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जाट समुदाय को आरक्षण को रद करने के फैसले के साथ ही सैकड़ों लोगों की
नौकरी व विद्यार्थियों के दाखिले पर तलवार लटक गई है। केंद्र सरकार ने जाट
समुदाय को ओबीसी कोटे में शामिल किया था। इसके बाद लोगों ने सर्टिफिकेट
बनवाकर नौकरी हासिल की। उच्च न्यायालय में हिसार की कुम्हार सभा, पिछड़ा
वर्ग कल्याण निगम की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता लाल बहादुर खोवाल केस लड़ रहे
थे। खोवाल ने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा ओबीसी में जाट समुदाय को शामिल
करने के बाद याचिका दायर की गई थी। उस दौरान कोटे में नौकरी देने और दाखिले
पर रोक लगाने की याचिका लगाई थी। अदालत ने उसके फैसले को मुख्य फैसले के
साथ ही
जोड़ने के आदेश दिए थे। खोवाल ने बताया कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग
आयोग से पूर्व की केंद्र सरकार ने रिपोर्ट मांगी थी। इसमें आयोग ने जाट
समुदाय को आरक्षण नहीं देने की सिफारिश की थी। रिपोर्ट को केंद्र सरकार ने
सही नहीं बताया और जाट समुदाय को चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले
आरक्षण देने की घोषणा कर दी थी। अदालत ने पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट को
सही बताया है। अदालत ने यह भी माना कि जिन आंकड़ों के आधार पर आरक्षण दिया
गया वह पुराने थे। अदालत ने यह भी कहा कि सरकार ने इंद्रा सहानी और यूनियन
ऑफ इंडिया के मामले के नियमों पर काम नहीं किया। हरियाणा सरकार ने भी जाट
समुदाय सहित बिश्नोई, जट सीख, रोड, त्यागी को स्पेशल बैकवर्ड क्लास में
शामिल किया था। लोगों ने इसके बाद काफी फार्म बनवाए और नौकरी व दाखिले लिए। वरिष्ठ अधिवक्ता लाल बहादुर खोवाल ने कहा कि प्रदेश में आरक्षण देने के
मामले में भी पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में 11 मई को सुनवाई होगी।
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साभार: जागरण समाचार
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