Friday, February 3, 2017

अध्यापकों के लिए हर हाल में जरूरी आर्टिकल: सोशल मीडिया के भटकाव को आकर्षण में ऐसे बदलें

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
इस हफ्ते मैं कॉलेज के कुछ प्रोफसरों से मिला, जो सामूहिक रूप से मोबाइल फोन को कोस रहे थे। उनका कहना था कि मोबाइल छात्रों का ध्यान भटकाता है और कोई भी छात्र कक्षा में एकाग्रता से पढ़ाई पर ध्यान नहीं देता।
हर दो मिनट में या तो किसी को जवाब भेजते हैं या स्क्रीन पर उभरे किसी आइकन को देखकर वे मुस्कराते हैं और वह भी गंभीर चर्चा के दौरान। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। ये शिक्षक मोबाइल पर प्रतिबंध लगाने के पक्ष में थे। जब मैंने इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा पिछले साल कराए गए सर्वे की ओर उनका ध्यान कींचा, जिसमें कहा गया था कि शहरी भारत के 18 करोड़ इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में से 66 फीसदी नियमित रूप से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जाते हैं और 33 फीसदी कॉलेज छात्र सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं तो उनका कहना था, 'शिक्षा का क्षेत्र विनाश की अोर बढ़ रहा है।' 
युवा मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए हर शहर में मुफ्त इंटरनेट योजना पर जब विचार हो रहा हो, तो तय है कि ऊपर दर्शाएं गए आंकड़े कम होने से तो रहें। जब कॉलेज के नोटिस बोर्ड पर टाइम टेबल लगाया जाता है तो दो प्रतिशत छात्र उसे पढ़ते हैं लेकिन, जब मुंबई के भवन्स कॉलेज के वाइस प्रिंसिपल और जुलॉजी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. परवीश पंड्या ने वही नोटिस लगाया तो शत-शतप्रतिशत छात्रों ने उसे पढ़ा। फर्क यह था कि यह नोटिस उनके फेसबुक अकाउंट पर 'स्टेटस' के रूप में दिया गया था। अमेरिका में ज्यादातर प्रोफेसरों के हर उस कक्षा के वॉट्सएप ग्रुप होते हैं, जिन्हें वे पढ़ाते हैं। ड्यूक यूनिवर्सिटी के अफ्रिकी और अफ्रीकी मूल के अमेरिकी छात्रों के विभाग के मार्क एंथोनी ब्लॉग, फेसबुक और अन्य माध्यमों का उपयोग अपना काम शेयर करने और छात्रों को जवाब देने में करते हैं। 
संभव है छात्र ईंट-कंक्रीट के बने क्लासरूम में जवाब देने में हिचकते हों लेकिन, वर्चुअल क्लासरूम में रिस्पॉन्स देने में वह कहीं अधिक साहसी होते हैं। कुछ फैकल्टी ऐसे उत्तरों के साथ हैशटैग भी इस्तेमाल करते हैं, जिनमें कोई समानता हो। वॉट्सएप ग्रुप पर ही असाइनमेंट्स दिए जाते हैं। जो छात्र निर्धारित समय में चर्चा नहीं करते या अपनी राय अपलोड नहीं करते, बहस नहीं करते या प्रश्न नहीं पूछते तो उन्हें अनुपस्थित करार दिया जाता है। वे प्रैक्टिकल के अंक गंवा देते हैं। प्रोफेसर सिर्फ छात्रों को मोबाइल पर शैक्षणिक साइटों की लिंक भेजते हैं बल्कि छात्रों को क्लास में रिकॉर्ड करने की इजाजत भी देते हैं ताकि परीक्षा के पहले वे संदर्भ के लिए उनका इस्तेमाल कर सकें या छात्रों के बीच शेयर कर सकें। कुछ प्रोफेसर तो सेल्फी लेते हैं या पूरी कक्षा का फोटो खींच लेते हैं, जो सॉफ्टवेयर की मदद से अपनेआप अटेंडेंस शीट में बदल जाता है। ऑनलाइन मोबाइल टेक्नोलॉजी सीखने का बेहतर वातावरण तैयार कर रही है। यह छात्रों को इंटरेक्टिव अहसास देती है। 
शिक्षा से संबंधित कई सर्वे बार-बार यह सिद्ध कर चुके हैं कि पुराने शिक्षािवद् ये औजार अपने पाठ्यक्रम से जोड़ना नहीं चाहते लेकिन, मौजूदा पीढ़ी इंटरनेट के साथ पलने-बढ़ने वाली पहली पीढ़ी है। उन्हें ऐसे वक्त का अहसास नहीं है, जब ये माध्यम मौजूद नहीं थे। वे टेक्नोसेवी हैं और लॉजिकली टेक्नो पर निर्भर हैं। इसलिए शिक्षाविदों को आगे आकर सोशल मीडिया पर छात्रों को एंगेज करना चाहिए। उन्हें उनके समुदाय में शामिल होना चाहिए अथवा ऐसी कम्युनिटी बनाना चाहिए। यही सर्वे का निष्कर्ष था। 
फंडा यह है कि आधुनिक शिक्षक सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अपना विषय पढ़ाकर 'डिस्ट्रेक्शन' को 'अट्रेक्शन' में बदल रहे हैं। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
For getting Job-alerts and Education News, join our Facebook Group “EMPLOYMENT BULLETIN” by clicking HERE. Please like our Facebook Page HARSAMACHAR for other important updates from each and every field.