दिवाकर झुरानी, 27 (फ्लेचर स्कूल ऑफ लॉ एंड डिप्लोमेसी, टफ्ट यूनिवर्सिटी, अमेरिका)
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सीबीएसई ने हाल ही में सिफारिश की है कि 2018 से सारे छात्रों के लिए 10वीं बोर्ड की परीक्षा अनिवार्य होगी। बोर्ड परीक्षा किसी स्कूल की परीक्षा से बेहतर क्यों है? उत्तर है मानकीकरण। सारे छात्रों का परीक्षण कठिनाई के
एक ही स्तर पर और मूल्यांकन भी निष्पक्ष होता है। यहां दो सिद्धातों पर ध्यान देने की जरूरत है। - अधिक और नियमित परीक्षण: फिलहाल 15 घंटे वाली पांच परीक्षाएं तय करती हैं कि छात्र का प्रदर्शन कैसा है। क्या साल के 1800 स्कूली घंटों में लिए गए ज्ञान का परीक्षण एक ही महीने के 15 घंटों में कर लेना अच्छा तरीका है? तुलना क्रिकेट से करके देखते हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। छात्र के लिए परीक्षा के घंटे और स्कूल के घंटे का अनुपात (1:120) वही है, जो सचिन तेंडुलकर के एक दिवसीय मैचों और प्रमुख टूर्नामेंट में खेले गए फाइनल मैचों के बीच है। सचिन ने 463 वनडे मैच खेले और चार प्रमुख फाइनल (2003, 2011 के वर्ल्डकप फाइनल, 2000, 2002 के चैंपियन ट्रॉफी फाइनल) खेले। इन चारों मैचों में सचिन ने तो शतक बनाया वे मैन ऑफ मैच थे। क्या इसका मतलब यह है कि वे खराब खिलाड़ी थे? लंबे समय में प्रदर्शन योग्यता का बेहतर संकेतक होगा। परीक्षाएं अधिक बार करानी होंगी।
- परीक्षा दोहराव पर नहीं, बल्कि ज्ञान के उपयोग पर आधारित हो: मौजूदा प्रणाली में जिसका उत्तर पाठ्यपुस्तकों से मेल खाता है, उसे ज्यादा अंक मिलते हैं। यह रटने को बढ़ावा देता है। परीक्षा में यह देखना चाहिए कि स्कूल में अर्जित ज्ञान का छात्र रचनात्मक उपयोग कैसे करता है। यह केस स्टडी आधारित परीक्षा, अनौपचारिक चर्चा आदि से कर सकते हैं। सुधार के तीन बिंदु हो सकते हैं : अ) दिनभर की मासिक परीक्षा (परीक्षा साल में 360 घंटों में फैल जाएगी)। ब) अनौपचारिक और ज्ञान के इस्तेमाल पर आधारित परीक्षा। स) फीडबैक मैकेनिज़्म, जो सिर्फ ग्रेड पर आधारित हो बल्कि हर छात्र के लिए सुधार की विस्तृत योजना हो।
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साभार: भास्कर समाचार
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