Monday, January 2, 2017

शिक्षा सुधार के लिए पैदा करनी होगी पढ़ने की ललक

नया साल शुरू हो गया है। स्वर्ण जयंती वर्ष में सुशिक्षित समाज से बड़ा तोहफा भला क्या हो सकता है। जरूरत है इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाने की। शिक्षा प्रणाली में बदलाव कर इसे रोजगारपरक बनाने व तकनीकी शिक्षा का दायरा बढ़ाने की जरूरत शिद्दत से महसूस की जा रही है। उम्मीद है कि पूर्व में सुशिक्षित समाज की
रखी गई बुनियाद नए साल में नए आयाम छूते दिखाई देगी। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। शिक्षा विभाग में ऑनलाइन तबादलों से भ्रष्टाचार व भाई-भतीजावाद पर पहले ही अंकुश लग चुका है। ऑनलाइन तबादलों में जो खामियां पिछले साल दिखीं, इस बार दूर होनी चाहिए। स्कूलों में योग और गीता पाठ अच्छी पहल है जिसका प्रभाव निश्चित रूप से देश के भविष्य पर दिखेगा। हालांकि सौ फीसद सुशिक्षित समाज का सपना तभी पूरा हो सकता है जब गरीबों को भी अच्छी शिक्षा का हक मिले।  
सरकार ने कानून तो बना रखा है परंतु अभी तक इस पर अमल होता नहीं दिखा। निजी स्कूल बड़प्पन दिखाएं तो वे गरीब मेधावी बच्चों को मुफ्त पढ़ाकर उनका भविष्य उच्च्वल बना सकते हैं। साथ ही उन्हें मनमाने तरीके से फीस बढ़ाने का मोह छोडऩा होगा ताकि कोई भी अच्छी शिक्षा से वंचित न रहे। सरकारी स्तर पर शिक्षकों से शिक्षा के अतिरिक्त अन्य कार्य कराने की परंपरा खत्म करनी होगी। विकराल रूप धारण कर चुकी ड्रॉप आउट की समस्या को खत्म करने के लिए भी अहम कदम उठाने की जरूरत है। 
लंबे-चौड़े दावे करने के बावजूद अभी तक कोई मुकम्मल शिक्षा नीति नहीं दी जा सकी है। लाख कोशिशों के बावजूद स्कूलों में अध्यापकों के पद रिक्त पड़े हैं तो हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद स्थाई भर्ती नहीं हो रही। अतिथि अध्यापकों की समस्या जस की तस है जिससे पार पाना चाहिए।
गुरु-शिष्यों के संबंधों पर लगे दाग धोने होंगे: कई स्कूलों में छात्रओं से छेड़छाड़ के मामले सामने आते रहे हैं जिससे गुरु-शिष्यों के बीच भरोसा उठा है। हालांकि जांच के लिए दो महिला प्रिंसिपल और जिला शिक्षा अधिकारी की कमेटी बनाई गई है जिससे ऐसे मामलों में निश्चित रूप से कमी आएगी। शिक्षकों का भी दायित्व बनता है कि स्कूल-कॉलेजों में ऐसे माहौल का निर्माण करें जिससे कि छात्रओं को असहज स्थिति का सामना न करना पड़े।
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साभारजागरण समाचार 
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