एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
वर्ष 1992 में जलगांव के भगवान शिवदास माली नवी मुंबई के पास स्थित गुमनाम से गांव कोप्रा में अपने चाचा से मिलने गए। गांव सिर्फ 50 परिवार के 200 लोगों का था। चाचा ने बातचीत में बताया कि कैसे गांव में शिक्षा
की व्यवस्था होने से अगली पीढ़ी असामाजिक तत्वों में बदल रही है, जबकि ज्यादातर पुरुष ईंट के भट्टों में काम करते हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इस बातचीत ने माली को 100 रुपए माह की मामूली राशि पर सुधागढ़ एजुकेशन सोसायटी (एसईएस) में काम करने के लिए प्रेरित किया। सोसायटी ने हाल ही में एक स्कूल का रजिस्ट्रेशन कराया था। उसने यह स्कूल चलाने का काम माली पर छोड़ दिया। गांव के सरपंच माली हर घर में गए, लोगों को अपने 16-17 आयु के बच्चों को मुफ्त में पढ़ने के लिए एक मंदिर में भेजने को मनाया। गांव में जिला परिषद का एक स्कूल था, जो पांचवीं तक कक्षाएं चलाता था। अपने पहल प्रयास में 14 छात्र जुटे, जो अगले साल 21 हो गए। धीरे-धीरे संख्या बढ़ी और एक साथ लगने वाली कक्षा को आठवीं से दसवीं तक तीन कक्षाओं में बांट दिया गया। माली की कठोर मेहनत और इसके नतीजे की सुगंध धीरे-धीरे फैलने लगी।
बॉलीवुड के अभिनेता मुकरी ने स्कूल की इमारत बनाने के लिए अपना प्लॉट दे दिया। स्थानीय विकास प्राधिकरण सिडको ने दो कमरे बनाने में मदद की। 1995 में छात्रों की संख्या 80 तक पहुंच गई। बढ़ते स्कूल के लिए पैसा जुटाने के उद्देश्य से माली और विद्यार्थी घर-घर गए और दान में ईंट सीमेंट की मांग की। पढ़ाई का वक्त तय कर लिया गया और बाकी समय निर्माण में लगाकर छात्रों ने पांच कमरे बना लिए। कुछ लोगों ने दान में फर्नीचर दिया। धीरे-धीरे नई इमारत आकार लेने लगी। आज ग्राउंड फ्लोर के अलावा वहां तीन मंजिला इमारत है, जिसमें 15 कमरे हैं। एक कमरा विज्ञान एक कम्प्यूटर लैब के लिए है। एक भरी-पूरी लाइब्रेरी और कुल-मिलाकर 560 छात्र, जिनमें से 400 तो मराठी और 160 अंग्रेजी माध्यम में पढ़ रहे हैं। वर्ष 1995 की पहली बैच में औसत प्रतिशत 35 फीसदी से कुछ ही ज्यादा था, जबकि 2016 में यह 94 फीसदी तक पहुंच गया, जिनमें ज्यादातर लड़कियों ने बहुत ऊंचे अंक हासिल किए। वहां से पास छात्र सरपंच, काउंसलर और इंजीनियर जैसे पदों पर काम कर रहे हैं। आज दो छात्राएं एमबीबीएस कर रही है, जबकि ड्राइवर पिता और कामचलाऊ टी स्टाल चलाने वाली मां की बेटी 19 वर्षीय संध्या धनंजय धोंगडे ने सिर्फ 2013 में 95.45 फीसदी अंक हासिल किए बल्कि वर्तमान में सिविल इंजीनियरिंग की इस छात्रा ने बहुत ऊंचे लक्ष्य रखे हैं। वह वीजेटीआई, मुंबई से मास्टर्स करना चाहती है और फिर सिविल सर्विस की परीक्षा देगी।
हर साल तरक्की करते चले जाने के साथ स्कूल को सिडको ने 5000 पौधे लगाकर उन्हें बड़ा करने की हरित पहल के लिए पुरस्कृत किया है। व्यक्तिगत स्तर पर माली ने मराठी में तीन किताबें लिखी हैं और उनमें से एक विशुद्ध रूप से इसी पर है कि कमजोर स्कूलों का प्रबंध कैसे किया जाए। 'प्रेरणा' किताब में उन्होंने दुनियाभर के 365 लोगों की उपलब्धियों का विवरण दिया है ताकि वे छात्रों को प्रेरित कर सकें। तीसरी किताब प्रेरणा देने वाले निबंधों का संग्रह है। सामाजिक स्तर पर खुशी और सफलता से ग्रामीणों के चेहरों पर मुस्कान आई है, जबकि पर्यावरण के स्तर पर वे भविष्य के लिए हरियाली बढ़ा रहे हैं। छात्रों को कई मेडल मिले हैं। गांव के छोटे-से तालाब में अभ्यास करके तैराकी स्पर्द्धाओं में नाम कमाना खासतौर पर उल्लेखनीय है। इस साल के रजत जयंती समारोह में मिले दान से ऑफिस, जिम, दो लैब और गरीब छात्रों की पढ़ाई के लिए और अधिक कमरे बनाए जाएंगे।
फंडा यह है कि साक्षरता की दिशा में एक व्यक्ति का प्रयास व्यक्तियों की ही नहीं बल्कि पूरे गांव की नियति बदल सकता है।
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
हर साल तरक्की करते चले जाने के साथ स्कूल को सिडको ने 5000 पौधे लगाकर उन्हें बड़ा करने की हरित पहल के लिए पुरस्कृत किया है। व्यक्तिगत स्तर पर माली ने मराठी में तीन किताबें लिखी हैं और उनमें से एक विशुद्ध रूप से इसी पर है कि कमजोर स्कूलों का प्रबंध कैसे किया जाए। 'प्रेरणा' किताब में उन्होंने दुनियाभर के 365 लोगों की उपलब्धियों का विवरण दिया है ताकि वे छात्रों को प्रेरित कर सकें। तीसरी किताब प्रेरणा देने वाले निबंधों का संग्रह है। सामाजिक स्तर पर खुशी और सफलता से ग्रामीणों के चेहरों पर मुस्कान आई है, जबकि पर्यावरण के स्तर पर वे भविष्य के लिए हरियाली बढ़ा रहे हैं। छात्रों को कई मेडल मिले हैं। गांव के छोटे-से तालाब में अभ्यास करके तैराकी स्पर्द्धाओं में नाम कमाना खासतौर पर उल्लेखनीय है। इस साल के रजत जयंती समारोह में मिले दान से ऑफिस, जिम, दो लैब और गरीब छात्रों की पढ़ाई के लिए और अधिक कमरे बनाए जाएंगे।
फंडा यह है कि साक्षरता की दिशा में एक व्यक्ति का प्रयास व्यक्तियों की ही नहीं बल्कि पूरे गांव की नियति बदल सकता है।
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साभार: भास्कर समाचार
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