Sunday, July 17, 2016

ह्यूमन लाइब्रेरी: सहिष्णुता बढ़ाने में मददगार

एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
कश्मीर से लेकर पेरिस के नीस तक इस हफ्ते खूनखराबा ही सुर्खियों में रहा है, इसलिए आज मेरे पास कहने के लिए के लिए कहानी नहीं बल्कि कहानी सुनाने वालों की कहानी है। हाल ही में मैंने एक 'किताब' को बोलते सुना। मैं चकित था कि यह है क्या? हां भई, किताब ने मेरे साथ हाड़-मांस के आदमी की तरह बात की। अापने भी
शायद बोलती 'किताब' के बारे में सुना होगा, लेकिन मैंने एक किताब को एक मानव शरीर से बोलते सुना! इसने मेरे उस टॉपिक से संबंधित सारे सवालों के जवाब दिए और मेरे लिए यह दो-तरफा रीडिंग एक्सरसाइज थी। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं।किताब ने मुझे मेरा दृष्टिकोण व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित किया और बाद में यह कुछ से सहमत हुई और कुछ के वैध कारण देकर असहमत हुई। मुझे यह वाकई पसंद आया, क्योंकि सबकुछ 40 मिनट में खत्म हो गया। 
हां. उन्हें किताबें ही कहते हैं। इन किताबों के एचआईवी प्रभावित व्यक्ति, शरणार्थी, मस्तिष्क बाधित, युवा, अकेली माता, बेघर, धर्म परिवर्तित, द्वि ध्रुवीय (बायपोलर), नेचरिस्ट, शराबी, बेरोजगार, ऑटिज्म, मूक बधीर, यौन उत्पीड़ित और दुर्व्यवहार पीड़ित जैसे सैकड़ों शीर्षक हैं। 'द ह्यूमन लाइब्रेरी' एक ऐसी जगह है जहां असली आदमी किराये पर पाठक के लिए उपलब्ध रहता है। यह ऐसी जगह है जहां कठिन प्रश्न पूछे जाने की अपेक्षा की जाती है, उसकी सराहना होती है और उनके जवाब दिए जाते हैं और किसी को नकारात्मक नज़रों से नहीं देखा जाता। छपी हुई पुस्तकें और इंटरनेट जैसे ज्ञान के परंपरागत स्वरूपों में अनूठे मूल्यवान अनुभव और भावनाएं नहीं दर्ज हो पातीं। इसके अलावा सबसे बड़ी बात तो यह कि इन मानवीय किताबों में से ज्यादातर ने अपनी व्यक्तिगत कहानियां छपाई नहीं हैं। इस तरह आपको उनकी अप्रकाशित कहानियां सुनने को मिलती है। निश्चित ही यह विचार-विमर्श के लिए चुने गए विषयों की समानताएं असमानताएं जानने का अवसर था। मिलिए उस ह्यूमन यानी मानव लाइब्रेरी से, जिसे अंतरराष्ट्रीय समानता आंदोलन 70 से ज्यादा देशों में संचालित कर रहा है। वहां लाइब्रेरी से किराये पर किताब देने की बजाय पाठक यदि वाकई जीवन के चुनौतीपूर्ण मुद्‌दों में रुचि रखते हैं तो वे बातचीत के लिए एक व्यक्ति को किराये पर लेते हैं। इन किताबों, मेरा मतलब है कि इन लोगों के पास चर्चा के लिए कोई आरामदेह विषय नहीं है कि जिसका लुत्फ उठाया जा सके। 
'मानव किताबें,' जैसा कि उन्हें जाना जाता है, उन्हें ले जाने वाले लोगों को 30 मिनट चलने वाली कहानी सुनाती हैं। यह कहानी उस व्यक्ति के लिए वाकई अनूठी होती है और वे जिस क्षेत्र में होते हैं, उसके व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित होती है। वे सिर्फ कहानी सुनाने वाले नहीं बल्कि अपने क्षेत्र के छोटे समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह किताब (यानी कहानी सुनाने वाले) भूख का चेहरा या शहरी गरीबी को जानती है और यही कारण है कि वह विषय के बारे में हर प्रश्न का उत्तर दे पाती है। 
उन लोगों से आमने-सामने अकेले में बात करना एक मौका हो सकता है अन्यथा ऐसे लोगों से बोलने का आपको कभी अवसर मिले, जिनके पास हमसे बहुत अलग क्षेत्र के जीवनानुभव, कहानियां और आस्था हो। ऐसी मानव लाइब्रेरी सबसे पहले कोपेनहेगन के युवाओं ने निर्मित की, जो हिंसा से निपटना चाहते थे। उन्होंने आपस में मिलकर 2000 में पहला ह्यूमन लाइब्रेरी फेस्टिवल आयोजित किया। तब से दुनियाभर के 70 देशों में ह्यूमन लाइब्रेरियां हैं। कुछ अन्य लोगों के लिए यह सामुदायिक भावना विकसित करने के अलावा विविधता के लिए सहिष्णुता समझदारी बढ़ाने और ऐसे लोगों के लिए सम्मान विकसित करना है, जिनका एक ही विषय पर भिन्न दृष्टिकोण हो सकता है। हर किसी ने कहानी सुनाने की इस मौखिक परंपरा का पूरा लुत्फ उठाया। 
हमारी ओर से हमें ज्ञान-समृद्ध लोगों की ऐसी मानव लाइब्रेरियां बनानी चाहिए और हमारे बच्चों को उनसे कहानियां सुनने का मौका देकर उन्हें भूतकाल वर्तमान की 360 डिग्री समझ विकसित करने का अवसर देना चाहिए, जिससे उन्हें अपने भविष्य को आकार देने में मदद मिल सके। 
फंडा यह है कि हमारेसमाज में सहिष्णुता विकसित करने का यह कोई अकेला तरीका नहीं है, लेकिन जब कहानियां हमारी समझ में उतरती हैं तो हमारे भीतर स्वीकार्यता बढ़ती है ौर अधिक स्वीकार्यता और समझ के साथ समाज परिपक्व होता है। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
For getting Job-alerts and Education News, join our Facebook Group “EMPLOYMENT BULLETIN” by clicking HERE. Please like our Facebook Page HARSAMACHAR for other important updates from each and every field.