कुपोषित बच्चों की है। इससे चिंतित सरकार ने जहां आटे में ही विटामिन मिलाने की योजना पर काम शुरू किया है, वहीं एक दर्जन जिलों में कुपोषित बच्चों के लिए पुनर्वास केंद्र बनाए जाने हैं।

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साभारजागरण समाचार 
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