विकी एबल्स,फिल्मनिर्माता, एजुकेशन एडवोकेट
अमेरिका के मिसौरी स्थित सेंट लुइ यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में प्रोफेसर स्टुअर्ट स्लेविन बच्चों के डॉक्टर भी हैं। उन्होंने छात्रों में चिंता और तनाव खतरनाक स्तर पर देखकर छात्रों के छोटे समूह बनाए और पढ़ने का समय बदल दिया। छह साल में चमत्कारिक नतीजे सामने आए। उन छात्रों में तनाव चिंता नहीं के बराबर थी। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। डॉ. स्लेविन ने कुछ दिन पहले सिलिकॉन वैली के इर्विन्गटन हाईस्कूल के छात्रों में तनाव और चिंता का सर्वे किया। 54 फीसदी छात्रों में तनाव के लक्षण एवं 80 फीसदी में चिंता के लक्षण मध्यम से गंभीर थे। किशोर आबादी में ऐसा नहीं होना चाहिए। डॉ. स्लेविन ने स्कूल फेकल्टी से बात की। उन्होंने पाया कि यह स्कूल बच्चों में तनाव की राष्ट्रव्यापी महामारी का मात्र उदाहरण है। देशभर का दौरा किया तब पता चला कि सभी जगह ऐसा ही है। शिक्षा से जुड़ीं अपेक्षाएं नियंत्रण से बाहर हो रही हैं। बच्चे सात घंटे स्कूल में बिताते हैं, रात में होमवर्क करते हैं, म्यूज़िक क्लास की रिहर्सल और वीकेंड के असाइन्मेंट। हर गतिविधी को श्रेष्ठ कॉलेज में एडमिशन, बढ़िया जॉब और सफल जीवन की सीढ़ियों की स्टेप समझा जाता है। बच्चों को अधिकार संपन्न और कामयाब बनाने की बजाय यह 'तरीका' उनकी सेहत पर असर डाल रहा है, क्षमताएं घटा रहा है। मॉडर्न एजुकेशन उन्हें बीमार कर रही है। अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसो. की रिसर्च में तीन में से करीब एक किशोर छात्र ने बताया कि तनाव के कारण वह उदासी या अवसाद की चपेट में गया। उनके तनाव का सबसे बड़ा स्रोत स्कूल था। सेंटर फॉर डिसीज़ कंट्रोल के अनुसार बड़ी संख्या में अमेरिकी किशोर छात्र दो घंटे कम नींद ले पाते हैं। ज्यादा होमवर्क उनकी नींद कम करता है। न्यूजर्सी में बच्चों की डॉक्टर लॉरेंस रोसेन कहती हैं- प्राथमिक स्कूलों के छात्रों में डॉक्टर सिरदर्द और अल्सर की शिकायतें मिल रही हैं। कई डॉक्टर इसे परफॉर्मेंस के कनेक्शन से जोड़ते हैं। उनके कहने का तात्पर्य 5-6 या 7 वर्ष के बच्चों से है।
इर्विन्गटन स्कूल के एक टीचर कहते हैं- हमारे लिए यह टाइम बम पर बैठने जैसा है। अब इस स्कूल में अध्यापक, अभिभावक और बच्चों ने बदलाव की ठान ली है। होमवर्क कितना हो, तय किया जा रहा है। वीकेंड छुटिटयों में होमवर्क नहीं दिया जाता। एसीई के अनुसार ऐसे बच्चे जो हिंसा, अपशब्द, माता-पिता की मानसिक बीमारियों का संघर्ष देखते हैं, उनमें बड़े होने पर अन्य की तुलना में हृदय फेफड़ों का रोग, कैंसर की शिकायत हो सकती है। विडंबना यह है कि प्रेशर कूकर जैसी यह स्थिति हमारे बच्चों के भविष्य की संभावनाएं बढ़ाने में कोई मदद नहीं कर रही है। जरूरत है इर्विन्गटन जैसे स्कूल की, जहां अभिभावक और अध्यापक मिलकर बदलाव ला रहे हैं। बच्चों के सेहतमंद भविष्य के लिए।
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार
For getting Job-alerts and Education News, join our Facebook Group “EMPLOYMENT BULLETIN” by clicking HERE. Please like our Facebook Page HARSAMACHAR for other important updates from each and every field.